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अडानी के खिलाफ खबर चलाने के चलते लोकतंत्र टीवी पर लगी रोक!

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कथित नेशनल मीडिया द्वारा समाज के बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, दलित, मुसलमानों और अब मोदी सरकार के नये कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों के बारे में फैलाए गए तमाम झूठ और फ़र्जी ख़बरें दिखाने वालों के बचाव में सरकार और न्यायालयों का रुख साफ़ है। वहीं, देश की वर्तमान सत्ता पर हावी अरबपति अडानी और अंबानी के खिलाफ खबर चलाने वाले स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर जनसरोकारों की पत्रकारिता करने वालों के प्रति सत्ता और न्यायालय का रुख कुछ और दिखता है। यह कोई काल्पनिक या निराधार गल्प नहीं बल्कि एक हकीकत है। हाल ही में अडानी समूह के बारे में रिपोर्टिंग करने पर अहमदाबाद की एक सिविल कोर्ट ने मुंबई के रहने वाले विनय दुबे और उनके यूट्यूब चैनल ‘लोकतंत्र टीवी’ पर अडानी समूह पर लेख, वीडियो और ट्वीट प्रसारित करने पर रोक लगा दी है, हालांकि कोर्ट ने यह प्रतिबंध अडानी समूह द्वारा चैनल के खिलाफ दर्ज मानहानि के मामले में सुनवाई के बाद लगाया है।

इस फैसले के बारे में लोकतंत्र टीवी के संयोजक देव चौधरी क्या कहते हैं उसे सुना जाना चाहिए।

देव चौधरी इस फैसले को अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अंकुश लगाने जैसी कार्रवाई के तौर पर देखते हुए कहते हैं कि एक तरफ अर्णब गोस्वामी जैसे एंकर के लिए फैसला कुछ और दूसरी ओर छोटे और स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता कर रहे लोगों के लिए कुछ और फैसला!अब पहले देखिए खुद बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी कहते हैं कि अडानी पर 4.5 लाख करोड़ बैंकों का बकाया (NPA) है और फिर भी 2016 से हर दो साल में उनकी संपत्ति दोगुनी हो रही है। वह बैंकों को भुगतान क्यों नहीं कर सकता है?

सुब्रमण्यन स्वामी बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं, जब वे ही खुलेआम यह बात कह रहे हैं तो आज की तारीख में ऐसे में किसी मीडिया चैनल द्वारा हरियाणा के सोनीपत, पानीपत या कहीं और अडानी पर यदि भ्रष्टाचार या बेईमानी की खबरों की पड़ताल और रिपोर्टिंग करने वालों को किस आधार पर सजा दी जा रही है!

अडानी समूहों की अनाज गोडाउन निर्माण और हरियाणा में जमीन खरीद विवाद पर रिपोर्टिंग करने पर अदालत द्वारा टीवी पर अडानी के खिलाफ खबर दिखाने पर प्रतिबंध लगाना पत्रकारिता पर अंकुश के तौर पर देखते हैं देव चौधरी।

इस संदर्भ में ‘द वायर’ से बातचीत करते हुए देव कहते हैं, “दलितों की आवाज उठाना, अल्पसंख्यकों, शोषित वंचितों की आवाज उठाना गलत है क्या?” वे कहते हैं कि इस देश में सरकार से सवाल करना गलत है क्या? अडानी जो किसी संवैधानिक पद पर नहीं हैं, उनकी काली करतूतों को दिखाने की कोशिश करना गलत है? यह फ्रीडम ऑफ स्पीच पर हमला नहीं तो क्या है? उनकी पूरी बातचीत सुनिए,

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यह कोई पहली घटना नहीं है। लोकतंत्र में देश के पूंजीपतियों के बारे में खुलासा तो सूचना आयोग जैसा संवैधानिक संस्था भी करने से इनकार कर चुका है।https://d-2617627032889566548.ampproject.net/2012232217000/frame.html

मने देश की मेहनतकश जनता की खून-पसीने की कमाई जो बैंकों के भरोसे रखी गई है, उसे बैंक किसे दे रहा है उनकी जानकारी भी जनता को नहीं मिल सकती लोकतंत्र में! यही हाल पीएम केयर के नाम पर लिए गए हजारों करोड़ रुपयों के साथ भी हुआ।

इसे इस तरह से समझना चाहिए कि आज के समय में पैसा आपकी जेब से निकल जाए एक बार तो फिर उसकी कोई जानकारी आपको नहीं मिलेगी, और आपके पैसे लूटने वाले ‘लुकआउट’ नोटिस जारी होने के बाद भी देश के हवाई अड्डों से सुरक्षा जांच के बाद विदेश भाग जाएंगे।

