अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

सबको समझ है कि स्टे ऑर्डर और उसके साथ जुड़ी कमेटी किसान के लिए एक सुंदर रेशम का फंदा है

Share

योगेन्द्र यादव

जिसे आशा की किरण समझा था वो रेशम का फंदा निकला। सुप्रीम कोर्ट में किसान आंदोलन को लेकर हुई सुनवाई और कोर्ट के आदेश के बाद किसान के मन की बात यही है। दिल्ली के चारों और बैठे आंदोलनकारी किसान अपने आप को ठगा-सा महसूस कर रहे हैं। लेकिन यह निराशा उनके संकल्प को कमजोर करने की बजाय और मजबूत कर रही है। सुप्रीम कोर्ट के मुकदमे को लेकर किसान शुरू से सशंकित थे। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला कुछ गुमनाम लोगों द्वारा किए मुकदमे से खड़ा हुआ। किसान की शंका और भी गहरी हो गई जब उसने देखा कि हरीश साल्वे जैसै सरकार समर्थक वकील अचानक इस गुमनाम याचिका के पक्ष में खड़े हो गए। याचिका में यह मांग की गई थी कि किसानों को मोर्चे से उठा दिया जाए। किसान का संदेह गहरा हुआ जब आठवें दौर की बातचीत में तो मंत्री जी ने साफ-साफ बोल दिया अब मामले को सुप्रीम कोर्ट सुलझाएगा। किसान हैरान थे कि सरकार अपनी जिम्मेदारी कोर्ट पर क्यों डाल रही है? सरकार की मंशा साफ है: सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे। यानी किसी तरह से किसानों का मोर्चा खत्म हो जाए और ये तीन कानून रद्द भी ना करना पड़ें।

किसानों के मन में सवाल उठा: कहीं सरकार जो काम विज्ञान भवन में नहीं करवा पा रही उसे सुप्रीम कोर्ट से करवाने की चेष्टा तो नहीं कर रही? जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई तो किसानों का डर कुछ कम हुआ। मुख्य न्यायाधीश की कड़ी टिप्पणियों से उम्मीद बंधी। कोर्ट ने सरकार से पूछा कि बिना किसानों से राय-बात किए इतना बड़ा कानून क्यों लाए?

कोर्ट में ठंड में प्रदर्शन कर रहे किसानों की अवस्था पर चिंता जाहिर की, किसानों की शहादत का जिक्र किया। कोर्ट ने शांतिपूर्वक तरीके से प्रदर्शन करने के किसानों के अधिकार को स्वीकार किया। आंदोलनकारी किसानों को लगा जैसे उनके जख्म पर किसी ने मलहम लगाई हो। फिर जब कोर्ट ने तीनों कानूनों पर स्टे ऑर्डर का इरादा जताया तो किसान की उम्मीद बंधी। वह जानता है कि स्टे ऑर्डर अस्थाई है लेकिन उसे लगा कि चलो कम से कम सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कानूनों में कुछ गड़बड़ है। किसान नेताओं ने नोटिस किया कि कानूनों को स्टे नहीं किया, केवल क्रियान्वयन पर स्टे लगा है। यानी कोर्ट ने कानूनों की संवैधानिकता पर कोई सवाल नहीं उठाया। ज्यादातर किसानों ने इस बारीकी पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन किसानों का माथा ठनका जब कोर्ट ने कमेटी की बात शुरू की। किसान शुरू से ही ऐसी किसी कमेटी का विरोध करते रहे हैं। इसलिए किसानों ने स्पष्ट कर दिया कि हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं, लेकिन हमने इस मामले में मध्यस्थता के लिए सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना नहीं की है और ऐसी किसी कमेटी से हमारा कोई संबंध नहीं है।

कोर्ट का ऑर्डर पढ़ने के बाद भी यह स्पष्ट नहीं होता कि यह कमेटी बनी किसलिए है? क्या यह चार सदस्यीय कमेटी सुप्रीम कोर्ट को कृषि कानूनों के बारे में तकनीकी सलाह देगी? या फिर किसानों की बात कोर्ट तक पहुंचाएगी? या सरकार और किसानों के बीच वार्ता के गतिरोध को तोड़ेगी? दोनो में मध्यस्थता करेगी? इस कमेटी का जो भी उद्देश्य हो लेकिन जब कोर्ट ने कमेटी के चारों सदस्यों का नाम घोषित किया तो किसानों के मन से रही सही उम्मीद भी जाती रही। कोर्ट ने जो चार सदस्य कमेटी घोषित की है, उसके सभी सदस्य इन तीनों कानूनों के पैरोकार रहे हैं। प्रोफेसर अशोक गुलाटी तो इन तीनों कानूनों के जनक हैं और डॉक्टर जोशी इनके प्रमुख समर्थक। किसान संगठनों के नाम पर जिन भूपेंद्र सिंह मान और अनिल गुणवंत को शामिल किया गया है, वे दोनों ही पिछले महीने कृषि मंत्री को मिलकर इन दोनों कानूनों के समर्थन में ज्ञापन दे चुके हैं। अब किसान को समझ आया कि स्टे ऑर्डर और उसके साथ जुड़ी कमेटी कुल मिलाकर किसान के लिए एक सुंदर रेशम का फंदा है। इसलिए संयुक्त किसान मोर्चा ने यह घोषणा की है कि मोर्चा द्वारा घोषित आंदोलन के कार्यक्रम में बदलाव नहीं है।

सभी पूर्व घोषित कार्यक्रम यानी 13 जनवरी लोहड़ी पर तीनों कानूनों को जलाने का कार्यक्रम, 18 जनवरी को महिला किसान दिवस मनाने और 23 जनवरी को आज़ाद हिंद किसान दिवस पर देशभर में राजभवन के घेराव का कार्यक्रम जारी रहेगा।

गणतंत्र दिवस 26 जनवरी के दिन देशभर के किसान दिल्ली पहुंचकर शांतिपूर्ण तरीके से ‘किसान गणतंत्र परेड’ आयोजित कर गणतंत्र का गौरव बढ़ाएंगे। तीनों किसान विरोधी कानूनों को रद्द करवाने और एमएसपी की कानूनी गारंटी हासिल करने के लिए किसानों का शांतिपूर्वक एवं लोकतांत्रिक संघर्ष जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट के दखल से यह मामला तो नहीं सुलझा लेकिन किसान के मन में एक उलझन जरूर सुलझ गई। संघर्ष सीधे सत्ता बनाम किसान का है। और अब पीछे का रास्ता नहीं है।

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें