नई दिल्ली
कृषि कानूनों की रद्द करने की मांग को लेकर किसानों ने जंतर-मंतर पर गुरुवार को किसान संसद लगाई। इस दौरान किसान नेता राकेश टिकैत सहित सभी किसान तीनों कानून रद्द करने की मांग पर अड़े रहे। इस बीच सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने कहा कि ब्रिटेन की संसद में इस पर बहस हो रही, लेकिन हमारी सरकार इस मुद्दे पर खामोश है।
26 जनवरी को दिल्ली में उग्र प्रदर्शन के बावजूद दिल्ली सरकार ने किसानों को एंट्री की इजाजत दी है। यह परमिशन 22 जुलाई से लेकर 9 अगस्त तक है। दिल्ली डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने शर्तों के साथ प्रदर्शन की मंजूरी दी है।
भारतीय किसान यूनियन (BKU) के लीडर राकेश टिकैत पहले वे सिंघु बॉर्डर पहुंचे थे। यहां से बसों के जरिए वे किसानों के साथ जंतर-मंतर आए। प्रदर्शन में सिर्फ 200 किसान शामिल हुए। वे जंतर-मंतर पर किसान संसद लगाएंगे। राकेश टिकैत ने कहा कि हम मानसून सत्र की कार्यवाही पर भी नजर रखेंगे।
कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली के बॉर्डर पर जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे किसान सिंघु बॉर्डर पर पहुंच रहे हैं। दिल्ली में जंतर-मंतर और बॉर्डर पर सिक्युरिटी बढ़ा दी गई है। पुलिस ने किसानों को इस शर्त पर प्रदर्शन की इजाजत दी है कि वो संसद तक कोई मार्च नहीं निकालेंगे।
हरसिमत कौर बोलीं- 500 से ज्यादा किसानों की मौत हुई
शिरोमणि अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल ने कहा कि किसान दिल्ली बॉर्डर पर 8 महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं। 500 से ज्यादा किसानों की इस प्रदर्शन में मौत हो चुकी है। फिर भी सरकार को किसानों की कोई चिंता नहीं है। वे लोग कृषि कानून वापस लेने को तैयार नहीं हैं। यदि बातचीत भी की जाती है तो उसका मुद्दा क्या होगा।
उन्होंने कहा कि किसानों के प्रतिनिधि को संसद में अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया जा रहा है। मंत्री किसानों से बात करने की इच्छा तो व्यक्त करते हैं, लेकिन असल में वो ये करना नहीं चाहते।
26 जनवरी को रैली में हुई थी हिंसा
इसी साल 26 जनवरी को लाल किले तक किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के बाद उन्हें पहली बार दिल्ली में प्रदर्शन की इजाजत मिली है। 26 जनवरी की रैली के दौरान प्रदर्शनकारी उग्र हो गए थे और कई उपद्रवियों ने लाल किले में घुसकर पुलिसकर्मियों से मारपीट की थी और किले की प्राचीर पर धार्मिक झंडा भी फहरा दिया था।
केंद्र और किसान दोनों अड़े
देश के किसान नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले साल दिसंबर से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। इस दौरान किसान संगठनों की केंद्र सरकार से 12 दौर की बातचीत भी हो चुकी है, लेकिन कोई समाधान नहीं निकल सका है। किसान तीनों कृषि कानून रद्द करने की मांग पर अड़े हैं। वहीं केंद्र सरकार का कहना है कि वह किसानों की मांगों के मुताबिक कानूनों में बदलाव कर सकती है, लेकिन कानून वापस नहीं लिए जाएंगे।
किसानों और सरकार के बीच 12 दौर की बातचीत
पहली बैठक: 14 अक्टूबर
क्या हुआः मीटिंग में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की जगह कृषि सचिव आए। किसान संगठनों ने मीटिंग का बायकॉट कर दिया। वो कृषि मंत्री से ही बात करना चाहते थे।
दूसरी बैठक: 13 नवंबर
क्या हुआः कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रेल मंत्री पीयूष गोयल ने किसान संगठनों के साथ मीटिंग की। 7 घंटे तक बातचीत चली, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
तीसरी बैठक: 1 दिसंबर
क्या हुआः तीन घंटे बात हुई। सरकार ने एक्सपर्ट कमेटी बनाने का सुझाव दिया, लेकिन किसान संगठन तीनों कानून रद्द करने की मांग पर ही अड़े रहे।
चौथी बैठक: 3 दिसंबर
क्या हुआः साढ़े 7 घंटे तक बातचीत चली। सरकार ने वादा किया कि MSP से छेड़छाड़ नहीं होगी। किसानों का कहना था कि सरकार तीनों कानून भी रद्द करे।
पांचवीं बैठक: 5 दिसंबर
क्या हुआः सरकार MSP पर लिखित गारंटी देने को तैयार हुई, लेकिन किसानों ने साफ कहा कि कानून रद्द करने पर सरकार हां या न में जवाब दे।
छठवीं बैठक: 8 दिसंबर
क्या हुआः भारत बंद के दिन ही गृह मंत्री अमित शाह ने बैठक की। अगले दिन सरकार ने 22 पेज का प्रस्ताव दिया, लेकिन किसान संगठनों ने इसे ठुकरा दिया।
सातवीं बैठक: 30 दिसंबर
क्या हुआ: नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल ने किसान संगठनों के 40 प्रतिनिधियों के साथ बैठक की। दो मुद्दों पर मतभेद कायम, लेकिन दो पर रजामंदी बनी।
आठवीं बैठक: 4 जनवरी
क्या हुआ: 4 घंटे चली बैठक में किसान कानून वापसी की मांग पर अड़े रहे। मीटिंग खत्म होने के बाद कृषि मंत्री ने कहा कि ताली दोनों हाथों से बजती है।
नौवीं बैठक: 8 जनवरी
क्या हुआ: बातचीत बेनतीजा रही। किसानों ने बैठक में तल्ख रुख अपनाया। बैठक में किसान नेताओं ने पोस्टर भी लगाए, जिन पर गुरुमुखी में लिखा था- मरेंगे या जीतेंगे।
दसवीं बैठक: 15 जनवरी
क्या हुआ: मीटिंग करीब 4 घंटे चली। किसान कानून वापसी पर अड़े रहे। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि आपको भी सरकार की कुछ बातें माननी चाहिए।
11वीं बैठक: 20 जनवरी
क्या हुआ: केंद्र ने किसानों के सामने प्रस्ताव रखा कि डेढ़ साल तक कानून लागू नहीं किए जाएंगे। इसके अलावा MSP पर बातचीत के लिए कमेटी बनाएंगे।
12वीं बैठक: 22 जनवरी
क्या हुआ: 5 घंटे बैठक चली, लेकिन आमने-सामने 30 मिनट भी बातचीत नहीं हुई। सरकार ने किसानों से कहा कि नए कानूनों में कोई कमी नहीं है। आप अगर किसी निर्णय पर पहुंचते हैं तो बताएं। इस पर फिर हम चर्चा करेंगे।