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सड़क, संसद, विपक्ष और लोकतंत्र?

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शशिकांत गुप्ते

पचास,साठ और सत्तर के दशक में तात्कालीन सरकार के विरोध में नारे लगते थे जब से यह सरकार आई है कमरतोड़ महंगाई है। रोटी रोजी दे सकी वो सरकार निकम्मी है,जो सरकार निकम्मी है, वो सरकार बदलनी है
दिए वचन से क्यों इनकार बोल रे फलाँ सरकार
यह सिलसिला अस्सी के दशक में भी रहा है,नब्बे के दशक के बाद में तो सड़क पर संघर्ष फैशनेबल बन कर रहा गया।
उन दिनों आमसभाओं का प्रचलन था। जिसे आज रैलियां कहा जाता है।
आमसभा के स्थान की सूचना मात्र प्रशासन को दी जाती थी।प्रशासन से
आमसभा की सूचना तांगे या रिक्शा के माध्यम से दी जाती थी।
रिक्शा पर लाउडस्पीकर बांध कर रिक्शा में कार्यकर्ता बैठकर इस प्रकार अनाउंसमेंट करता था।
आज शाम 7 बजे जनता चौक में आमसभा का आयोजन किया गया है।आमसभा में सरकार के काले कार नामो का भांडा फोड़ किया जाएगा। आमसभा को फलाँ फलाँ वक्ता संबोधित करेंगे।
यह माहौल लोकतंत्र की पहचान थी।
आमसभा किसी भी दल के द्वारा आयोजित हो सभी दलों के लोग सुनते थे।
उक्त माहौल अब सिर्फ इतिहास में जमा हो रहा है।
इस मुद्दे पर एक नारा याद आता है। सच कहना अगर बगावत है,तो समझों हम भी बागी है
अब तो बागी नहीं सीधे देश द्रोही करार दिया जाता है।
सन 1974 में गुजरात से शुरू हुए आंदोलन देशव्यापी हो गया था।
समाजवादियों द्वारा अहिंसक तरीके आंदोलन किया जाता था।
उस समय यह नारा भी बहुत प्रचलित था। हमला चाहे जैसा होगा हाथ हमारा नहीं उठेगा
आंदोलन करी दोनो हाथ पीछे बांध मुँह पर पट्टी बांधकर सड़क पर निकलते थे।
तात्कालिक समय में विपक्ष के सदस्यों की पक्ष के लोग भी स्तुति करते थे।
डॉ लोहियाजी को तो संसद के सदन में अटलबिहारी वाजपेयीजी ने भी अपने चौदह मिनिट दे दिए थे।
जब संसद चलती तब समाचार पत्रों का लोग आतुरता से इंतजार करतें थे। विपक्ष ने नेताओ वक्तव्य पढ़ने के लिए।
रेडिओ पर समाचार बहुत ही गम्भीरता से सुने जातें थे।
विपक्ष तादाद में बहुत कम था, लेकिन मुखर होकर बहुत ही मजबूती से विरोध करता था।
डॉ लोहियाजी ने कहा था कि, जब सड़क गूंजेगी तो संसद बोलेगी
सड़क मौन होगी तो संसद बहरी होगी
आज तो लिखना बोलना दिखाना ही जोखिम का काम हो गया है।
लोकतंत्र में विपक्ष का बहुत महत्व होता है।विपक्ष अर्थात सिर्फ कोई राजनीतिक दल नहीं होता है।लोकतंत्र में समाचार माध्यम भी विपक्ष का मजबूत स्तम्भ होता है।देश का हरएक व्यक्ति जो अपने संविधानिक हक़ के प्रति जागरूक होता है और सत्ता की गलत नीतियों का विरोध करता है, वह भी विपक्ष की ही भूमिका में रहता है।
इनदिनों एक सुनियोजित साजिश के तहत विपक्ष को दरकिनार किया जा रहा है।
असहमति तो लोकतंत्र की बुनियाद है।
उपर्युक्त मुद्दे लोकतंत्र के लिए गम्भीर प्रश्न उपस्थित करतें हैं।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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