अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

हिन्दू और मुसलमान दोनों ध्यान दें….! उपलब्धियां शून्यऔर इतराना सबसे अधिक-

Share

राजेश सिंघवी, उदयपुर
250 वर्ष का इतिहास खंगालने पर पता चलता है कि “आधुनिक विश्व मतलब 1800 के बाद जो दुनिया मे तरक्की हुई, उसमें पश्चिमी मुल्कों का ही हाथ है ।”
हिन्दू और मुस्लिम का इस विकास में 1% का भी योगदान नहीं है। आप देखिये कि 1800 से लेकर 1940 तक हिंदू और मुसलमान सिर्फ बादशाहत या गद्दी के लिये लड़ते रहे।
अगर आप दुनिया के 100 बड़े वैज्ञानिकों के नाम लिखें तो बस एक या दो नाम हिन्दू और मुसलमान के मिलेंगे।
पूरी दुनिया मे 61 इस्लामी मुल्क हैं, जिनकी जनसंख्या 1.50 अरब के करीब है, और कुल 435 यूनिवर्सिटी हैं जबकि मस्जिदें अनगिनत।
दूसरी तरफ हिन्दू की जनसंख्या 1.26 अरब के करीब है और 385 यूनिवर्सिटी हैं जबकि मन्दिर 30 लाख से अधिक। सदियों से लेकर आज तक हम लोग केउ मंदिरों के लिए मरते रहे हैं ।मंदिर बनाना है और उसके चढ़ावे का कारोबार, यही ध्यान में रहता है । ईश्वर के नाम पर कारोबार अधिक होता आया है । इससे हिंदू समाज में नए अविष्कार के प्रति कोई उत्सुकता नहीं रहे।  मोक्ष प्राप्ति या पैसा कमाने इसी धंधे के पीछे पूरी आबादी लगी रहे। दोनों धर्म हिंदू और मुस्लिम धर्म में पूजा पाठ ,मंत्र जाप , नमाज आदि को इतना महत्व दिया गया कि अन्य शोध कार्यों के लिए समय ही नहीं  मिला।
अकेले अमेरिका में 3 हज़ार से अधिक और जापान में 900 से अधिक यूनिवर्सिटी है़ जबकि इंगलैंड और अमेरिका दोनों देशों में करीब 200 चर्च भी नही हैं।
ईसाई दुनिया के 45% नौजवान यूनिवर्सिटी तक पहुंचते हैं।वहीं मुसलमान नौजवान 2% और हिन्दू नौजवान 8 % तक यूनिवर्सिटी तक पहुंचते हैं। कारण गरीब हिंदू मुसलमान पेट की आग को बुझाने के लिए रुपया कमाने के लिए सारे जतन जीवन भर करता रह जाता है । इस धर्म के अमीर लोग मंदिर मस्जिद बनवाने में, दान पुण्य करने में और सैर सपाटा करने में अधिक ध्यान देते हैं। अगर कहीं इक्का दुक्का यूनिवर्सिटी बनाई हुई जाती है तो उससे प्यार से हिंदू यूनिवर्सिटी, मुस्लिम यूनिवर्सिटी,  फलाना या ढिमाका यूनिवर्सिटी के नाम पर खड़ा किया जाता है । यानी सब में अलगाववादी सोच कायम रहती है। अब तो शानदार बिल्डिंग और चमचमाती यूनिवर्सिटी बनाई जाती है , जिसके नाम तो बड़े अनोखे होते हैं पर फीस इतनी महंगी होती है कि आम या गरीब हिंदू मुसलमान के बच्चे उसमें पढ़ ही नहीं पाते । मतलब शिक्षा भी कारोबार है इन देशों में।
दुनिया की 200 बड़ी यूनिवर्सिटी में से 54 अमेरिका, 24 इंग्लेंड, 17 ऑस्ट्रेलिया, 10 चीन, 10 जापान, 10 हॉलैंड, 9 फ्रांस, 8 जर्मनी, 2 भारत और 1 इस्लामी मुल्क में हैं जबकि शैक्षिक गुणवत्ता के मामले में विश्व की टॉप 200 में भारत की एक भी यूनिवर्सिटी नहीं आती है।