हवाई अड्डे, रेलवे, अडानी के हवाले हैं। मीडिया अंबानी के पास, ये दोनों उद्योगपति प्रधान सेवक के परम मित्र हैं।

अब किसानों ने इन तीनों के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया है। पर गोदी मीडिया इस आंदोलन में विदेश फंडिंग, खालिस्तानी लिंक, ‘अर्बन नक्सल’ लिंक खोजने में लगी हुई है स्टूडियो में बैठे-बैठे। वहीं किसानों ने भी इन सत्ता के वफादारों का भी बहिष्कार कर दिया है। ऐसे में उन्हें गुस्सा तो आएगा ही।

साल 2014 के बाद से गोदी मीडिया ने लगातार झूठ का प्रचार किया और सत्ता के प्रवक्ताओं की तरह प्रचार किया। सत्ता से सवाल नहीं किया। उन्हीं पत्रकारों को प्रधानमंत्री ने अपनी कविता भी सुनाई और इंटरव्यू दिए। उन्हीं को बताया कि कैसे बादलों की आड़ में फाइटर प्लेन राडार से बच कर उड़ सकते हैं। एक पत्रकार ने नोएडा स्टूडियो में बैठे-बैठे सुन लिया कि पड़ोसी मुल्क के संसद में मोदी-मोदी के नारे कैसे लगे। ऐसे तमाम पत्रकार हैं, जिन्हें सत्ता का संरक्षण और समर्थन मिला हुआ है और वे बेख़ौफ़ फर्जी और झूठी ख़बरें फैलाने में लगे हुए हैं। जब बात उनकी होती है तो सरकार अदालत में जाकर कहती है, हम इन्हें नहीं रोक सकते क्योंकि यह पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अंकुश होगा।

हाल ही में अर्णब गोस्वामी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया, उसे सबने देखा किंतु इसी तरह से जेलों में बंद कई पत्रकारों के मामलों पर अदालत की नज़र कब होगी यह तो कोई नहीं कह सकता। बाकी जो हुआ और आगे होगा सबको दिखेगा। अर्णब के मामले में एक बात ख़ास रही कि देश के गृह मंत्री से लेकर बीजेपी शासित तमाम मुख्यमंत्री भी मीडिया की आज़ादी के बारे में गंभीर हो उठे थे, पर लोकतंत्र टीवी पर अदालत के फैसले के बारे में किसी को चिंताजनक हालत में नहीं देखा गया।

मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाला कवर करते हुए, छत्तीसगढ़ में आदिवासियों पर सुरक्षा बलों की बर्बरता की कारवाई की रिपोर्टिंग करने पर पत्रकारों के साथ बीजेपी शासन में जो हुआ वह सबको पता है। कश्मीर में मीडिया की आज़ादी सब देख ही रहे हैं।

बुधवार, बीते 13 जनवरी को मेघालय की वरिष्ठ पत्रकार और शिलांग टाइम्स की संपादक पैट्रीशिया मुखिम द्वारा गैर-आदिवासियों पर हमले की निंदा संबंधित फेसबुक पोस्ट के कारण उनके खिलाफ दर्ज मुकदमे को मेघालय उच्च न्यायालय दारा ख़ारिज करने से इंकार करने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। बुधवार, 13 जनवरी को जस्टिस एल नागेश्वर राव, इंदु मल्होत्रा और विनीत सरन की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर की दलीलें सुनने के बाद राज्य सरकार को जवाब देने का निर्देश दिया है।

पैट्रीशिया मुखिम का अपराध क्या था? उन्होंने लॉसहटून के बॉस्केटबॉल कोर्ट में आदिवासी और गैर-आदिवासी युवाओं के बीच झड़प का जिक्र करते हुए लिखा था कि मेघालय में गैर-आदिवासियों पर यहां लगातार हमला जारी है, जिनके हमलावरों को 1979 से कभी गिरफ्तार नहीं किया गया, जिसके परिणामस्वरूप मेघालय लंबे समय तक विफल राज्य रहा। इसी पोस्ट के खिलाफ पुलिस ने उनके खिलाफ मामला दर्ज किया था, और बीते साल 19 नवंबर को मेघालय हाई कोर्ट ने पत्रकार पैट्रीशिया मुखिम के खिलाफ पुलिस द्वारा दर्ज आपराधिक मामलों को रद्द करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था।

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