(जनकवि मुकुट बिहारी सरोज सम्मान समारोह पर बिशेष)
मुरैना- (जगदीश शुक्ला) आज के हालातों में जनवादी कवि आदरणीय मुकुट बिहारी सरोज के विराट व्यक्तित्व में झांका जाये ंतो एक खुद्वार खालिश फख्खड़ अंदाज हर हालात में सच का साथ देते हुए सब कुछ साफगोई के साथ बयां कर जाता है। बगैर इसके बदले आने बाली बाधाओं एवं मुश्किलों की परवाह किये। उनका यही हौसला उन्हें मुकुट बिहारी सरोज बनाता है। सहज अंदाज में सत्ता और ब्यवस्था को ललकारने का जो अदम्य साहस मुकुट बिहारी सरोज जी के तेबरों में नजर आता है वह अन्यत्र शायद दुर्लभ है। उसने कभी सत्ता और व्यवस्था को चुनौती देते हुए लिखा ये फोड़ा नासूरी है,चीरफाड़ बहुत जरूरी है। तो कभी अपने अनूठे अंदाज में सत्ता और सियासत को यह कहते हुए कठघरे में खड़ा कर दिया। कि कोई सुनता नहीं भीड़ में और आग लगी है नीड़ में। यही हालात हैं मेरे आसपास की साफ सूचनाऐं आती हैं सर्वनाश की।
यह सरोज जी का ही नश्तर है जो कह अपने अंदाज में कह सकता है कि इन्हें प्रणाम करो ये बड़े महान हैं। व्यंग्य की एसी पैनी दुधारी धार कहीं अन्यत्र कदाचित दुर्लभ है। यह सरोज जी का ही हौसला था जो अपने वेबाक अंदाज में सत्ता को सीधे निशाने पर लेते हुए कह सकता है कि एसे एसे लोग रह गये,बने अगर तो पथ का रोड़ा।करके कोई एब न छोड़ा,असली चेहरा दीख न जाएंइस कारण हर दर्पण तोड़ा। ये वेबाकी और तल्ख अंदाज सरोज जी के स्वभाव में शामिल था। सरोज जी के तीखे शब्दवाणों के साथ उनके कहने का निराला अंदाज व्यंग्य की धार के साथ अपने लक्ष्य की भी स्पष्ट पहचान करा देता था। यही बजह रही कि उनकी पहचान एक कवि से अधिक एक क्रांतिकारी एवं अपने उसूलों पर जीने बाले एक मुकम्मल इंसान के रूप में स्थापित हुई।
सत्ता की छाया और सरपरस्ती से दूर रहकर उसे ललकारने बाले अपने तीखे एवं धारदार अंदाज में मुखालफत के गीत गाने बाले इस अनूठे क्रांतिकारी रचनाकार की यादें दशकों बाद भी उस समय के इस बाल मन पर आज भी शब्दसः अंकित हो उठतीं हैं। यह जनवादी कवि सम्मेलन सम्भवतः आज तक हुए अंचल के सभी साहित्यिक आयोजनों में श्रेष्ठ एवं वैचारिक रूप से दृड़ आयोजन रहा। बत लगभग चार दशक पूर्व की है जब हम हायर सैकेण्ड्री स्कूल जौरा में अध्ययनरत होकर एस.एफ.आई.की से जुड़कर छात्र संघर्षों का रियाज करते हुए जौरा में कॉमरेड रामभरोसी शर्मा वरिष्ठ अभिभाषक से कम्युनिष्ट विचार धारा की प्रारम्भिक पाठशाला को आबाद कर रहे थे। एस.एफ.आई के साथ प्रत्यक्ष जुड़े अघिक समय नहीं हुआ था। मैं स्वयं एवं कई साथी कवि सम्मेलन जैसे साहित्यिक आयोजन का अर्थ भी कदाचित ठीक से नहीं समझते थे। परिपक्व होने की उम्र के बाद शायद यह जीवन का पहला कवि सम्मेलन था। इसलिये कवि सम्मेलन के आयोजन का कौतुहल हमारे लिये अजूबा था। इस कवि सम्मेलन की वैचारिक दृड़ता की गहरी छाप आज भी मेरे कार्य क्षेत्र एवं जीवन में देखने को मिल जाती है। जिसे देखकर मैं स्वयं बिस्मित हो जाता हूं कि मुझमें सच को सच कहने का यह अदम्य साहस आखिर आता कहां से है। इस अदम्य हौसले के उद्गम की तलाश ने ही सबलगढ़ के उस जनवादी कवि सम्मेलन की यादें पिछले दिनों बादल जी की फेस बुक बॉल पर लिखे आलेख के साथ जोर मारने लगीं। उस दौर के खालिस कॉमरेड बहादुर सिंह धाकड़,गणेश मरैया एवं जौरा के वरिष्ठ अभिभाषक कॉमरेड रामभरोसी शर्मा इस कवि सम्मेलन के मुख्य आयोजक थे। एस.एफ.आई.