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जनसंख्या बिल : जनता के खिलाफ युद्ध की घोषणा

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रजनीश भारती

शोषकवर्ग की मौजूदा सरकारें एक तरफ निजीकरण, उदारीकरण, वैश्वीकरण की नीतियों के तहत रोजगार के बचे-खुचे अवसरों को निगलती जा रही है दूसरी तरफ वे यह प्रचार कर रही है कि बढ़ती जनसंख्या ही बेरोजगारी की जड़ है। 
अभी तक भाजपा के धूर्त्त नेता और अंध भक्त कह रहे थे कि बेरोजगारी, गरीबी, मंहगाई आदि के लिए यह पूंजीवादी व्यवस्था नहीं बल्कि कांग्रेस जिम्मेदार है। जब जनता इनसे पूछने लगी है कि अब तो तुम्हारा “रामराज” आ गया फिर भी ये मंहगाई, बेरोजगारी… क्यों बढ़ती जा रही? तो अब यही धूर्त्त लोग जनसंख्या बिल के बहाने यह सिद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘उक्त सारी समस्याओं का कारण बढ़ती जनसंख्या है और इसके लिए मौजूदा शोषकवर्ग दोषी नहीं है बल्कि इसके लिए जनता खास तौर से मजदूर, किसान, छोटे दुकानदार, बुनकर लोग स्वयं दोषी हैं। क्योंकि वे बच्चे पैदा करके जनसंख्या बढ़ा रहे हैं।’

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इस प्रकार वे मेहनतकश जनता के खिलाफ एक ऐसा खतरनाक माहौल बनाना चाहते हैं कि कि लोग मेहनतकशों को ही गरीबी, मंहगाई, बेरोजगारी एवं भ्रष्टाचार आदि समस्याओं को बढ़ाने वाला समझ कर उनसे घृणा करें ताकि उनके विरुद्ध शोषण, दमन, उत्पीड़न को जायज ठहराया जा सके तथा उनकी आत्महत्या और हत्या तक को बढ़ावा दिया जा सके। तथा शोषकवर्ग द्वारा किये जा रहे गोधरा काण्ड, पुलवामा अटैक, 1947 के दंगे, 1971 के दंगे 1984 के दंगे, बाथे, आज के कोरोना महामारी में लापरवाही करके की गयी हत्याओं और इन जैसे तमाम नरसंहारों को जायज ठहराया जा सके इस प्रकार प्रस्तावित जनसंख्या बिल शोषकवर्ग द्वारा मेहनतकश जनता के खिलाफ खुलेआम युद्ध की घोषणा है।
भारत के शोषकवर्गों के लिए यह कोई नई बात नहीं है। पांच दशक पहले इन्दिरा गांधी ने लोकसभा के आम चुनाव में गरीबी हटाओ का नारा दिया था, और सरकार बनाने के बाद गरीबी का कारण बताया- “बढ़ती जनसंख्या”। अरबों खरबों रूपये परिवार नियोजन पर खर्च कर दिया। मगर तब से आज तक जनसंख्या बढ़कर लगभग अढ़ाई गुना हो गई। दरअसल उनके परिवार नियोजन का उद्देश्य जनसंख्या कम करना नहीं था वे तो इसकी आड़ में जनता के दिमाग में माल्थुस के इस झूठ स्थापित करना चाहती थीं कि “पूंजीवादी व्यवस्था की वजह से गरीबी नहीं है, बल्कि मजदूरों किसानों ने अधिक बच्चा पैदा कर दिया है जिसकी वजह से गरीबी, तंगहाली, भुखमरी, बेरोजगारी आदि समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।” इस दुष्प्रचार की ही देन है कि आज के बेरोजगार युवा अपनी बेरोजगारी के लिए जनसंख्या को कारण बताकर अप्रत्यक्ष तौर पर अपने मां-बाप को ही दोषी बता रहे हैं, क्योंकि उनके मां-बाप ने ही तो उनको पैदा करके जनसंख्या बढ़ा दिया है।
पादरी माल्थुस(1809) का झूठ तो उसके जीवनकाल में ही बेनकाब हो चुका था। मगर शोषक वर्ग आज भी बड़ी बेशर्मी से उस झूठ का प्रचार कर रहा है। माल्थुस के सामने ही मार्क्स ने आंकड़ों के साथ उसके जनसंख्या सिद्धान्त की बखिया उधेड़ दी थी। और बड़े क्रोध और आवेग में कहा था- “निरा कमीनापन माल्थुस की खास आदत है इस कमीनेपन पर कोई पादरी ही उतर सकता है, जो मनुष्य की पीड़ा को आदिम पाप का फल बताता है।” 
भारत में जनसंख्या वृद्धि एक समस्या है। इसका कारण खोजना हो तो जरा उन समुदायों को देखिये, जिन समुदायों में गरीबी ज्यादा है। आप देखेंगे कि जहां गरीबी ज्यादा है वहां अशिक्षा भी ज्यादा है, उन समुदायों में बच्चे भी ज्यादा पैदा होते रहे हैं। अत: जनसंख्या वृद्धि से गरीबी नहीं पैदा होती बल्कि गरीबी से ही जनसंख्या वृद्धि होती है। अत: जनसंख्या वृद्धि को रोकना है तो अमीरी और गरीबी की खाईं को पाटना होगा। अत: बच्चे पैदा करने वाले गरीब लोग दोषी नहीं हैं बल्कि गरीबी पैदा करने वाले अमीर लोग ही सारी समस्याओं के लिए दोषी हैं।
भारत की पिछड़ी एवं सड़कर बजबजाती हुई पूंजीवादी व्यवस्था की क्या बिसात भारत के मुकाबले बहुत कम जनसंख्या घनत्व वाला ताकतवर देश अमेरिका भी अपनी बहुसंख्यक जनता को गरीबी तंगहाली भुखमरी से बाहर नहीं निकाल पाया। भारत की तरह वहां भी मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सूदखोरी, जमाखोरी, आदि अनेकों तरह से जनता का शोषण, दमन, उत्पीड़न भयानक रूप में जारी है।
दरअसल पूंजीवादी व्यवस्था “थोड़े से लोगों के लिए, थोड़े से लोगों द्वारा, थोड़ा सा ही उत्पादन” कर सकती है। यह व्यवस्था बहुसंख्यक लोगों को बेरोजगार बनाकर अभाव की जिन्दगी जीने के लिए बाध्य करती ही है। अत: इन्कलाब के जरिये इस व्यवस्था को पलट कर समाजवाद लाए बगैर हम मेहनतकशों की किसी भी समस्या का समाधान सम्भव नहीं है।
*रजनीश भारती**राष्ट्रीय जनवादी मोर्चा उ. प्र.*

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