इंदौर, । देश को आजादी 1947 में मिली थी, लेकिन इंदौर शहर के 1.35 वर्ग किमी क्षेत्रफल को आजादी का सुख 1955 में मिला। यह भाग था वर्तमान छावनी चौराहे से डेली कालेज और नौलखा से महाराजा यशवंरात अस्पताल तक का। शहर में अंग्रेज 1818 में आए और होलकर शासकों ने उन्हें समझौते के तहत शहर का यह भाग सौंपा था, जिसे रेसीडेंसी क्षेत्र कहा जाता था। उसी समझौते के तहत शहर का यह भाग एक सितंबर 1955 को आजाद हुआ। अंग्रेजों के अधीन रहे इस भाग में आसपास की 58 रियासतों के सामंतों, ठिकानेदारों, सूबेदारों और राजाओं के साथ अंग्रेजों ने बैठक करने के लिए जो कोठी बनवाई वह आज भी रेसीडेंसी कोठी कहलाती है।
इतिहास के पन्नों में अहमियत रखने वाला एक और खूबसूरत व महत्वपूर्ण स्थल है गणगौर घाट के समीप बनी महाराज हरिराव होलकर की छत्री। ये वही महाराज थे, जिन्होंने शहर में एक ऐसे मदरसे की शुरुआत कराई जिसमें अरबी के अलावा संस्कृत और अंग्रेजी साथ में पढ़ाई जाती थी। इसी शासक ने हरसिद्धि मंदिर की स्थापना भी करवाई। रविवार को ‘वर्ल्ड हेरिटेज डे’ पर हम आपको शहर के इन्हीं स्थानों से रूबरू करवा रहे हैं, जो न केवल शहर की धरोहर हैं बल्कि शूटिंग के लिए बेहतर लोकेशन्स भी हैं।
क्रांतिकारियों ने किया था हमला : 1857 की क्रांति से प्रभावित होकर शहर में भी क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बिगुल बजाया था। तब यहां तुकोजीराव होलकर (द्वितीय) का शासन था। राजा ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को हथियार, गोला-बारूद देकर मदद की और खासी संख्या में अंग्रेज अधिकारी मारे गए। कुछ अधिकारी बचकर राजवाड़ा आए और राजा से शरण मांगी। शरणागत को बचाने का वादा करते हुए राजा ने उन्हें महू छावनी पहुंचा दिया। रेसीडेंसी क्षेत्र में अंग्रेजों ने न केवल चर्च, विक्टोरिया लाइब्रेरी, अस्पताल, सामंत-सूबेदारों की कोठियां बनवाकर शहर को सौगात दी, बल्कि सआदत खां और राणा बख्तावर सिंह जैसे क्रांतिकारियों को फांसी देकर बर्बरता का परिचय भी दिया। इतिहासकार स्व. गणेश मतकर के संग्रह से प्राप्त जानकारी के अनुसार शहर में दूसरा महत्वपूर्ण और खूबसूरत स्थान हरिराव महाराज की छत्री है।
शूटिंग के लिए बेहतर लोकेशन : वरिष्ठ रंगकर्मी सुनील मतकर के अनुसार इन स्थानों पर शूटिंग की अपार संभावनाएं हैं। रेसीडेंसी कोठी और उसके आसपास का क्षेत्र ऐसा है जहां शूटिंग के लिए काम आने वाली कई लोकेशन्स की मांग को पूरा किया जा सकता है।
प्रमोशन की है जरूरत : वरिष्ठ रंगकर्मी श्रीराम जोग के अनुसार शहर में ऐसे दर्जनों स्थान हैं, जिन्हें आमजन के देखने के लिए खोला जाना चाहिए। उन्हें पर्यटन और शूटिंग दोनों पहलू से प्रमोट करना होगा। इन स्थानों की जानकारी होटल्स में आने वाले आंगतुकों को तो दी ही जाना चाहिए। शहर में जगह-जगह इनके साइन बोर्ड भी लगाना चाहिए।
खूबसूरती का बेजोड़ नमूना
1834 से 1843 तक शासन करने वाले हरिराव महाराज की छत्री की खूबी है 12 मेहराबों के स्तंभ पर निर्मित होना। इसके प्रदक्षिणा पथ पर हनुमान, युगल गंधर्व, भैरव, गणेश, राम दरबार, द्रोपदी स्वयंवर, कृष्णलीला, दशावतार, शिव पूजा, लक्ष्मी स्नान आदि आकृतियां पत्थरों पर तराशी गई है। यहां 100 बाय 100 वर्गफीट में फैली 50 फीट गहरी बावड़ी भी है, जिसमें चारों तरफ सीढ़ियां बनाई गई हैं