चेन्नई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (आईएलएंडएफएस) के फाउंडर, पूर्व चेयरमैन और पूर्व सीईओ रवि पार्थसारथी को जून के दुसरे हफ्ते में गिरफ्तार किया है। यह गिरफ्तारी एक लाख करोड़ रुपये के आईएलएंडएफएस घोटाले में हुई है। पार्थसारथी इस स्कैम के मास्टरमाइंड थे। यह घोटाला ही 2018 में फाइनेंशियल सर्विसेज मार्केट में लिक्विडिटी संकट की वजह बना। आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) की मानें तो पूर्व चेयरमैन रवि पार्थसारथी के नेतृत्व में आईएलएंडएफएस फ्रॉड करने का अड्डा बन गया था। भारतीय रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार पिछले सात वर्षों में बैंकों से 5000 अरब रुपये की ठगी हुई है।
पार्थसारथी ने 1987 में आईएलएंडएफएस की स्थापना की थी और 2017 में उन्होंने कंपनी छोड़ दी। आईएलएंडएफएस एकनान बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी (एनबीएफसी) है। रवि पार्थसारथी को 63 मून्स टेक्नोलॉजी लिमिटेड कंपनी द्वारा की गई शिकायत के मामले में गिरफ्तार किया गया है। इस 1 लाख करोड़ रुपये के घोटाले में 63 मून्स टेक्नोलॉजी लिमिटेड के 200 करोड़ रुपये डूब गए थे। इसके अलावा भी कई कंपनियों ने केस दर्ज कराया है, जिनके पैसे डूब गए।
रवि पार्थसारथी आईएलएंडएफएस ग्रुप के पूर्व चेयरमैन और एमडी हैं। इस ग्रुप में 350 से ज्यादा ग्रुप कंपनियां हैं। इन्हें रवि पार्थसारथी के नेतृत्व में तत्कालीन मैनेजमेंट ने घोटाला और जालसाजी करने के व्हीकल के रूप में इस्तेमाल किया। ईओडब्ल्यू जनवरी 2021 में आईएलएंडएफएस ट्रान्सपोर्टेशन नेटवर्क्स इंडिया लिमिटेड के पूर्व एमडी रामचंद करुणाकरन और पूर्व वाइस चेयरमैन व निदेशक हरिशंकरन को गिरफ्तार कर चुकी है।
रवि पार्थसारथी को पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम का करीबी कहा जाता है। पार्थसारथी पर आय की गलत जानकारी देने, संदिग्ध लेनदेन, हितों का टकराव के मामले में मुकदमा दर्ज किया गया है। आईएलएंडएफएस ग्रुप पर कुल 91,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। इस समूह की कई कंपनियों ने बैंकों का कर्ज भी नहीं चुकाया है। पार्थसारथी के खिलाफ ईडी ने भी मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत जालसाजी, धोखाधड़ी और वित्तीय अनियमितता के साथ फाइनेंशियल फ्रॉड का केस दर्ज किया है।
आईएलएंडएफएस में हुए घोटाले की जानकारी साल 2018 की जुलाई-सितंबर तिमाही में सामने आई, जब आईएलएंडएफएस की दो सहायक कंपनियों ने नकदी संकट की वजह से कर्ज के भुगतान और इंटर कॉरपोरेट डिपॉजिट्स के मामले में डिफॉल्ट करना शुरू किया। आईएलएंडएफएस कई सरकारी प्रोजेक्ट्स से जुड़ी है और इसने अपना अधिकांश कर्ज भी सरकारी कंपनियों को ही दिया है। बार-बार डिफॉल्ट होने पर कई दूसरी नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों का भी कारोबार प्रभावित हुआ और वे वित्तीय संकट का सामना करने लगीं।
एक अक्टूबर 2018 को केन्द्र सरकार ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल की ओर से एक डायरेक्टिव के जरिए आईएलएंडएफएस का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया और इसके बोर्ड को भंग कर दिया। उसके बाद बैंकर उदय कोटक की अगुवाई में एक नए बोर्ड का गठन किया गया। आरोप है कि रवि पार्थसारथी और उनकी टीम वित्तीय विवरण के अच्छे होने के सब्जबाग दिखाकर जनता को गुमराह करने, लापरवाही और अक्षमता के लिए जिम्मेदार थी। कंपनी अपने नकदी प्रवाह और भुगतान दायित्वों के बीच एक गंभीर मिसमैच को छिपाकर अपने वित्तीय विवरणों को छिपा रही थी। यह लिक्विडिटी की कमी और स्पष्ट प्रतिकूल वित्तीय अनुपात को भी छिपा रही थी।
आईएलएंडएफएस ने इंप्लॉई वेलफेयर ट्रस्ट नाम से एक ट्रस्ट बनाई थी। इसका इस्तेमाल कंपनी के डायरेक्टर्स को फायदा पहुंचाने के लिए किया जाता था। इस ट्रस्ट का इस्तेमाल आईएलएंडएफएस और इसकी ग्रुप कंपनियों में धोखाधड़ी को अंजाम देने के लिए किया गया। रवि पार्थसारथी और आईएलएंडएफएस के कुछ अन्य वरिष्ठ अधिकारी इस ट्रस्ट के प्रमुख लाभार्थी थे। पार्थसारथी ने 25 साल आईएलएंडएफएस का संचालन संभाला। आईएलएंडएफएस घोटाला देश के सबसे बड़े वित्तीय घोटालों में से एक है।
गौरतलब है कि कांग्रेस ने भारतीय रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया है कि देश की अर्थव्यवस्था को 5000 अरब डॉलर तक पहुंचाने का सपना दिखाने वाली सरकार के तहत पिछले सात वर्षों में बैंकों से 5000 अरब रुपये (पांच लाख करोड़ रुपये) की ठगी की गई। कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने यह सवाल भी किया कि केंद्र सरकार बैंकों से जालसाजी को रोकने में क्यों विफल रही और ठगी की रकम की वसूली के लिए वह क्या कदम उठा रही है?
उन्होंने डिजिटल संवाददाता सम्मेलन में कहा कि हाल ही में रिजर्व बैंक ने 2020-2021 के लिए अपनी रिपोर्ट जारी की है। इसमें अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति को लेकर कई चौंकाने वाले आंकड़े आने वाले हैं। इनमें बैंकों से ठगी से जुड़े आंकड़े भी हैं।’’ कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘ बैंक ठगी के मामलों में 2014-2015 के बाद तेज वृद्धि हुई है। अकेले 2020-21 में 1.38 लाख करोड़ रुपये की ठगी की गई। 2014-15 के मुकाबले ठगी की राशि 2014-15 एवं 2019-20 के बीच 57 फीसदी की दर से बढ़ी।
उन्होंने दावा किया कि अर्थव्यवस्था को पांच हजार अरब डॉलर तक पहुंचाने का सपना दिखाने वाली नरेंद्र मोदी सरकार यह कर नहीं पाई, लेकिन उसके शासन में सात वर्षों में बैंकों से करीब 5000 अरब रुपये की ठगी की गई है। कांग्रेस प्रवक्ता ने सवाल किया कि पिछले सात वर्षों में मोदी सरकार बैंकों के साथ ठगी रोकने में विफल क्यों हो गई? ठगी के सभी मामलों में रकम को वापस हासिल करने के लिए सरकार क्या कर रही है?