-निर्मल कुमार शर्मा
शहीद-ए-आजम भगत सिंह,चन्द्रशेखर आजाद,नेताजी सुभाषचन्द्र बोस आदि जैसे बहुत कम लोग होते हैं,जो इस दुनिया में अपने भौतिक शरीर के तौर पर बहुत कम दिन तक ही रह पाते हैं,इस दुनिया के क्रूर,मानवता के दुश्मन,दरिंदे, फॉसिस्ट,साम्राज्यवादी अपने कुटिल स्वार्थ के लिए ऐसे देवदूतों को जो गरीबों और मानवता की रक्षा के लिए,उनके ह़क के लिए लड़ते हैं,बहुत कम उम्र में ही उन पर कुछ न कुछ मिथ्यारोपण करके उस बहाने उन पर प्रायोजित मुकदमें चलाकर या सीधे कथित देशद्रोही घोषित करके तत्कालीन सत्ता के कर्णधारों के इशारों पर उनके मातहत पुलिस या सेना द्वारा मौत के घाट उतार दिए जाते हैं।
भले ही दुनिया में इस प्रकार के लोग बहुत दिन तक नहीं रह पाते हों,परन्तु उनके द्वारा राष्ट्र के लिए,सम्पूर्ण मानवता के लिए,गरीबों के लिए,आमजन के लिए किए उत्कष्टतम् कार्य उन्हें इस दुनिया में सदा के लिए अमर बना देते हैं। ऐसी विभूतियों को बाद के सैकड़ों-हजारों सालों बाद भी याद करके,उनके प्रति बरबस ही मन-मस्तिष्क स्वतः ही श्रद्धा से सिर झुक जाता है,जबकि उनके प्राण लेनेवाले तत्कालीन सत्ता के कर्णधारों के प्रति एक अदृश्य घृणा और विस्तृणा का भाव दिलोदिमाग में स्वतः ही आने लगता है ! अपने देश के करोड़ों लोगों के मन में जो असीम श्रद्धा का भाव स्वर्गीय शहीद-ए-आजम भगत सिंह,चन्द्रशेखर आजाद ,नेताजी सुभाषचन्द्र बोस आदि विभूतियों के प्रति है,ठीक वही श्रद्धाभाव लैटिन अमेरिका या दक्षिणी अमेरिका के,क्यूबा आदि दर्जनों देशों के करोड़ों लोगों के मन में 14 जून 1928 को अर्जेंटीना में जन्में अप्रतिम नायक स्वर्गीय अर्नेस्तो ‘चे ‘गुआरा के लिए है। क्यूबा के स्कूलों के छात्र अर्नेस्तो ‘चे ‘गुआरा को एक देवदूत की तरह सम्मान करते हैं,क्योंकि उन्होंने क्यूबा को अपनी जान पर खेलकर वहाँ के अमेरिकी पिट्ठू, फॉसिस्ट और अत्याचारी तानाशाह बतिस्ता से मुक्ति दिलवाने में अपना अमूल्य योगदान दिए थे।अर्नेस्तो ‘चे ‘गुआरा एक डॉक्टर,लेखक,गुरिल्ला नेता,सामरिक सिद्धांतकार और कूटनीतिज्ञ थे,सबसे बड़ी चीज वे गरीबों,किसानों,मजदूरों, आमजन के हितैषी थे। वे अपनी डॉक्टरी की शिक्षा के दौरान ही मोटरसायिकिल से दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप के बहुत से देशों में घूम-घूमकर वहां के लोगों की भयावह गरीबी,मुफलिसी, भूखमरी व निर्धनता को देखा था,इससे वे बहुत व्यथित हुए और इसके कारणों का सूक्ष्मता व उदारता से विश्लेषण किया तो यह पाया कि इन देशों में व्याप्त भयंकर गरीबी,भूखमरी और आर्थिक विपन्नता का मूल कारण वहाँ उपस्थित पूंजीवाद,नव उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद है,जिससे छुटकारा पाने के लिए एकमात्र उपाय विश्वक्रांति ही है। इस उद्देश्य की प्राप्ति उन्होंने गुआटेमाला के तत्कालीन राष्ट्रपति याकोवो आरब़ेंज गुज़मान के सामाजिक सुधार के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर अपना योगदान दिया, परन्तु अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने साजिश रचकर याकोवो आरब़ेंज गुज़मान को ही गुआटेमाला के राष्ट्रपति पद से जबरन अपदस्थ कर दिया,इससे उनकी क्रांतिकारी सोच और दृढ़ हो गई,इसके कुछ ही दिनों पश्चात् संयोग से मेक्सिको सिटी में इनकी मुलाकात फिडेल कास्ट्रो और उनके भाई राउल कास्ट्रो जैसे क्रांतिवीरों से हो गई,इसके बाद वे इन लोगों के साथ क्यूबा में उस समय सत्तासीन फॉसिस्ट क्रूर तानाशाह बतिस्ता को अपदस्थ करने के लिए मात्र 100 गुरिल्ला लड़ाकों को संगठित व अत्यंत उच्च कोटि ढंग से प्रशिक्षित करने का कार्य किया,जिनकी मदद से इन क्रांतिवीरों ने 1959 में क्यूबा से इस अमेरिकी परस्त बतिस्ता की तानाशाही शासन व्यवस्था को उखाड़ फेंका।
