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कन्हैया कुमार का कांग्रेस में जाना…..!

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बसन्त हरियाणा

कन्हैया कुमार कांग्रेस में शामिल हो गए है जिसकी चर्चा बहुत दिनों से थी। कौन किस पार्टी में जाता है या फिर राजनीति से सन्यास लेता है यह उसका व्यक्तिगत अधिकार है। यह भी शाश्वत सत्य है कि व्यक्ति जो भी कार्य करता है उसको अपने तर्को द्वारा न्यायोचित ठहराता है, इस कार्य मे नेता विशेष महारत हासिल रखते है यह बताने की कोई ख़ास आवश्यकता नही है। चुनावो के समय एक ही दिन में दो-तीन दल बदलने का रिकॉर्ड भी नेताओ के नाम है औऱ अपने उस कृत्य को सही ठहराने का साहस भी (वैसे इसे बेशर्मी कहना ज्यादा उचित होगा) उनमें ही है। कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी दोनो वैचारिक नेता थे इसमे कोई दोराय नही है,कन्हैया कुमार को वामपंथी आंदोलन की संभावना के तौर पर देखा जा रहा था और वामपंथी आंदोलन को उन पर फक्र भी था बेशक उनके कांग्रेस में जाने से वामपंथी आंदोलन को नुकसान हुआ है। पोस्ट के शुरू में ही जैसा मैंने जिक्र किया है कि कोई किसी भी पार्टी में शामिल हो यह उसका विशेष अधिकार है इसलिए कायदे से तो मुझे कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करने का अधिकार नही है लेकिन कन्हैया कुमार ने जो कारण कांग्रेस में जाने के बताए है वह ना केवल हास्यस्पद है बल्कि उनकी जो उनकी बौद्धिक नेता की छवि बनी थी उस पर भी सवाल खड़े करती है। कन्हैया कुमार ने कहा कि… 1.कांग्रेस एक विचार है। 2.कांग्रेस नही रहेगी तो देश नही रहेगा।3.कांग्रेस लोकतांत्रिक दल है।
कांग्रेस के विचार क्या है ? मेरी नज़र में तो कांग्रेस की कोई विचारधारा ही नही है विचारधारा के नाम पर सिर्फ गडमड है, जिन आर्थिक नीतियों की आलोचना कन्हैया कुमार करते है उनकी जनक तो देश मे कांग्रेस ही है। इसी प्रकार बाबरी मस्जिद विध्वंस में मूर्ति रखवाने से लेकर ताला खुलवाने तक में कांग्रेस की भूमिका को कौन नही जानता? जिस प्रकार राहुल गांधी अपना गौत्र और जनेऊ बताते है धार्मिक स्थानों विशेषकर मंदिरों से अपना चुनाव प्रचार शुरू करते है उनकी धर्मनिरपेक्षता,जाति विहीन समाज की भूमिका पर भी सवालिया निशान है। कन्हैया कुमार ने कहा है कि “कांग्रेस नही रहेगी तो देश भी नही रहेगा” इससे हास्यस्पद बात कोई नही हो सकती। मेरी नज़र में कांग्रेस का मर्सिया लिखा जा चुका है बस जनाजा उठना बाकी है लेकिन देश हमेशा रहेगा। कांग्रेस कितना लोकतांत्रिक है यह देश की जनता बखूबी जानती है ब्लाक अध्यक्ष की नियुक्ति से लेकर मुख्यमंत्री का चयन सभी आलाकमान की मर्जी से होता है। इसलिए मेरा तो कन्हैया कुमार,जिग्नेश मेवानी के कांग्रेस में प्रवेश को लेकर सिर्फ इतना कहना है कि बेशक उनकी जो इच्छा है वह राजनीतिक रास्ता चुने किंतु उसे सैद्धान्तिक जामा ना पहनाए। पूरे घटनाक्रम में ख़ाकसार सिर्फ यही कहना चाहता है
ये कहना था उन से मोहब्बत है मुझ को

*ये कहने में मुझ को ज़माने लगे हैं*

वामपंथियों सुन लो, समझ_लो*

          *अपने बच्चों को रोज पड़ोसी चाचा के खेत में काम करने भेजोगे तो उसे पडोसी का खेत अच्छा लगने लगेगा और वो वहां रुक जायेगा। क्योंकि पडोसी के खेत में कुंवा है। पानी है। पक्की झोंपड़ी है। पेड पौधे है। खाने के लिए टमाटर है।  खीरा है। गन्ना है। चीकु है। जमरुक है। हमारे खेत में क्या है?  सूकी खेती है। न कुंवा है। न पानी है। न खाने पीने के लिए कुछ है। दिन रात कड़ी महेनत है। और मेहनत का फल?  कभी मिले, कभी ना मिले। सूकी रोटी मिले। इस स्थिति में अपने बच्चों को बार बार पडोसी के खेत में काम करने भेजोगे तो पडोसी चाचा उसे वहां रुकने के लिए बोल देंगे। और वो रुक भी जायेगा। फिर क्या रोना?*

समझे कुछ?
हर चुनाव में कांग्रेस से समझौता करना। और केडर को चुनाव में कोंग्रेस के प्रचार के लिए भेजना। ऐसा करोगे तो कभी-कभी कोई कार्यकर्ता को कोंग्रेस पसंद आ जायेगी। और वो कोंग्रेस में चला जायेगा।

हले यह तय कर लो।
कोंग्रेस अच्छी पार्टी है कि बूरी पार्टी है? अगर बूरी पार्टी है तो चुनाव के वक्त उसके साथ समझौता करना बंद कर दिजिए। और अच्छी पार्टी है तो आपका एक कार्यकर्ता कोंग्रेस में चला गया तो इतना हो हल्ला क्यों है? इतना रोना धोना क्यों?

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