अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

अतृप्त वासना

Share


_डॉ. विकास मानवश्री की यथार्थ घटना पर आधारित कहानी 

प्रस्तुति : कुसुम (पूणे)

   _मैं पथ पर अकेला था। मेरा हृदय-संगीत था और दूर-दूर तक पहाड़ी- पगडंडियों में चांदनी बिखरी सोई थी। रातें ठंडी हो गई थी। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों पर बर्फ गिरने लगी थी।_
    एक माह की देर थी कि यहां भी बर्फ के गोले पड़ने लगेंगे। नदिया जमकर चाँदी की धारों में बदल जायेगी। काले पहाड़ों की चोटियों पर शुभ्र हिम ऐसे चमकने लगेगा,जैसे पहाड़ों ने अपने जूड़ों पर जुही के सफेद फूल बाँध लिये हो।

मैं अपने आप में खोया-खोया आगे बढ़ता गया। कभी-कभी पक्षी रात में मौन को तोड़ता निकल जाता और सूनी वादियाँ उसके परों की फड़फड़ाहट में गूंज जाती। फिर रात का ठंडा मौन वैसे ही वापस घिर आता जैसे नदी की छाती पर गिरे पत्थर से कांपती लहरें फिर एक- दूसरे में मिलकर मौन जो जाती।
आधी रात का जवान चाँद चमक रहा था। एक सफेद बादल का तनहा-सा टुकड़ा उसके पास-पास तैरता जा रहा था। मैंने सोचा, चाँद के साथ तो कोई है पर मैं बिलकुल ही अकेला हूं। मैंने नजर उठाकर चारों तरफ फैली सुनसान वादियों को देखा और फिर अपनी 21वर्ष की मानो उस जिंदगी पर नजर डाली जो आज मुझे एक लंबी सुनसान अंधेरी वादी के सिवाय और कुछ भी नहीं लगती है।
इससे मेरा मन उदास हो गया और मैंने बीच में अचानक ही टूट गये अपने अंतस-संगीत को फिर गुनगुनाना शुरू कर दिया। सफेद बदली देर तक चाँद को धेरे रही। फिर अंत में उस पर छा गई और मेरे पथ पर एक क्षण को झीना-सा अँधेरा उतर कर चाँदनी के सफेद रूप में घूलमिल गया।

मेरी पगडंडी अब एक मोड़ पर आ गई थी। पहले थोड़ा-सा उतार था और फिर दूर तक एक लंबा चढ़ाव जो चिनार के वृक्षों में से होता पहाड़ के ऊपर तक घूमता चला गया था। मैं इस चढ़ाव के ऊपर तक घूमता चला गया था। इस चढ़ाव के अंत गांव था, जहां एक बूढ़ी मां मेरी बाट जो रही थी।
उतार पर धीरे-धीरे नीचे उतरने लगा। सामने की घाटी के उस पार शैल नदी की चौड़ी धारा चाँदनी की झिलमिलाहट में चमक रही थी। उस पर दूर एक सफेद धब्बे-सा बजरा पानी पर डिगा था और उससे बांसुरी के मीठे स्वर थिरकते पहाड़ों से टकरा रहे थे।
   मैंने अपना हृदय-संगीत बंद कर दिया और बांसुरी को सुनने लगा। वादियों के सुनसान प्राण धीरे-धीरे उसके लहराते स्वरों से भर गये। मेरी आंखों में नींद की ख़ुमारी उतरने लगी और पहाड़ की रात एक मधुर से स्वप्न में बदल गई।
पगडंडी का उतार अब पूरा होने को था। गांव को जाती राह सांप की सुनहरी कांचली-सी दूर तक चमकती दिख रही थी। बांसुरी के स्वर तीव्र हो गये थे और नाव धीमी गति से अब किनारे की तरफ आ रही थी। चाँद लहरों को चूम रहा था। सफेद बदली का टुकड़ा बहुत पीछे किनारों के ऊंचे वृक्षों में उलझा-सा लगता था।
   मैं कंकड़ीली पगडंडी के उतार पर किसी स्वप्न में खोया- सा उतरने लगा। मेरा रास्ता ऊपर जाता था; पर मेरे प्राणों के तार नीचे को बह रहे थे। 
मुझे लगा कि जैसे मुझे कोई नीचे खींच रहा है और मैं अपने कदमों को रोकने में असमर्थ हूं।बांसुरी के स्वर धीरे-धीरे तीव्र से तीव्र तर होते जा रहे थे। नदी करीब आती गई और मैं किनारों के ऊंचे वृक्षों के बीच से नीचे उतरता गया। पगडंडी पर अब रेत ज्यादा बढ़ गई थी और शैल का किनारा मुझसे ज्यादा दूर नहीं था।
ठंडी हवाएँ लहरों को थपेड़े देती मुझे छूने लगीं। मेरी शाल का पल्ला पीछे-पीछे उड़ता। मेरी सांसों में बरफ का ठंडापन उतरने लगा। साँसे भीतर जाती तो ऐसा लगता जैसे प्राण में बरफ के लहराते फीते घँसते चले जा रहे हों। पगडंडी अंत में रेत में जाकर खो गई। 