अब फिडेल कास्ट्रो इस छोटे से द्वीप देश के,जो अमेरिका जैसे सशक्त पूंजीवादी महादेश के एकदम जड़ में है,के राष्ट्रपति बने,उनकी सरकार में अर्नेस्तो ‘चे ‘गुआरा एक मंत्री का कार्यभार सम्भाले। वे क्यूबा को स्वतंत्र कराने के वर्ष में ही दो हफ्ते के लिए भारत भी आए थे,वे उस समय के तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू से भी मिले थे,वे भारत के अन्य स्थानों जैसे कोलकाता आदि भी गये थे,उन्होंने भारतीय शासन व्यवस्था की प्रशंसा भी किए थे,अमेरिकी साम्राज्यवादियों को मुँहतोड़ जबाब देने के लिए,क्यूबा में तैनात करने के लिए वे तत्कालीन सोवियत संघ से नाभिकीय वारहेड वाले प्रक्षेपास्त्र भी लेकर क्यूबा आए थे,जिससे पूरा विश्व एक बार फिर तृतीय आणविक विश्वयुद्ध के बिल्कुल नजदीक पहुँच गया था,विश्व जनमत के दबाव में यह किसी तरह मामला टल गया,परन्तु इसमें अमेरिका को यह आश्वासन देना पड़ा कि वह कभी भी क्यूबा पर हमला नहीं करेगा ! लेकिन अर्नेस्तो ‘चे ‘गुआरा जैसे क्रांतिवीर,जो अपने शैक्षिक जीवन में ही लैटिन अमेरिकी देशों में वहाँ की जनता की गरीबी देखे थे,उनके मस्तिष्क में बार-बार यह विचार आ रहा था कि उन सभी देशों में उपस्थित पूंजीवाद,नव उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद से उन देशों को भी मुक्ति मिले और वे देश भी क्यूबा की तरह स्वतंत्र हों व वहाँ के करोड़ों गरीब लोग भी सुख से रह सकें,वहाँ की भी निर्धनता,भूखमरी आदि समाप्त हो,इसलिए वे क्यूबा में अपनी सुख की जिंदगी को तिलांजलि देकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु वे पुनः अकेले ही इन देशों में जनजागरण व जनक्रांति की अलख जगाने के लिए मोटरसायिकिल पर ही निकल पड़े,लेकिन क्यूबा में अमेरिकी परस्त बतिस्ता तानाशाही के उखाड़ फेंकने से अमेरिकी साम्राज्यवादी पहले से ही खार खाए बैठे थे।अर्नेस्तो ‘चे ‘गुआरा को बोलिविया के ला इगुएरा नामक स्थान पर अमेरिकी खुफिया एजेंटों ने बोलिवियाई सैनिकों की मदद से 8 अक्टूबर 1967 को गिरफ्तार कर लिया,उसके अगले ही दिन ही,मतलब 9 अक्टूबर 1967 को उनको गोली मारकर हत्या कर दी गई, गोली मारने से पूर्व नृशंसता पूर्वक उनके दोनों हाथों को काट दिया गया था.. ! तथा उनके शव को घोर उपेक्षित ढंग से किसी गुमनाम जगह दफ़न कर दिया था ! वैसे वर्षों बाद क्यूबा के राष्ट्रपति फिडेल कास्ट्रो ने उस महामानव के अस्थि अवशेष को लाकर क्यूबा की धरती पर ससम्मान दफना दिया था,उस क्रांतिवीर व बहादुर योद्धा ने मरने से पूर्व अमेरिकी साम्राज्यवादियों के पिट्ठू हत्यारों से कहा था कि तुम ! एक इंसान को मार सकते हो,लेकिन उसके विचारों को कभी नहीं मार सकते ! उसके बाद वे इस क्रूर दुनिया से गरीबों के सुख के सपनों के साथ सदा के लिए अपने प्राणों की बलि दे दिए !
