शशिकांत गुप्ते
हम जागरूक हैं।बहुत जागरूक हैं।होना भी चाहिए।हम अपने धर्म के प्रति आस्थावान भी हैं।बहुत ज्यादा ही आस्थावान होते जा रहे हैं।आस्था रखना भी अच्छा गुण है।
सच्ची आस्था जागृत होती है,तो मानव में मानवीयता आ जाती है।मानवीयता जागृत होने से मानव के आचरण में सभ्यता आ जाती है।मानव सहिष्णु बनता है।मानव में सहिष्णुता आ जाने से वह कभी क्रोध नहीं कर सकता है।क्रोध ही तो हिंसा में परिवर्तित होता है।हिंसा अमानवीय प्रवृत्ति है।अमानवीय प्रवृत्ति हिंसा को आतंक में बदल देती है।मानव जब आतंकी हो जाता है,तो उनमें वहशियत आ जाती है।वहशियत क्रूरता की जनक है।आश्चर्य होता है,उक्त सारे कृत्य आस्था के नाम पर होतें हैं।
सन 1974 में पदर्शित फ़िल्म रोटी के गीत यह पंक्तियां याद आती है।गीतकार आनंद बक्शी क्या खूब लिखा है।
यार हमारी बात सुनो, ऐसा इक इंसान चुनो
जिसने पाप ना किया हो, जो पापी ना हो
इस पापन को आज सजा देंगे, मिलकर हम सारे
लेकिन जो पापी न हो, वो पहला पत्थर मारे
राम भगवान ने रावण का वध करने के पूर्व रावण को समझाने के लिए अपने दूत भेजे थे।हनूमानजी को भेजा।अंगद को भेजा।सीधे जाकर रावण का वध नहीं किया।
रावण जब घायल अवस्था मे रणभूमि पर पड़ा था।तब रामजी ने अपने भाई लक्ष्मण को रावण के पास नीति सीखने के लिए भेजा था।
राम ने रावण का वध कर दानवी प्रवृत्ति को खत्म किया।
वर्तमान में दानवी प्रवृत्ति का प्रदर्शन करतें हुए हम राम जी जय जय कार कर रहें हैं,और हिंसक दबाव बनाकर लोगों से जय जय कार बुलवा रहें हैं।
राम भगवान तो मर्यादापुरुषोत्तम थे।आज हम रामजी का ही नाम लेकर सारी मानवीय मर्यादाओं को लांघ रहें है।अमर्यादित आचरण को हम आस्था का प्रतीक बनाने की चेष्ठा कर रहें हैं।
मानव में जागरूकता तो आनी ही चाहिए।जागरूकता शोषण के विरुद्ध हो।महंगाई जैसे बुनियादी मुद्दे के लिए जागरूकता हो।शिक्षा का व्यापारिकरण हो रहा है, उसके विरुद्ध जागरूकता हो।चिकित्सा क्षेत्र की लूट को समाप्त करने के लिए जागरूकता हो तो समझ में आता है।
अपनी लकीर को बड़ा करना चाहिए।दूसरों की लकीर मिटाना ही कमजोर मानसिकता का द्योतक है।
राम ने हंस कर सब सुख त्यागे
तुम सब दुःख से डर के भागे
अंत में ऊपर वाले से यही प्रार्थना है।
खुदा हमें ऐसी खुदाई न दे
कि हमारे शिवाय कुछ दिखाई न दे
शशिकांत गुप्ते इंदौर