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जनाधार घटने की चिंता में अब भाजपा असंतुष्टों को उपकृत करने में जुटी ?

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भोपाल। भाजपा की फायर ब्रांड नेत्री सुश्री उमा भारती ने अपनी मेहनत और सूझबूझ के चलते इस प्रदेश से कांग्रेस की राज्य की विदाई और भाजपा को सत्ता दिलाने की जो पहल की थी हालांकि इससे पूर्व सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी, कैलाश सारंग जैसे नेता कुशभाऊ ठाकरे जैसे पितृपुरुष नेता के मार्गदर्शन में चलकर एक बार नहीं अनेकों बार सत्ता पर काबिज होने का प्रयास करते रहे, मजे की बात तो यह है कि १९९० के दशक में जरूर सुंदरलाल पटवा के नेतृत्व में भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला था लेकिन वह सरकार भी सुुंदरलाल पटवा की मनमानी और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा के चलते चंद दिनों में ही विवादों के घेरे में आ गई थी,

अगर देखा जाए तो इस प्रदेश में भाजपा के पितृपुरुष कुशाभाऊ ठाकरे व नारायण प्रसाद गुप्ता जैसे तमाम कर्मठ नेताओं की बदौलत जनसंघ के प्रभाव के चलते कुछ विधानसभा क्षेत्रों पर अपना कब्जा बनाये रखे रही लेकिन भाजपा का उदय सही मायनों में हुआ तो वह राजमाता विजयाराजे सिंधिया जिन्होंने मध्यप्रेश के लोहपुरुष मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा को सत्ता से पटकनी देकर भाजपा का साथ दिया इसके बाद भारतीय जनसंघ १९८० तक इस प्रदेश के जनमानस में प्रभाव छोड़ती रही लेकिन १९७७ में जब देश में संयुक्त विपक्षी दल की जो सरकार बनी थी उस सरकार के पतन का कारण भी उस समय के जनसंघ के नेताओं की दोहरी सदस्यता के कारण बने लेकिन १९८० के बाद जबसे भाजपा का उदय हुआ तब से लेकर आज तक ऐसा कोई भी अवसर नहीं आया जो कि उमा भारती की तरह इस प्रदेश में भारी बहुत से कायम हो सकी लेकिन भाजपा में राजनैतिक कारणों और शिवराज के सत्ता पर काबिज होने की ललक के चलते जो माहौल बना उसके बाद उन उमा भारती को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया जिन्होंने दिग्विजय सिंह जैसी सरकार को सत्ता से बेदखल करने का काम किया था उमा भारती के कार्यकाल की भाजपा के कुछ नेता बड़ी प्रशंसा करते हुए यह कहते हैं कि यदि उमा कुछ सालों और सत्ता पर काबिज रहती तो इस प्रदेश की दशा और दिशा कुछ और ही होती क्योंकि उनका पंच-ज का कार्यक्रम काफी प्रभावशाली था, लेकिन भाजपा में उस समय के जिन नेताओं ने उमा भारती को मुख्यमंत्री न बनाकर शिवराज को मुख्यमंत्री बनाने का काम किया लेकिन शिवराज उस समय पांव-पांव वाले भैया के नाम से पूरा प्रदेश जानता था उन पांव-पांव वाले भैया के कदम जैसे ही सत्ता पर पड़े तो उनकी धर्मपत्नी ने पूत के पांव पालने की तर्ज पर अपनी पहचान छुपाकर डम्पर खरीदी मामले को जो अंजाम दिया उससे इस प्रदेश के जनमानस और अधिकारी वर्ग में इस सरकार की कार्यशैली के संकेत स्पष्ट दिखाई देने लगे यदि २००७ में भारतीय जनशक्ति के तत्कालीन राष्ट्रीय महामंत्री प्रहलाद पटेल के बकौल कि ”आप स्वयं भ्रष्टाचार के जनक हैं” साथ ही उन्होंने इसी पत्र में यह भी लिखा था कि ”आपकी कमजोरी, आपकी निर्णय न ले पाने की प्रवृत्ति और झूठ बोलना, आर्थिक अपराधियों को खुला संरक्षण दे रहा है” इसी पत्र में उन्होंने आगे यह भी लिखा था कि ”आपका विकास का ढोल भूखों की भूख तो समाप्त भले ही नहीं कर पा रहा हो, भ्रष्टाचारियों का संरक्षण जरूर कर रहा है।”

