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लोगों में सेना के खिलाफ गुस्सा … तो मजूदरों के परिजन के लिए दुख…सेना के जवानों ने मजदूरों के शव छुपाए, पिकअप पर तिरपाल ओढ़ा दी; खून के निशान तक मिटाए

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मोन

नगालैंड में रविवार को सेना की गोलीबारी से जिन 14 मजदूरों की मौत हुई, उनकी लाशों को सिक्योरिटी फोर्सेज के जवानों ने बैग से ढंक दिया था। जिस पिकअप ट्रक से वे आ रहे थे, उस पर तिरपाल डाल दिया गया था। तभी मौके पर पहुंचे गांव वालों ने देखा कि, जवान जमीन पर पड़े खून के निशान रेत से मिटाने की कोशिश कर रहे थे। वे पूरा मामला दबाना चाहते थे, लेकिन सच सामने आ गया। इस घटना का एक वीडियो भी सामने आया है, जिसमें यह दिख रहा है कि, घटना के बाद कैसे पिकअप ट्रक में मजदूरों की बॉडी को छुपा दिया गया था।

सोमवार को जब मजदूरों का अंतिम संस्कार हो रहा था, तब हर किसी की आंखें नम थीं। मारे गए मजदूरों में से 12 ओटिंग गांव के, जबकि बाकी दो ची और जकफांग गांव के थे। ओटिंग गांव से जब 12 अर्थियां एकसाथ उठीं तो हर किसी की आंखें भर आईं। आम लोगों में सेना के खिलाफ गुस्सा था तो मजूदरों के परिजन के लिए दुख। जो मजदूर मारे गए वे रोज कमाने-खाने वाले थे। उनके परिजन सरकार से अब पूछ रहे हैं कि, बेसहारा हुए बच्चों को अब कौन पालेगा?

अंतिम संस्कार में नगालैंड के सीएम और डिप्टी सीएम भी शामिल हुए। यहां भीड़ की एक ही मांग थी कि, राज्य से आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (AFSPA)को तुरंत हटाया जाए। क्योंकि यही वो एक्ट है, जिसके जरिए सिक्योरिटी फोर्सेज को बिना किसी जांच पड़ताल के सीधे गोली चलाने का हक मिल जाता है। बिना सर्च वारंट के छानबीन सहित तमाम अधिकार मिलते हैं।

वहीं मोन जिले में हालात अब भी बेहद तनावपूर्ण हैं। यहां धारा 144 लागू है और प्रदर्शन हो रहे हैं। रविवार को प्रदर्शनकारियों ने कोनयाक यूनियन के कार्यालय में तोड़फोड़ की थी और असम राइफल्स पोस्ट में भी पत्थरबाजी की थी। जिन मजदूरों को उग्रवादी समझकर मारा गया है, वे कोल माइंस में काम करते थे। ओटिंग गांव से कुछ ही दूरी पर हुई इस घटना में 6 मजदूर ऑन द स्पॉट मारे गए थे। 9 लोगों की बाद में मौत हुई, जिसमें सेना का एक जवान भी शामिल है।

जिन्होंने गोली चलाई, उन्हें सजा देने की मांग
जो मजदूर मारे गए हैं, उनके परिजन की दो सबसे बड़ी मांग हैं। पहली- इस ऑपरेशन में सेना के जो जवान शामिल थे, उन्हें तुरंत सजा दी जाए। साथ ही जिन कमांडिंग ऑफिसर के आदेश पर यह सब हुआ, उनका नाम भी बताया जाए और उन्हें क्या सजा दी जा रही है, यह बताया जाए। दूसरी मांग- AFSPA हटाया जाए। लोगों का कहना है कि इस एक्ट के चलते हम असुरक्षित महसूस करते हैं। इन दिनों तक सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन शनिवार को हुई घटना के बाद हर कोई डरा हुआ है।

1980 के दशक में रेप होते थे
इस घटना के बाद साल 1980 के दशक की यादें ताजा हो गई हैं। तब सिक्योरिटी फोर्सेज और उग्रवादी संगठनों के बीच आए दिन गोलीबारी होती थी। इसमें आम नागरिकों को भी निशाना बनाया जाता था। कई बेगुनाह नगा मार दिए गए। महिलाओं के साथ रेप किया गया।

हालांकि, बाद में अलग-अलग गुटों और सरकार के बीच सीजफायर एग्रीमेंट होने के बाद सब शांत हो गया था। अंडर ग्राउंड ग्रुप और सेना के बीच मुठभेड़ होती है, लेकिन आम लोगों का इससे इत्तेफाक नहीं होता। लेकिन शनिवार को जो हुआ है, उसके बाद आम नागरिकों में खौफ है और लगभग बुझ चुकी आग फिर तेज हो चुकी है। सरकार ने बड़ा कदम नहीं उठाया तो कुछ बड़ी घटना घट सकती है।

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