-निर्मल कुमार शर्मा
वर्तमानसमय में राजनैतिक अनुकंपाओं पर अपने पद पर बैठे लोग यथा राज्यों के महामहिम गवर्नर हों,चुनाव आयोग के प्रमुख हों,राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हों,जिनका रूतबा भारतीय राष्ट्र राज्य के किसी केन्द्रीय मंत्री के बराबर है,राज्यसभा सांसद हों आदि-आदि भारतीय संविधान के द्वारा भारत की संप्रभुता, उसकी अखंडता को कायम रखने के लिए अपनी प्रतिबद्धता,समर्पण व कर्तव्य का ईमानदारी से पालन करने की अपनी शपथ के ठीक विपरीत अपने वर्तमानसमय के कर्णधारों के दुर्नीतियों के पक्ष में खड़े नजर आते हैं,
तभी तो श्रीयुत् श्रीमान् अजीत डोभाल साहब सरेआम यह कहने की जुर्रत कर देते हैं कि चूँकि वास्तविक युद्ध अब बहुत खर्चीले व उनके परिणाम भी अनिश्चित हो गए हैं,इसलिए हम अपना युद्ध का रूख गरीब आदिवासियों,दलितों,अल्पसंख्यकों के हित के लिए लड़नेवाले मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाले तमाम सिविल सोसायटी के लोग यथा वकीलों,डॉक्टरों,प्रोफेसरों,पत्रकारों,कवियों, लेखकों आदि से एक नये युद्ध की बाकायदा घोषणा करते हैं ! संविधान प्रदत्त तीनों सेनाओं के संयुक्त सेनाध्यक्ष भारतीय राष्ट्रराज्य के महामहिम राष्ट्रपति को पदानवति करते हुए वर्तमानसमय के सत्ता के कर्णधार द्वारा सृजित पद चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ के पद पर बैठाए गये बिपिन रावत ( अब दिवंगत ) तो मॉबलिंचिंग के लिए उत्साहित करते हुए जम्मू कश्मीर के सत्ता के चाटुकारों का हौसलाअफजाई करते हुए यह निर्णय करने का अधिकार भीड़ को सौंप देते हैं कि वह आतंकी की पहचान कर स्वयं ही उसका निबटारा कर दें,एक कदम और आगे बढ़कर यहाँ तक बोल जाते हैं कि ‘जम्मू-कश्मीर के लोग कहते हैं कि वे आतंकवादियों को घेरकर मार डालेंगे,यह बहुत स्वागत योग्य बात है,अगर आपके इलाके में कोई आतंकवादी है तो क्यों नहीं उसे घेरकर मार डालते हैं आप ? ‘ इसी प्रकार राष्ट्रीय मानवाधिकार की अनुकंपा से बने अध्यक्ष साहब यह फर्माते हैं कि ‘ क्या आतंकवाद व नक्सलियों से निबटने के रास्ते में मानवाधिकार एक बाधा है ? ‘* पूर्व शासनिक अधिकारी व सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती अरूणा राय बिल्कुल ठीक कहतीं हैं कि वर्तमानसमय की राजनैतिक फिंजा अब ऐसी गढ़ दी गई है कि अपने सत्तारूढ़ राजनैतिक आकाओं और निजी क्षेत्र के कुछ कार्पोरेट्स को राष्ट्रनिर्माता और असहमति व्यक्त करने वाले नागरिक समूहों को प्रायः अर्बन नक्सली,टुकड़े-टुकड़े गैंग,खालिस्तानी,विकास विरोधी,राष्ट्र विरोधी तथा पाकिस्तान परस्त तक कह दिया जाता है !_
*_-निर्मल कुमार शर्मा, पत्र-पत्रिकाओं में पर्यावरण, राजनैतिक व सामाजिक विषयों पर स्वतंत्र व बेखौफ लेखन,गाजियाबाद, उप्र,