सुसंस्कृति परिहार
हालांकि इन दिनों कोरोनावायरस की तीसरी लहर से बचने की हिदायतें और तैयारियां चारों ओर ज़ोरशोर से चल रही हैं ये लहर कितनी खतरनाक है ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन मैं जिस ख़तरे से आपको आगाह कराना चाह रही हूं वह राष्ट्रीय सुरक्षा कानून है।जिसे रासुका कहा जाता है अंग्रेजी में इसे एन एस ए कहते हैं।राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम-1980, देश की सुरक्षा के लिए सरकार को अधिक शक्ति देने से संबंधित एक कानून है। यह कानून केंद्र और राज्य सरकार को गिरफ्तारी का आदेश देता है।रासुका के तहत किसी भी व्यक्ति को 12 महीने तक बिना किसी आरोप के हिरासत में रखा जा सकता है. हालांकि इसके लिए प्रशासन को यह बताना होता है कि वह व्यक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा या कानून व्यवस्था के लिए खतरा साबित हो सकता है. तीन महीने से ज्यादा समय तक जेल में रखने के लिए सलाहकार बोर्ड की मंजूरी लेनी पड़ती है।रासुका में संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी आरोप के 12 महीने तक जेल में रखा जा सकता है. अभी हाल में ही योगी सरकार ने इसके तहत मेडिकल व पैरा मेडिकल स्टाफ, स्वच्छता और पुलिसकर्मियों समेत अन्य कोरोना वॉरियर्स पर हमला करने वालों पर पांच लाख रुपए का जुर्माना व सात साल की सजा का प्रावधान रखा गया है।
रासुका उन अपराधियों पर लगाया जाता है जिनकी गतिविधियों से राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा पैदा हो या उनके किसी कृत्य से आम जनमानस में असुरक्षा की भावना पैदा हो और कोई गंभीर स्थिति उत्पन्न होने की आशंका हो। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून ऐसे व्यक्ति को पुलिस द्वारा हिरासत में लेने का अधिकार प्रदान करता है जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा को तोड़ने या नुकसान पहुंचाने जैसा कोई गंभीर कृत्य किया हो। किसी व्यक्ति पर रासुका की कार्यवाही तय होने पर उसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान है। रासुका ऐसे व्यक्ति पर भी लगायी जा सकती है जो राष्ट्रीय गतिविधियों को नुकसान पहुंचाने की चेष्टा करता हो और उससे राष्ट्र को खतरा उत्पन्न हो।
लेकिन पिछले माह मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम और राजनीतिक कार्यकर्ता एरेंड्रो लीचोम्बम को कोरोना के कारण हुई बीजेपी नेता की मौत को लेकर सोशल मीडिया पर विवादास्पद पोस्ट करना भारी पड़ गया। राज्य भाजपा के उपाध्यक्ष उषाम देबन और महासचिव पी प्रेमानंद मीतेई की शिकायत पर पुलिस ने दोनों को उनके घरों से गिरफ्तार कर लिया है। दोनों पर ‘राष्ट्रीय सुरक्षा कानून‘ (एनएसए) लगाया गया है। इस गिरफ्तारी को लेकर तमाम पत्रकार और मानवाधिकार संगठनों ने सरकार की आलोचना की है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले गुरुवार को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सैखोम टिकेंद्र सिंह का कोरोना से निधन हो गया था और उसी दिन दोनों ने आपत्तिजनक पोस्ट की थी। किशोरचंद्र वांगखेम ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में लिखा था, ‘गोबर और गोमूत्र काम नहीं आया। यह दलील निराधार है। कल मैं मछली खाऊंगा।‘
वहीं राजनीतिक कार्यकर्ता एरेन्ड्रो ने अपनी फ़ेसबुक पोस्ट पर लिखा था, ‘गोबर और गोमूत्र से कोरोना का इलाज नहीं होता है। विज्ञान से ही इलाज संभव है और यह सामान्य ज्ञान की बात है। प्रोफेसर जी आरआईपी।‘
वांगखेम और लीचोम्बम को इससे पहले दो बार देशद्रोह और सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया पर विभिन्न पोस्ट करने के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है।
तो साथियों है ना ये बेहद ख़तरनाक ख़बर। मुझे तो लगता है अब किसी कम अक्ल वाले को गोबर गणेश कहना भी मंहगा पड़ सकता है।गोबर अब सिर्फ कंडे बनाने और खाद बनाने की चीज़ नहीं रही वह दवा है कोरोनावायरस की उसे गौ मूत्र के साथ लिया जाए तो फिर कहना ही क्या ? साध्वी सांसद प्रज्ञा जी के मतानुसार इसके रोजाना सेवन से कोरोनावायरस नहीं हो सकता।कई संस्थान तो बाकायदा गोबर और गोमूत्र के धंधे में लग गए हैं।पता नहीं वांगखेम और एरेन्डो किस दुनिया में रहते हैं जो इस देशीय चिकित्सा पद्धति को मजाक समझ बैठे और विज्ञान से इसकी तुलना करते हुए इसे नकार दिए और आज रा सु का के चपेटे में आ गए ।
इसलिए सावधान रहें ,बच के रहें गाय माता ही नहीं उनसे निसृत तमाम चीजों को पूज्यनीय वस्तु मानें ।गोबर फेंक कर किसी का अपमान ना करें। होली में अक्सर ये दृश्य देखने मिल जाते हैं। कई शिक्षक अपने छात्रों को गोबर गणेश तो कहते ही हैं साथ ही कह देते हैं दिमाग में गोबर भरा है क्या ? वगैरह वगैरह ये गंदी आदत छोड़ दीजिए वरना रासुका के हाथ बहुत लंबे हैं ।सब चौकड़ी भूल जाओगे।
आज का दौर कमल का है जो कीचड़ में खिलता है ।कचरे से ऊर्जा तैयार होती है।कहते हैं घूरे के दिन भी फिरते हैं आज घूरे पर बिकने वाले गोबर के दिन फिरे वह रसूखदार पोजीशन में है उसका अपमान नाकाबिले बर्दाश्त होगा ।गोबर के गुबरीला बन जाओ।उसी संग जीना मरना सीखो वह अमृत मंथन में निकली औषधि ही है ।उसकी तुलना विज्ञान से हर्गिज नहीं हो सकती है।ज्यादा पढ़ने लिखने वालों से अपील है वे विज्ञान का ज्ञान लेकर उड़े नहीं वरना एक दिन धरे जाएंगे पुलिस के हत्थे तब होश ठिकाने आ जायेंगे।दोष हमारा है हम कीचड़ गंदगी पसंद लोग जो ठहरे और कीचड़ की सुरक्षा में अवरोध डालना जुर्म है।ये समझ लें।आमीन।रब्बा ख़ैर करे।