की सक्रियता को देखते हुए हमारी टीम को जिसमें सबलगढ़ के पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष रहे मुरारीलाल धाकड़,हमारे सक्रिय साथी रामकुमार शर्मा,सहित कुछ अन्य बिस्मृत साथी शामिल थे। इस नाते हमारी टीम को आयोजन की सहभागिता का आमंत्रण कर आगंतुक कवियों की मेजवानी संबंधी जिम्मेवारी दी गई थी। मेजवानी से अधिक रूचि उस दौर के सबसे अधिक मुखर जन अभिव्यक्ति के पुरौधा आदरणीय मुकुट बिहारी सरोज जी के विराट व्यक्तित्व के दर्शन करना था। पहले से उनकी कविताओं एवं उनके कहने के अंदाज की काफी चर्चाऐं सुन रखीं थीं इसलिये उनको जानने की जिज्ञासा काफी अधिक थी। उनके व्यक्तित्व का यही आकर्षण हमें कवियों के आगमन के निर्धारित समय से कई घंटे पहले सबलगढ़ रेस्ट हाउस पर लेकर पहुंच गया।
काफी इंतजार के उपरांत कवियों की कार रेस्ट हाउस के दरवाजे पर आकर रूकी। गाड़ी से उतरते ही हमारी नजर जब चूड़ीदार पाजामा एवं काला कोट पहने लम्बे दार्शनिक बाले अंदाज के इस व्यक्तित्व पर पड़ी तो समझने में देर नहीं लगी कि यही मुकुट बिहारी सरोज जी हैं। उनके साथ ही उम्रदराज शख्स गाड़ी से उतरकर सीधे रेस्ट हाउस में दाखिल हुए वह उस समय के सर्वाधिक ख्याति प्राप्त जनकवि नागार्जुन थे जिन्हें सभी आदर पूर्वक बाबा के नाम से संबोधित कर रहे थे। उस समय हमारा बाल मन इतने बड़े लोगों से कैसे मिलेंगे एवं उनसे क्या बात करेंगे जैसे सहज प्रश्नों से घिर गया। हमारा यह भ्रम शीघ्र ही टूट भी गया जब कवियों के लिये चाय लेकर पहुंचे हमारी टीम के लोगों से चाय लेने से पूर्व ही आगंतुकों ने आत्मीय भाव से पूछा कि क्या करते हो। साथियों के यह कहते ही कि हम एस.एफ.आई के कार्यकर्ता हैं,कवियों ने आत्मीयता के साथ सभी साथियों को जबरन साथ बैठाकर चाय पिलाई। इस दौरान चाय पीकर बाबा फ्रेश होकर आराम करने जा चुके थे। बहुत जल्दी ही आदरणीय मुकुट बिहारी सरोज जी के साथ हमारी कार्ल मार्क्स,जनवादी विचारों एवं सर्वहारा वर्ग की पीड़ाओं के संबंध में सबाल जबाव की क्लास शुरू हो गई। लम्बी चर्चा का क्रम तब टूटा जब आदरणीय सरोज जी ने चर्चा को विराम देते हुए कहा कि अब कवि सम्मेलन में पहुंचने का समय होने बाला है आप कभी ग्वालियर आकर मिलें। आदरणीय सरोज जी की पहचान अपने उसूलों के लिये हर कीमत चुकाने बाले एसे योद्वा की रही जिसने सत्ता और हर समर्थ व्यक्ति से जो कुछ कहना है अथवा पूछना है उसके अंजाम की परवाह किये बगैर पूरी हिम्मत के साथ सबाल पूछा।
उस समय की सत्ता के गलियारों में भी मुखर लेखक चिंतक आदरणीय मुकुट जी की दहशत एवं धमक बनी रहती थी। इसके साथ ही सरोज जी आजीवन जनवादी विचारों को बोने बाले कुशल माली रहे। जिसकी नर्सरी में विचारों से समृद्व कॉमरेड शैलेन्द्र शैली,बादल सरोज,दिनेश सिंह,हरेन्द्र अग्रवाल,प्रमोद प्रधान जैसे पुष्पों ने उनकी नर्सरी को वैचारिक रूप से महकाया। सरोज जी ने अपने जीवन में सच के लिये प्रतिबद्व होकर संघर्ष करने बाले योद्वा तैयार किये जो आमजन की पीड़ा को आवाज देने एवं उसके लिये संघर्ष करने को सदैब तत्पर रहे। सरोज जी से वैचारिक रूप से प्रशिक्षित इन पहरूओं ने लोकतन्त्र एवं उसके नैतिक मूल्यों को बचाने हर दौर में अपनी भूमिका निबाही। इस आधार पर निर्विवाद कहा जा सकता है कि मुकुट बिहारी सरोज जी जनसरोकारों के लिये प्रतिबद्व योद्वाओं को गढ़ने बाली नर्सरी के कुशल शिल्पी रहे। उनके तल्ख तेबर एवं कहने का अंदाज आगामी सदियों तक याद किये जायेंगे। जगदीश शुक्ला
पत्रकार एवं स्वतंत्र लेखक जौरा