सुसंस्कृति परिहार
आम जनता में यह भावना बलवती होती जा रही थी कि राजनीति में अपराधियों के लिए ही जगह है क्योंकि वे ही अपनी दहशत की दम पर चुनाव जीत लेते हैं और फिर लूट का इतिहास रचते हैं साथ ही साथ समाज में सम्मानित होते हैं।अब तक प्राय:सभी राजनैतिक दलों ने ऐसे लोगों को महत्व देकर जनतिनिधि बनाया है और सरकार में आते ही उनके अपराधों को शान से वापस भी लिया है। लोकतंत्र में ऐसे लोगों के प्रवेश से गहरा धक्का लगा।अब तो इसे सहजता से लिया जाने लगा था। सबसे दुखद पहलू तो तब देश के लोकतांत्रिक इतिहास में प्रविष्ट होता है जब सन् 2002 के नरसंहार के अपराधी देश के सिरमौर बन जाते हैं । उनके मामले ख़त्म होते हैं और फिर उन मामलों की पुनः तहकीकात करने वाले जज की कथित तौर पर हत्या कर दी जाती है। बेदाग बरी करने वाले जज साहिब को सरकार उपकृत भी करती है।सब सच सामने है लेकिन वह अब तक सब चुपचाप देखता रहा है किंतु कहते हैं कि झूठ और गलत की उम्र ज़्यादा नहीं होती ।
पिछले 09अगस्त के क्रांतिकारी दिन सुप्रीम कोर्ट यह निर्देश देता है कि ” बिना संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय की अनुमति के सांसदों और विधायकों के खिलाफ सरकार कोई मुकदमा वापस नहीं ले सकेगी।”उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री सहित कई मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लिये गए हैं। इनमे से कई मुकदमे आईपीसी की संगीन धाराओं के हैं।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की खंडपीठ ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों की पेंडेंसी और विशेष अदालतों की स्थापना कर, मुकदमो के शीघ्र डिस्पोजल के संबंध में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि, ” जिन विशेष न्यायालयों में सांसदों/विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों की सुनवाई चल रही है, वे न्यायिक और पीठासीन अधिकारी, सर्वोच्च न्यायालय के अगले आदेश तक अपने वर्तमान पदों पर बने रहेंगे। यह निर्देश विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई कर रहे न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति या मृत्यु तक बना रहेगा।”यानी यदि न्यायिक अधिकारी बदलना है तो सुप्रीम कोर्ट से पूछना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने ये बड़ा कदम एमिक्स क्यूरी विजय हंसारिया की रिपोर्ट पर उठाया. इसके मुताबिक- यूपी सरकार मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी बीजेपी विधायकों के खिलाफ 76 मामले वापस लेना चाहती है. कर्नाटक सरकार विधायकों के खिलाफ 61 मामलों को वापस लेना चाहती है. उतराखंड और महाराष्ट्र सरकार भी इसी तरह केस वापस लेना चाहती हैं।
उधर, बिहार चुनाव से जुड़े अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 9 दलों को दोषी ठहराते हुए यह फैसला दिया है कि उम्मीदवार चुने जाने के 48 घंटे के भीतर आपराधिक उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि हर हाल में सार्वजनिक करनी होगी। अवमानना के 9 दोषी दलों में से 8 पर आर्थिक जुर्माना भी ठोका।बहुजन समाज पार्टी को छोड़कर,सात प्रमुख दलों पर एक लाख जुर्माना तथा माकपा और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी पर 5-5लाख का जुर्माना लगाया गया है ।
ये दोनों फैसले लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने ,जनता का विश्वास हासिल करने तथा राजनीति में बढ़ रहे अपराधीकरण को कम करने के लिहाज से ऐतिहासिक है। अपराधियों की पृष्ठभूमि सार्वजनिक किए जाने पर कोर्ट सख्त है वह चाहता है इसे सर्वाधिक प्रचारित मीडिया में प्रकाशित और प्रसारित किया जाए,सोशल मीडिया में भी भेजा जाए।इन फैसलों पर अमल हेतु भी सुको को पहल करनी होगी।एक कमेटी इसकी निगरानी करे ,क्योंकि अपराधी मानसिकता के लोग हर हाल में इस फैसले से नाखुश होंगे और वे कितना और गिर सकते हैं इसकी कल्पना करना मुश्किल है।
बहरहाल जनमानस की एक महत्वपूर्ण चाहत को सु को ने पूरा किया है। राजनैतिक अपराधियों के बीच एक उम्मीद की किरण जो सुको ने दिखाई है । इन्हीं रश्मियों से नया सबेरा जन्मेगा ऐसा विश्वास है।