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रीट परीक्षा का सारा काम ही ठेके पर हुआ है….ठेकेदारों ने ही प्रश्न पत्र छपवाए और परीक्षा केंद्रों तक भेजे…ऐसे में गोपनीयता कैसे रहेगी?

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सांसद किरोड़ीलाल मीणा ने तो सबूत दे दिए हैं। अब शिक्षा मंत्री डोटासरा जांच करवाएं

एस पी मित्तल अजमेर

शिक्षक पात्रता परीक्षा (रीट) में हुई गड़बडिय़ों के संबंध में प्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा था कि भाजपा सांसद डॉ. किरोड़ीलाल मीणा के पास सबूत हो तो एसओजी को बताएं। सरकार जांच करवाएगी। डोटासरा के जवाब में सांसद मीणा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर गड़बडिय़ों के सारे सबूत प्रस्तुत कर दिए हैं। ये ऐसे सबूत हैं, जिनसे साफ पता चलता है कि 26 सितंबर को हुई रीट परीक्षा में भारी गड़बडिय़ां हुई है। मीणा गत दो अक्टूबर से जयपुर में शहीद स्मारक पर धरना दे रहे हैं। सांसद मीणा के सबूत अपनी जगह है, लेकिन रीट परीक्षा की सबसे कमजोर कड़ी परीक्षा का पूरा काम ठेके पर होना है। सरकार ने भले ही राजस्ािान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को रीट परीक्षा के आयोजन की जिम्मेदारी दी हो, लेकिन शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा के इशारे पर परीक्षा कार्य विभिन्न ठेकेदारों को दिया है। बोर्ड प्रश्न पत्र तैयार कर प्रिंटिंग प्रेस वाले को भिजवाता है और फिर प्रेस वाला ही प्रश्न पत्रों को परीक्षा केंद्रों तक भिजवाता है। इसमें बोर्ड की कोई भूमिका नहीं होती है। प्रिंटिंग प्रेस का मालिक किसी ट्रांसपोटर्स को काम उप ठेके पर देता है। ट्रांसपोर्ट कंपनी के कर्मचारी ही प्रश्न पत्रों का प्रेस से परीक्षा केंद्र तक ले जाते हैं। प्रिंटिंग प्रेस और ट्रांसपोर्ट कंपनी के कर्मचारियों के हाथों में ही प्रश्न पत्र की गोपनीयता होती है। बोर्ड के पास इा बात का कोई रिकॉर्ड नहीं होता कि प्रश्न पत्र ट्रांसपोटर्स का कौन सा कर्मचारी ले जा रहा है। गोपनीयता की आड़ में प्रिंटिंग प्रेस का नाम भी गोपनीय रखा जाता है। जब राजस्थान लोक सेवा आयोग में आरएएस के साक्षात्कार में एक ही परिवार के तीन तीन सदस्यों को 100 में से 80 अंक मिल सकते हैं, तब क्या जिनी क्षेत्र के प्रिंटिंग प्रेस और ट्रांसपोटर्स से प्रश्न पत्र हासिल नहीं किए जा सकते? प्रश्न पत्र पहुंचाने वाले तो चालक और खलासी स्तर के होते हैं।  जिस  शिक्षा बोर्ड तो आवेदन पत्रों की प्रक्रिया में भी शामिल नहीं होता है, जिस कंप्यूटर कंपनी को ठेका दिया जाता है, वही अभ्यर्थियों से ऑनलाइन आवेदन मांगती है। यही कंपनी ऑनलाइन ही परीक्षा का प्रवेश पत्र लोड करती है। आवेदन के समय ही अभ्यर्थियों से प्रवेश पत्र भराव लिया जाता है। कंप्यूटर कंपनी तो अभ्यर्थी का रोल नम्बर और परीक्षा केंद्र अंकित करती है। परीक्षा का शुल्क भी ऑनलाइन ही जमा होता है। जब गोविंद सिंह डोटासरा जैसा शक्तिशाली राजनेता शिक्षा मंत्री हो तो क्या शिक्षा बोर्ड अपने दम पर प्रिंटिंग प्रेस और कम्प्यूटर कंपनी का चयन कर सकता है? कहने को शिक्षा बोर्ड भले ही स्वायत्तशासी संस्था हो, लेकिन बोर्ड पर शिक्षा मंत्री का ही नियंत्रण होता है। सबसे गंभीर बात तो यह है कि अब रीट परीक्षा का परिणाम भी वही कम्प्यूटर कंपनी तैयार कर रही है, जिसने आवेदन प्रक्रिया की थी। कंपनी ने बोर्ड के रीट कार्यालय में सुपर कम्प्यूटर स्थापित कर दिया है। इस कम्प्यूटर पर ही परीक्षा की ओएमआर शीट जंच रही है। कम्प्यूटर पर ओएमआर शीट जांचने का काम भी कंपनी के कर्मचारी ही कर रहे हैं। यही कंपनी परिणाम भी तैयार करेगी। सवाल उठता है कि जिस परीक्षा का सारा कार्य ही ठेके पर हुआ हो, उसमें गोपनीयता और ईमानदारी कैसे हो सकती है? बोर्ड के पास तो ओएमआर शीट जांचने वाला कम्प्यूटर तक नहीं है। रीट परीक्षा में जो गड़बडिय़ां सामने आई हैं उसके कारण ठेका प्रणाी है। अच्छा हो कि शिक्षा मंत्री डोटासरा पहले अपनी सरकार की व्यवस्था को दुरस्त करें। डोटासरा माने या नहीं, लेकिन रीट परीक्षा के आयोजन में ढेरों गड़बडियां रही हैं। जिसकी वजह से आम अभ्यर्थियों को शक हो रहा है। वो अभ्यर्थी उत्तीर्ण हो जाएंगे, जिन्होंने परीक्षा से पूर्व ही प्रश्न पत्र हासिल कर लिया और वो अभ्यर्थी सफल हो जाएंगे, जिन्होंने मेहनत की है। यदि किसी मंत्री के परिवार के सदस्यों का नाम किसी कोचिंग सेंटर से जुड़ता है तो यह और भी बुरी बात है। 

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