भारतीय रुपए के अच्छे दिन नहीं चल रहे। डॉलर के मुकाबले ये लगातार टूटता जा रहा है। आलम ये है कि इस साल अक्टूबर से दिसंबर महीने में ये एशिया के 48 देशों में सबसे कमजोर करेंसी में से एक बन गया है। इस वक्त 1 डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत 75.45 रुपए है। 1 जनवरी 2021 को ये 73.09 रुपए पर था।
भारत की करेंसी के कमजोर होने पर आप लोगों के मन में भी कई तरह के सवाल उठ रहे होंगे। यहां हम ऐसे 8 सवालों के जवाब दे रहे हैं…
- डॉलर के मुकाबले थर-थर कांप क्यों रहा है रुपया?
- पैसे की कीमत टूटने से किसे फायदा और किसे नुकसान?
- भारत के पड़ोसी देशों की करेंसी का क्या हाल है?
- दुनिया की पांच सबसे मजबूत करेंसी कौन सी हैं?
- अमेरिकी डॉलर से ही करेंसी की तुलना क्यों होती है?
- कैसे किसी देश की करेंसी मजबूत या कमजोर होती है?
- केंद्रीय बैंक जानबूझकर अपने देश की करेंसी क्यों गिरा देते हैं?
- RBI के पास विदेशी करेंसी कभी कम कभी ज्यादा कैसे होती है?
दुनिया की सबसे पांच मजबूत या स्टेबल करेंसी
दुनिया के सबसे पांच मजबूत करेंसी की बात करें तो इसमें सबसे पहले नंबर पर अमेरिकी डॉलर आता है। दुनिया के कारोबार में 85% अमेरिकी डॉलर में व्यापार होता है। दूसरे नंबर पर मजबूत करेंसी यूरो है। 19 यूरोपीय देश यूरो करेंसी इस्तेमाल करते हैं। तीसरे नंबर पर जापान की करेंसी येन है। दुनिया की सबसे पुरानी करेंसी ब्रिटिश पौंड चौथे नंबर है। पांचवे पर ऑस्टेलियाई डॉलर आता है।
अमेरिकी डॉलर से ही करेंसी की तुलना क्यों होती है?
कैसे किसी देश की करेंसी मजबूत या कमजोर होती है?
हर देश के पास दूसरे देश की करेंसी का भंडार होता है। जो देश जितना ज्यादा सामानों का निर्यात करता है, उस देश के पास उतनी ही ज्यादा विदेशी करेंसी होती है। किसी देश के पास जब विदेशी करेंसी की कमी हो जाती है, तो उस देश की करेंसी की कीमत कम हो जाती है। इसके अलावा, किसी देश के पास कितना सोना है इससे भी उस देश की करेंसी की कीमत तय होती है।
किसी देश की केंद्रीय बैंक अपने देश की करेंसी को ही क्यों गिरा देती है?
एक उदाहरण से समझिए कि एक अमेरिकी कंपनी भारत से 5 किलो चायपत्ती प्रति किलो 5 यूएस डॉलर के हिसाब से खरीदती है। एक अमेरिकी डॉलर की वैल्यू 70 रुपया है। यानी 5 किलो चायपत्ती का दाम 350 रुपया है।
इसके बाद अमेरिकी बिजनेसमैन कहता है कि नेपाल से उसे कम दाम में चायपत्ती मिल रही है। भारतीय बिजनेसमैन दाम घटाने से इनकार कर देता है। भारत सरकार अब डॉलर की तुलना में रुपये की वैल्यू घटाकर 75 रुपए कर देती है। फिर 5 किलो चायपत्ती का दाम 350 रुपया ही है, लेकिन अब अमेरिकी बिजनेसमैन को इसके लिए 4.66 डॉलर ही देना होता है। इससे चायपत्ती का व्यापार बढ़ जाता है और इससे व्यापार घाटा कम करना आसान हो जाता है।
RBI के पास कैसे जमा होती है कम-ज्यादा विदेशी करेंसी
भारतीय रिजर्व बैंक के पास विदेशी करेंसी के बढ़ने या घटने की कई वजह हो सकती हैं। लॉकडाउन के बाद भारतीय कारोबार बंद रहा। इस दौरान सामानों का निर्यात नहीं हो पाया। ऐसे में भारत के पास विदेशी करेंसी नहीं आई, लेकिन ऑक्सीजन सिलेंडर, दवाई समेत कई चीजों की खरीद के लिए जमा डॉलर खर्च करने पड़े। महंगाई, बेरोजगारी जैसे कारकों की वजह से भी किसी देश की करेंसी कमजोर या मजबूत होती है।