अग्नि आलोक
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यह सिर्फ गीत की पंक्तियां है……कृपया अन्यथा न ले

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*शशिकांत गुप्ते इंदौर

पचास,साठ के दशक के फिल्मीं गाने सारगर्भित होतें थे।सत्तर के दशक के भी कुछ गाने कर्णप्रिय  लगतें हैं।पसंद अपनी अपनी ख्याल अपना अपना।बीते दिनों की याद ताजा करते हुए यकायक कुछ भूल बिसरे नगमें स्मृति पटल पर उभर आए।मैं भूले बिसरे नगमों की कुछ पक्तियां गुनगुनाने लग गया।

*कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन**बीते हुए दिन वो हाय प्यारे पल छिन*(सन 1964 में प्रदर्शित फ़िल्म *दूर गगन की छाँव में*  गीतकार शैलेन्द्र गायक किशोरकुमार)

इसी क्रम में इस गीत के ये पंक्तियों का भी स्मरण हुआ।

*जिंदगी देने वाले सुन…….**बेख़ता तूने मुझसे खुशी छीन ली**जिंदा रखा मगर जिंदगी छीन ली**कर दिया दिल का खूं…...*

(सन 1953 में प्रदर्शित फ़िल्म *दिल-ए- नादान* गीतकार शकील बदायुनी गायक तलत महमूद)

इसी सिलसिले में इस गीत की पंक्तियां भी गुनगुनाने की इच्छा हुई।

*मोहबत ही न जो समझे**वो जालिम प्यार क्या जाने

*इसी गीत ये पंक्तियां भी गुनगुनाने मन करने लगा।*

उसे कत्ल करना और तड़पाना ही आता है**गला किसका कटा,क्यों कर कटा, तलवार क्या जाने*

इसी गीत ये पंक्तियां भी गुनगुनाने की इच्छा हो गई।*दवा से फायदा होगा,के होगा

जहर-ए-कातिल से**मर्ज की दवा क्या है,ये कोई बीमार क्या जाने

*गीत का मुखड़ा पुनः गुनगुनाने लगा।

*मोहबत ही न जो समझे**वो जालिम प्यार क्या जाने*

(इस गीत के गीतकार नूर लखनवी थे।संगीतकार रामचन्द्र नरहर चिपलूनकर उर्फ सी रामचन्द्र जी थे।गायक तलत महमूद)मुझे उक्त पंक्तियां गुनगुनाते हुए सुनकर मेरी हृदयेश्वरी मुझसे कहा आपको माहौल देख कर गीत गुनगुना चाहिए।इनदिनों आप गीत की जो पंक्तियां गुनगुना रहे हो,इन्हें किसी ने सुन लिया तो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा

मैने कहा, मैं तो सिर्फ गुनगुना रहा हूँ।ये गीत मैने थोड़े ही लिखें हैं।

यह बात आप जानते हो।बात का बतंगड़ बनाने वाले नहीं जानतें हैं?सत्तर सावन खुली हवा में देख चुके हो।अब आपसे बंद हवा में रहना सम्भव नहीं होगा?आप तो दलबदल भी नहीं कर सकते हो?मैने पूछा क्यों कैसे?आप पर कोई जाँच की आंच नहीं है।आप तो कभी किसी सामाजिक संस्था तो क्या घरेलु वित्तीय प्रबंधन में भी कोषाध्यक्ष नहीं बने हो?दलबदल की एक भी योग्यता आपके पास नहीं है।

मैने पूछा दलबदल और योग्यता का,क्या सबंध है?

सबसे बड़ी अयोग्यता हॉ में हॉ मिलने की आदत आप में नहीं है।जब भी करते हो तार्किक बात करतें हो?महंगाई पर व्यंग्य लिखते हो।सर्वधर्मसमभाव की धारणा के आप पक्षधर हो।समाज के व्यापक स्वरूप में विश्वास रखते हो। जात पात को नहीं मानते हो।आप में यह भी एक अवगुण है कि, आप शिक्षित हो सिर्फ पढ़े लिखे नहीं हो।सबसे बड़ा अवगुण है आप सिर्फ इमानदार ही नहीं समझदार भी हो।

मैंने हृदयेश्वरी की मन की बात को बहुत ही ध्यान से सुना।मुझे मन की बात का महत्व आज समझ में आया।कारण हृदयेश्वरी ने मन की बात बहुत ठंग की है।तथ्यपूर्ण की है।सबसे बड़ी महत्व की बात है कि हृदयेश्वरी ने रूबरू होकर मन से मन की बात की है।रेडियो के माध्यम से नहीं की है।हृदयेश्वरी की मन की बात समाप्त होने पर वह भी वर्तमान स्थिति में एहतियात बरते हुए,बाकयदा दो गज की दूरी बनाकर  गुनगुना ने लगी।

*हाथों में तेरे मेरा हाथ रहे**जीवन में पिया तेरा साथ रहे।

*शशिकांत गुप्ते इंदौर

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