लाहौर से 200 किमी की दूरी पर स्थित छोटा सा गांव लायपुर। शाम के 5 बज रहे थे। सरदार मान सिंह, घुला सिंह के घर पर उनके तीन बेटे और दो बेटियों को पढ़ा रहे थे। लायपुर में मानसिंह की बहुत इज्जत इसलिए थी क्योंकि वो वहां सबसे ज्यादा पढ़े लिखे और गांव के बच्चों को निशुल्क पढ़ाया करते थे। बच्चों को पढ़ाते वक्त एक बुजुर्ग हांफता हुआ घर में प्रवेश करता है और सरदार मान सिंह को एक पत्र देता हैं।
मान सिंह उस पत्र को पढ़ते हैं और अपनी जगह से उठकर एक जोरदार नारा लगाते हैं। करीब दो साल से लाहौर से हजारों किमी दूर हिमालयी रियासत टिहरी गढ़वाल से भागे सुंदरलाल बहुगुणा को अब मान सिंह के भेष में रहने की जरूरत नहीं थी। उन्होंने कपड़े बदले और टिहरी गढ़वाल रियासत पहुंचे। टिहरी गढ़वाल में क्रांति हो चुकी थी और भारत में शामिल होने तक ये एक साल तक स्वतंत्र राज्य रहा।
इसी प्रजामंडल में महज 20 साल के सुंदरलाल बहुगुणा कैबिनेट मंत्री रहे। दुनिया में सबसे छोटी उम्र के मंत्री। तीन बेटों और दो बेटियों के बाद 9 जनवरी 1927 को टिहरी रियासत के वन अधिकारी अंबादत्त बहुगुणा के घर सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म हुआ। सुंदरलाल 1981 से 1983 के बीच पर्यावरण को बचाने का संदेश लेकर, टिहरी गढ़वाल के चंबा के लंगेरा गांव से हिमालयी क्षेत्र में करीब 5000 किमी की पदयात्रा की।
यह यात्रा 1983 में विश्वस्तर पर सुर्खियों में रही। बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में इनको पुरस्कृत किया। पर्यावरण को स्थाई संपत्ति मानने वाला यह महापुरुष ‘पर्यावरण गांधी’ बन गया। 1981 में उन्हें स्टाॅकहोम का वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार मिला।
जब तक पेड़ कट रहे, तब तक पद्मश्री के योग्य नहीं
सुंदरलाल बहुगुणा को 1981 में पद्मश्री पुरस्कार दिया गया। पर उन्होंने यह कहकर पुरस्कार लेने से मना कर दिया कि जब तक पेड़ कट रहे, तब तक खुद को इस योग्य नहीं समझता। उन्होंने पर्यावरण को बचाने के लिए 1990 में 2400 मेगावाट की टिहरी बांध का विरोध किया था। वे जगह-जगह जो जलधाराएं हैं, उन पर छोटी-छोटी बिजली परियोजनाएं बनाए जाने के पक्ष में थे।