ऐसे बहादुर,अप्रतिम योद्धा अर्नेस्तो ‘चे ‘गुआरा सिर्फ 39 साल की उम्र में समानता के लिए गरीबों के साथ न्याय के लिए,शोषणमुक्त समाज के लिए,भूख से कोई न मरे इसके लिए,पूंजीवादी विद्रूप व क्रूर व्यवस्था को समाप्त करने के लिए अपने प्राणों को उत्सर्ग कर दिए ! उस बहादुर योद्धा के सम्मान में उसी साम्राज्यवादी अमेरिका की एक पत्रिका टाइम पत्रिका ने अर्नेस्तो ‘चे ‘गुआरा को बीसवी शताब्दी के 100 सबसे महत्वपूर्ण हस्तियों में सम्मिलित किया,इसके अतिरिक्त लैटिन अमेरिकी देशों की अकथनीय गरीबी और भूखमरी पर उनकी लिखी गई डायरी के आधार पर एक पुस्तक ‘द मोटरसायिकिल डायरी ‘के नाम से प्रकाशित हो चुकी है। सन् 2004 में ‘द मोटरसायिकिल डायरीज ‘के नाम से एक फिल्म भी बन चुकी है। उस गरीबों के मसीहा क्रांतिवीर के एक फोटो ‘वीर गुरिल्ला,जिसे स्पेनिश भाषा में गेरिलेरो एरोइको को विश्व का सबसे लोकप्रिय तस्वीर माना गया है। इससे ज्यादे अमरत्व क्या हो सकता है ?वे साम्राज्यवादी फॉसिस्ट,जो ‘चे ‘ की निर्मम हत्या किए वे सदियों तक सदा के लिए खलनायक ही रहेंगे ! क्यूबा के राष्ट्रपति फिडेल कास्ट्रो ने एक बार चे गुआरा को श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि ‘कई लोग समाजवाद की आलोचना करते हैं,पर मुझे कोई उस देश का नाम बताए,जहाँ पूंजीवाद सफल रहा है ! आज कामरेड अर्नेस्ट चे ग्वेरा को याद करने का दिन है। चे ग्वेरा का उद्देश्य सिर्फ क्यूबा को अमेरिकी साम्राज्यवाद और पूंजीवाद से बचाना नहीं था बल्कि वह समस्त विश्व को पूंजीवाद और साम्राज्यवाद से मुक्त कराकर साम्यवाद स्थापित करना चाहते थे,ताकि वहाँ के लोगों को भी भूख,दरिद्रता और अपनी अभावग्रस्त जिंदगी से मुक्ति मिल सके और वे भी एक सामान्य न्यूनतम आवश्यकताओं की सुविधा का लाभ उठाकर एक सामान्य मानव का जीवन जी सकें’उस अदम्य साहस के शीर्ष महामानव अर्नेस्तो ‘चे ‘गुआरा की पुण्यतिथि 9 अक्टूबर को उनके अदम्य साहस व मानवता के लिए उनके किए गए,कार्यों,उनके बलिदान व उनके सर्वस्व आत्मोत्सर्ग के लिए उनके चरणों में कोटिशः नमन..विनम्र अश्रुपूरित श्रद्धांजलि ।
-निर्मल कुमार शर्मा, ‘गौरैया एवम पर्यावरण संरक्षण तथा पत्र-पत्रिकाओं में सशक्त,निष्पृह,बेखौफ व स्वतंत्र लेखन ‘,प्रताप विहार,गाजियाबाद,