अब हम आर्थिक रूप से देखते हैं।अमेरिका की जी.डी.पी 14.9 ट्रिलियन डॉलर है।जबकि पूरे इस्लामिक मुल्क की कुल जी.डी.पी 3.5 ट्रिलियन डॉलर है।वहीं भारत की 1.87 ट्रिलियन डॉलर है।दुनिया में इस समय 38000 मल्टीनेशनल कम्पनियाँ हैं। इनमे से 32000 कम्पनियाँ सिर्फ अमेरिका और यूरोप में हैं।
अब तक दुनिया के 10000 बड़े अविष्कारों में 6103 अविष्कार अकेले अमेरिका में
दुनिया के 50 अमीरो में 20 अमेरिका, 5 इंग्लेंड, 3 चीन, 2 मक्सिको, 2 भारत और 1 अरब मुल्क से हैं।
अब आपको बताते हैं कि *हम हिन्दू और मुसलमान जनहित, परोपकार या समाज सेवा में भी ईसाईयों से पीछे हैं।रेडक्रॉस दुनिया का सब से बड़ा मानवीय संगठन है। इस के बारे में बताने की जरूरत नहीं है।
बिल गेट्स ने 10 बिलियन डॉलर से बिल- मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन की बुनियाद रखी जो कि पूरे विश्व के 8 करोड़ बच्चों की सेहत का ख्याल रखती है।जबकि हम जानते हैं कि भारत में कई अरबपति हैं।मुकेश अंबानी अपना घर बनाने में 4000 करोड़ खर्च कर सकते हैं और अरब का अमीर शहज़ादा अपने स्पेशल जहाज पर 500 मिलियन डॉलर खर्च कर सकता है।
राजनीतिक दलों के सेवन स्टार रेटेड कार्यालय बन जाते हैं मगर मानवीय सहायता के लिये कोई आगे नही आ सकते हैं।
यह भी जान लीजिये कि ओलंपिक खेलों में अमेरिका ही सब से अधिक गोल्ड जीतता है। हम खेलो में भी आगे नहीं।
हम अपने अतीत पर गर्व तो कर सकते हैं किन्तु व्यवहार से स्वार्थी ही हैं।
आपस में लड़ने पर अधिक विश्वास रखते हैं, मानसिक रूप से हम आज भी अविकसित और कंगाल हैं।
बस हर हर महादेव, जय श्री राम और अल्लाह हो अकबर के नारे लगाने मे हम सबसे आगे हैं। मजहबी नारे लगाने , मजहब के नाम पर लड़ ,कट ,मरने, अस्पताल , शोध संस्थाएं बनाने के बदले गार्डन, पार्क, मंदिर मस्जिद बनाने में हम लोग का भी विश्वास करते हैं । बौद्धिक रूप से हम लोग पश्चिमी देशों के मुकाबले बिल्कुल बोने और बच्चे हैं।
अब जरा सोचिये कि हमें किस तरफ अधिक ध्यान देने की जरुरत है। क्यों ना हम भी दुनिया में मजबूत स्थान और भागीदारी पाने के लिए प्रयास करें बजाय विवाद उत्पन्न करने के और हर समय हिन्दू मुस्लिम करने के?
और हां इसके लिए केवल सरकारें या राजनीति ही जिम्मेदार नहीं हैं। बल्कि सब कुछ जानते हुए आप और हम सब जिम्मेदार हैं क्योंकि हम कभी निष्पक्ष न थे और न हैं , हम भी इन्हीं बातों के भक्त बने हुए हैं।
तो तय करें :- आज से हम इंसान बनना शुरू कर दें।पढ़ना लिखना, विद्वान होना, वैज्ञानिक होना शुरू करें।   अपने अपने धर्म पर ही इतराना बंद करें, क्योंकि दोनों धर्म सिर्फ अतीत पर जीते हैं । वर्तमान की कोई उपलब्धि नहीं है । हमारे पर दादा पहलवान थे,  यही हाल है। इसी घमंड पर हम लोग छाती फुला रहे हैं ।पिछले 18 सौ साल से एक भी उपलब्धि नहीं है। साइकिल तक हम लोग नहीं बना सके। और कहेंगे कि आर्यभट्ट हमारे ही देश में पैदा हुआ। अतीत के नाम पर पीठ थपथपाना बंद करो।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें