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कलेक्टर साहब,आपके एक दिन का शौर्य एम वाय के लिये क्यों नहीं हो सकता ?

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कमलेश पारे

इन्दौर बड़े अच्छे लोगों का शहर है। तभी तो संकट की इस घड़ी में कोई ऑक्सीजन के टैंकर ज्यादा मात्रा में ला पा रहा है, तो कोई रेमडिसीविर की कंपनी से सीधे बात कर अपने शहर के लिए पर्याप्त इंजेक्शन बुलवा रहा है।कोई अस्पतालों में ऑक्सीजन जैनरेटर्स दिलवा रहा है, तो कोई दवाइयों और भोजन की व्यवस्था कर रहा है।यही नहीं, कोई कोई तो अपने बड़े-बड़े परिसर ‘कोविड’ इलाज के अस्पताल खोलने के लिये दे रहा है।इंदौर शायद अकेला ऐसा शहर होगा, जिसके कलेक्टर काम नहीं करने वालों को सुंदर से सुंदर गालियां देकर या धमका काम पर लगा रहे हैं। इन सबके रहते जरूर ही  इंदौर एक भाग्यशाली शहर है।यहां मेरा सिर्फ एक ही मासूम सवाल है कि इंदौर में देश के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक ‘एम वाय अस्पताल’ भी है। इस अस्पताल की बिस्तर क्षमता ग्यारह सौ के आसपास है।सवाल पूछने और व्यवस्था में सुधार की क्षमता रखने वाले हर ‘माई-बाप’ से निवेदन है कि वे सिर्फ इतना पता कर लें कि पिछले सवा साल से चल रही इस त्रासदी में इस अस्पताल के कितने बिस्तर उपयोग हुए।सब चीजें कागज-पत्रों पर जरूर लिखी होंगी। सिर्फ ईमानदारी से देखने की जरूरत है।  ईमानदारी मतलब ईमानदारी। ‘बाबूगिरी’ में फंसने की जरूरत नहीं है।इस अस्पताल में छोटे-बड़े मिलाकर शायद साढे सात सौ डॉक्टर हैं। गये पूरे सवा साल में ये अपनी क्षमता और प्रतिभा का कितना भाग समाज को दे पाये ?यह भी निश्चित ही कहीं न कहीं दस्तावेजों में जरूर मिल जाएगा। अभी दस-पंद्रह दिन पहले ही किसी बैठक में यह तय हुआ था कि इस अस्पताल की पांचवी और छठीं मंजिल के 300 बिस्तर कोविड मरीजों के लिए आरक्षित कर दिए जाएंगे।  लेकिन, सबसे सक्षम और तुरत-फुरत काम करने वाला इंदौर का प्रशासन आज तक तो उन बिस्तरों का उपयोग शुरू नहीं करवा पाया है।इस सबको देखकर मेरे जैसा निम्न कोटि का व्यक्ति यह क्यों नहीं सोच सकता कि इंदौर में पदस्थी के लिए बहुत भारी रकम कहीं न कहीं देनी पड़ती है। इसलिए रकम देने वाला डॉक्टर कोरोना मरीजों के संपर्क में न आ पाए और सुरक्षित रहे,इसकी व्यवस्था बड़े लोगों ने पहले से कर ली है।यही नहीं,कई बड़े-बड़े लोगों के बेटे-बेटी भी इस अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में पढ़ते हैं, या काम करते हैं। इसलिए उनके बड़े ‘बापों’ ने भी यह सुनिश्चित करा लिया है कि उनके बच्चे कोविड मरीजों के संपर्क में न आएं।संकट के समय इस बड़े अस्पताल के उपयोग संबंधी मेरी बात पर अचानक विश्वास मत कीजिए। कागज देखिए, दस्तावेज देखिए,कड़े प्रश्न पूछिये और फिर बताइए कि  देश और प्रदेश के बजट से आने वाला कितना रुपया यहां व्यर्थ ही ‘घुस’ जाता है।यदि यह अस्पताल इस विभीषिका के समय अपना पूरा योगदान देता,तो निश्चित रूप से निजी अस्पतालों पर कुछ दबाव तो कम हो सकता था। या,गरीब मरीजों का कुछ तो भला होता।छोटे लोग तो इस मामले में कुछ नहीं कर सकते। लेकिन बड़े लोग सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए ही इस अस्पताल के उपयोग की सही सही जानकारी ईमानदारी से ले लें।फिर बताएं कि आपके ‘बड़े’ होते हुये हमारी किस्मत कितनी अच्छी है या बुरी है।कलेक्टर साहब,आपके एक दिन का शौर्य एम वाय के लिये क्यों नहीं हो सकता ?

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