शिवराज सिंह के बारे में प्रहलाद पटेल द्वारा लिखे शब्दों को भले ही बरसों हो गये हों लेकिन आज भी शिवराज की सत्ता की कार्यशैली को अक्षरश: साबित होते दिखाई दे रहे हैं शायद यही वजह रही कि चौथी बार उधार के सिंदूर से सुहागन बने शिवराज चौथी बार सत्ता पर काबिज हुए लेकिन इस दौरान इस प्रदेश के जनमानस पर शिवराज ही नहीं बल्कि भाजपा की कथनी और करनी में भी फर्क नजर आ रहा है यही वजह थी कि दमोह में हुए उपचुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा हालांकि उस करारी हार का ठीकरा भाजपा ने उसके प्रत्याशी राहुल लोधी पर फोड़कर सत्ता और संगठन के मुखिया ने अपनी जिम्मेदारी से पलड़ा झाडऩे का काम किया लेकिन मजे की बात तो यह है कि यह उपचुनाव किन-किनकी कार्यशैली से हारे इस पर तो चर्चा हुई लेकिन उन शिवराज के चहेते भूपेंद्र सिंह का नाम कहीं नहीं आया तो उनके पिछले शासनकाल में इस राज्य के परिवहन और गृह मंत्री रहे जिनकी कार्यशैली के चलते बुंदेलखंड ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में एक-एक लाख रुपये में पिस्टल के लाइसेंस, दीवाली के फटाकों की तरह किये जाने की चर्चा जोरों पर रही तो वहीं इस उपचुनाव के होने वाले मतदान के एक दिन पूर्व उन्हीं के स्टाफ की गाड़ी जिसको लेकर उसमें करोड़ों रुपये होने की खबरें सुर्खियों में रही उन भूपेंद्र सिंह पर शिवराज या संगठन के लोगों ने कोई बात करने की जहमत तक नहीं उठाई, इस उपचुनाव की हार के संबंध में एक भाजपा के बुजुर्ग नेता की बात का यदि उल्लेख न करें तो ठीक नहीं होगा उक्त नेता के अनुसार दमोह उपचुनाव में मिली करारी हार के बाद प्रदेश भाजपा की वह स्थिति हो गई कि नानी तो मर गई लेकिन मौत ने घर देख लिया,

इस हार के बाद यह भी स्पष्ट हो गया कि इस प्रदेश के जनमानस में न तो अपने आपको इस प्रदेश के भांजे भांजियों का मामा होने का ढिंढोरा पीटने वाले शिवराज सिंह की कोई पकड़ नहीं रही और न ही संगठन की तभी तो इस उपचुनाव में हार का स्वाद भाजपा को चखना पड़ा, हालांकि इस हार के बाद भोपाल से लेकर दिल्ली तक भाजपा के नेताओं में काफी चिंतन मंथन और मनन का दौर शुरू हो गया इसी दौर के चलते शिवराज सिंह की सत्ता से विदाई की खबरें भी खूब सुर्खियों में रहीं, ऐसा नहीं है कि अभी भी प्रदेश में शिवराज सिंह का आम जनता पर प्रभाव कायम है, शायद इसी को भांपते हुए अब भाजपा के असंतुष्टों को और अपनों को उपकृत करने के लिये मंत्रिमण्डल विस्तार के साथ-साथ निगम मंडलों में नियुक्तियां देने की जोर-शोर से तैयारी करने में लगी हुई है देखना अब यह है कि यह सब करने से क्या आम जनता में शिवराज और भाजपा का प्रभाव पुन: कायम होता नजर आएगा या नहीं यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन यह जरूर है कि सिंधिया और उनके समर्थकों के कांग्रेस से पाला बदलने के बाद उधार के सिंदूर से सुहागन बने शिवराज सिंह चौहान और उनके समर्थक कुछ ज्यादा ही उछल कूद करते नजर आ रहे हैं क्योंकि उन्हें तो सत्ता की चाशनी मिली है जिसका वह स्वाद लेकर आंनद उठा रहे हैं लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि इस प्रदेश के आमजन में शिवराज व भाजपा से मोह भंग हो गया है और यदि समय रहते शिवराज सिंह की कार्यशैली के चलते जो उनका फार्मूला ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार की गंगोत्री बहाने का चर्चित है उसमें यदि बदलाव नहीं आया तो आने वाला समय भाजपा के लिये संघर्षपूर्ण हो सकता है।

Ramswaroop Mantri

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