इंदौर
हाईकोर्ट ने जमानत के अर्जी पर सुनवाई के बाद पुलिस और निचली अदालतों के जिला जज को आदेश दिए हैं कि सात साल तक की सजा के मामलों में जबरन गिरफ्तारी से बचना चाहिए है। जब तक गिरफ्तारी बहुत जरूरी न हो तब तक नहीं की जाए। पुलिस को पूछताछ भी करना है तो दो सप्ताह पहले नोटिस जारी किए जाएं।
वहीं निचली अदालतों में जमानत अर्जी पर विचार न्यायाधीश बगैर किसी प्रभाव में आकर करें। रिमांड आवश्यक है, प्रकरण जमानत देने लायक है तो मजिस्ट्रेट राहत दें। बगैर ठोस कारण के जमानत निरस्त की जाती है तो मजिस्ट्रेट भी इसके लिए जवाबदार होंगे। जस्टिस अतुल श्रीधरन की खंडपीठ ने यह फैसला दिया है। आदेश की प्रति सभी जिला अदालतों के जज, एसपी और डीजीपी को भी भेजी है।
विजिलेंस या निरीक्षण जज की आवश्यकता पर विचार हो
जस्टिस श्रीधरन ने फैसले में कहा है कि विजिलेंस या न्यायाधीशों के कामकाज पर निगरानी करने वाले जज के पद पर विचार की आवश्यकता है। फैसलों की निगरानी किए जाने से न्यायाधीश प्रभावित होते हैं। स्वतंत्र होकर आदेश पारित करने में बाधा होती है। कारण यह कि उन्हें डर रहता है कि जमानत आदेश पारित करने पर विजिलेंस आपत्ति ले सकते हैं। हाई कोर्ट को अब विजिलेंस जज के पद पर विचार करने की जरूरत है।
यह फैसला छोटे मामलों में मील का पत्थर साबित होगा : अधिवक्ता
अधिवक्ता आनंद अग्रवाल, प्रवीण के रावल के मुताबिक हाईकोर्ट का यह फैसला छोटे मामलों में मील का पत्थर साबित होगा। अनावश्यक मुकदमेबाजी की समस्या खत्म होगी। हाईकोर्ट ने फैसले में यह भी कहा कि पुलिस और मजिस्ट्रेट पूरी निष्ठा के साथ इस आदेश का पालन करें। फैसले में दिए गए निर्देशों का पालन ठीक से नहीं किया तो इसे कोर्ट की अवमानना माना जाएगा।