अग्नि आलोक
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गुमराह करने के लिए काफ़ी है माफी की बात

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शशिकांत गुप्ते

खबर पढ़ते ही मुझे अंदेशा था कि, राधेश्यामजी का मेरे घर पधारना सुनिश्चित है।टेलीपैथी ने करिश्मा दिखा दिया राधेश्यामजी प्रकट हो गए।
आते ही बगैर किसी भूमिका के सवाल दाग दिया,इस खबर पर आप की क्या राय है?
मैने कहा मैं उस विषय पर अपनी राय प्रकट नहीं करता हूँ,जिस विषय को मैंने पढा और समझा नहीं है।यह कहते हुए मैं भजन की पंक्ति गुनगुनाने लगा।
रघुपति राघव राजाराम
सब को सन्मति दे भगवान

राधेश्यामजी कहने लगे आज मैं आपकी राय मांगने नहीं आया हूँ।
आते सिर्फ औपचारिकता वश मैने पूछ लिया था।
राधेश्यामजी स्वयं की जेब से कागज निकाला और पढ़ने लग गए।
यदि बापू की राय पर फ़िरंगियों से माफ़ी मांगी गई तो गांधीजी की शहादत के सात दशक बाद भी गांधीजी को क्यों कोसा जा रहा है?
राधेश्यामजी अपने लेख के साथ गांधीजी की प्रशंसा में लिखे प्रदीपजी के गीत की पंक्तियां भी पढ़ने लगे।
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
आँधी में भी जलती रही गाँधी तेरी मशाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल

राधेश्यामजी ने कहा अव्वल तो देश की ज्वलंत समस्याओं पर माफ़ी की खबर को काफी अर्थात पर्याप्त समझने की भूल नहीं करना चाहिए।
यदि यह सच है कि बापू की सलाह पर माफी मांगी गई तो इस उदारतापूर्ण सलाह का बापू को सिला दिया… गोली?
राधेश्यामजी बहुत दुःख भरे स्वरों में कहा कि सलाह देने की बात को भुनाने वाले यूँ क्यों कहतें हैं कि, बापू का स्वतंत्रता आंदोलन में कोई योगदान नहीं था?
यह कहतें हुए राधेश्यामजी ने गीत यह पंक्तियां पढ़ी।
धरती पे लड़ी तूने अजब ढंग की लड़ाई
दागी न कहीं तोप न बंदूक चलाई
दुश्मन के किले पर भी न की तूने चढ़ाई
वाहरे फ़क़ीर खूब करामात दिखाई

आज गांधीजी की माफी की सलाह का सियासी लाभ उठाने वालों के ही दल में देखों, यह कहावत चरितार्थ हो रही है।
बाप सेर तो बेटा सव्वा सेर
बाप तो सिर्फ धमकी देता है, स्वयं का पूर्व इतिहास का परिचय देतें हुए दो मिनिट में ठीक कर दूंगा।
बेटा वर्तमान में ही Fortunate अर्थात भाग्यशाली नामक चार पहिंया वाहन( लगभग पन्द्रहलाख की कीमत की) से रौंद कर कृषकों की इहलीला समाप्त कर देता है।
बापू के लिए देखों प्रदीपजी ने क्या लिखा है।
चुटकी में दुश्मनों को दिया देश से निकाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल*
एक सुनियोजित साज़िश के तहत नित नए शिफुगे छोड़ कर मूल समस्याओं से आमजन का ध्यान भटकाया जा रहा है।
स्वतंत्रता सैनानी बापू के लिए गीतकार ने क्या लिखा है।
तरंज बिछा कर यहाँ बैठा था ज़माना
लगता था मुश्किल है फ़िरंगी को हराना
टक्कर थी बड़े ज़ोर की दुश्मन भी था ताना
पर तू भी था बापू बड़ा उस्ताद पुराना
मारा वो कस के दांव के उलटी सभी की चाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल

मैं समझ गया कि आज राधेश्यामजी आज रुकने वाले नहीं है।अपनी पूर्ण भड़ास निकाल कर ही रहेंगे।
राधेश्यामजी कहने लगे क्रांतिवीर नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बापू के साथ वैचारिक मतभेद होते हुए भी नेताजी का बापू के प्रति अथाह सम्मान था, इसलिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने ही गांधीजी को सर्वप्रथम राष्ट्रपिता कहा है।
जो गांधीजी का आज भी अपमान करतें वे सभी नेताजी सुभाषचंद्र बोस का भी अपमान करतें है।
गांधीजी की आवाज में कितना दम था यह कहते हुए राधेश्यामजी ने गीत यह पंक्तियां पढ़ी।
जब जब तेरा बिगुल बजा जवान चल पड़े
ज़दूर चल पड़े थे और किसान चल पड़े
हिंदू और मुसलमान, सिख पठान चल पड़े
कदमों में तेरी कोटि कोटि प्राण चल पड़े
फूलों की सेज छोड़ के दौड़े जवाहरलाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल

खबर सुनकर लगता है आमजन में गफलत पैदा करने की यह कोई नई चाल है।
एक तरफ संविधान की शपथ लेकर केंद्र में मंत्री पद पर विराजमान व्यक्ति खुले आम कहता है कि,
देश के…… को,गोली मारो ……
दूसरी तरफ गांधीजी का चरित्र इस तरह का था।
मन में थी अहिंसा की लगन तन पे लंगोटी

लाखों में घूमता था लिये सत्य की सोंटी
वैसे तो देखने में थी हस्ती तेरी छोटी
लेकिन तुझे झुकती थी हिमालय की भी चोटी
दुनिया में भी बापू तू था इन्सान बेमिसाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल

बापू के द्वारा दी गई सलाह को सार्वजनिक तौर पर कहने का मक़सद महंगाई, भुखमरी, बेकरी से ध्यान हटाने की साज़िश हो सकती है।
बापू को कितना भी कोसों बापू के व्यक्तिव को कोई भी कमजोर नहीं कर सकता है।कारण इन पंक्तियों में है।
जग में जिया है कोई तो बापू तू ही जिया
तूने वतन की राह में सब कुछ लुटा दिया
माँगा न कोई तख्त न कोई ताज भी लिया
अमृत दिया तो ठीक मगर खुद ज़हर पिया
जिस दिन तेरी चिता जली, रोया था महाकाल
साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल*
रघुपति राघव राजा राम

राधेश्यामजी ने स्वयं के लिखे लेख पर मेरी राय मांगी।
मैने कहा मैं तो इस सूक्ति पर अमल करता हूँ।
अंधों के आगे रो और अपनी आंखें खों
मेरी बात सुनकर राधेश्यामजी नाराज हो गए,झल्लाकर कहने लगे आपसे राय लेने के पूर्व मैं भूल गया था कि, आप व्यंग्यकार हैं।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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