 मैं अब पहाड़ से नीचे उतरआया था। सफेद बगुलों के परों- सा पाल ताने बजरा किनारे पर लगने को था। चाँद सिर पर आ गया था और मेरी लंबी छाया सिमट कर मेरे पैरों में लिपट आई थी। बांसुरी अब और मधुरता से बज रही थी। उसके स्वर मेरी सांसों में डूब रहे थे। मैं उनकी मधुरता में आगे बढ़ता गया और किनारे पर जाकर खड़ा हो गया।

हिलती लहरों ने मेरा स्वागत सत्कार किया और किनारे पर बैठा कोई पक्षी उड़ता उस पार चला गया। नाव मेरे पास ही आकर रूक गई। लहरें उसके आगमन से हिलीं और एक-दूसरे पर दौड़ती चली गई। बांसुरी के स्वर तीव्र से तीव्रतर होते चले गये।
वे स्वर ब्अंत में एकाएक ऐसे टूट गये जैसे कोई चीनी का बर्तन अचानक पत्थर पर गिरकर बिखर गया हो। उनकी प्रतिध्वनि पहाड़ों में गूँजी और फिर नाव में कोई मीठी हंसी हंसने लगी।
उसकी मीठी हंसी में उसी बांसुरी के सुरों से ज्यादा मिठास थी। मेरे रोएं-रोएं में कंपन की लहर दौड़ गई। मेरे दिल की धड़कनों पर उसकी ध्वनि टूटे गजरे के फूलों- सी बिखरती चली गई। दो क्षण नितांत खामोशी में बीते और मुझे मेरे दिल की धड़कनों की आवाज स्पष्ट सुनाई देती रही।
फिर कोई बाहर आया और चाँद की रोशनी अचानक दो-गुनी हो उठी। मैं एक टक उसे देखता ही रह गया। वह बला की सुंदरी फिर हंसने लगी। मेरे दिल के कमल थर-थर होने लगे।

वह कौन थी? मैं नहीं जानता था पर मुझे लगा जैसे हम युग-युग के जाने-पहचाने मुसाफिर हैं। जन्मों से मेरे सपनों को छूने वाली जादूगरनी मेरे सामने खड़ी है।उसकी भँवरे- सी काली- काली पुतलियों पर चांद प्रतिबिंबित हो रहा था। उसके चाँदनी से गोरे, कमसिन गालों पर बालों की एक काली लट हवा में झूल रही थी।
वह एक क्षण चुपचाप मुझे देखती रही और फिर धीरे बोली : नाव पर आ जाओ।
उसकी आवाज में फूलों की खुशबू और सुबह की ताजगी थी। मैं एक क्षण ठिठका और पागल की तरह किसी अनजानी कशिश में बंधा नाव पर चढ़ गया।
नाव मेरे चढ़ने से धीमे से डोलने लगी जैसे सुबह की दक्षिणी हवा में नयी-नयी फूल की पंखुरी डोलती है। लहरें जोर से हिलने लगीं और शैल के आँचल पर सोया चाँद का प्रतिबिंब टूक-टूक होकर बिखर गया।
उसने अपने जानलेवा-मादक ज़िस्म पर आसमानी रंग की पतली-सी, झीनी-सी पारदर्शी साड़ी पहनी थी। लंबे-लंबे काले बालों को खुला छोड़ रखा था। साड़ी से उसके शरीर का रूप ऐसे छन-छन कर बाहर आ रहा था जैसे पतली मलमल की तहों में किसी ने चाँदनी की रूपहली रोशनी छुपा दी हो।
मैं उसे देखता रहा,देखता रहा, और देखता ही रह गया। वह पीछे लौटी और पर्दा उठाकर बड़ी मधुर आवज में बोली—
‘’भीतर आ जाओ!’’
मुझमें उसके आदेश को इनकार करने की सामर्थ्य बिलकुल नहीं थी। वह भीतर गई तो मैं भी उसके पीछे ही पर्दा उठाकर भीतर हो गया। उसके अपने कोमल हाथों में मेरे हाथ को ले लिया और मेंरी आंखों में झांकने लगी।
उसके उभरे उरोज मेरी छाती को छू रहे थे। मेरे प्राणों का तार-तार कांपने लगा। मेरी आंखों के सामने से सब कुछ मिटाता, एक शून्य बिखरता चला गया।
उसने धीमे से मुझे अपनी बांहों में भर लिया और मेरे होठों पर अपने मधुमय ओंठ लगा दिए। मेरा अंतर उसके ह्रदय की धड़कनों के स्पर्श में नए-नए स्पंदन से भर गया। उसके आलिंगन के नशे में मेरी चेतना धुल मिलकर एक हो गई।

सुबह मेरी चेतना लौटी। मैं ठंडी रेत में पडा था और पहाड़ों के पीछे से सुबह का सूरज धीरे-धीरे ऊपर उठरहा था। मैंने अपने चारों तरफ देखा। कहीं भी कोई नहीं था। बस दूर एक मछुए का झोंपड़ा विचारमग्न किसी एकाकी दार्शनिक-सा घास में सिर उठाए खड़ा था।
मैं उठा और झोंपड़े की तरफ चल पडा। मेरा अंग-अंग शिथिलता से बोझिल था और रात की घटनाओं की स्मृति मेरी आंखों में घूम रही थी।
बूढ़े मछुए से मैंने रात की सारी बातें कहीं। वह गंभीर हो गया और बोला :
“तुम खुशकिस्मत हो, जो अब भी जिंदा हो। यहां अक्सर ऐसा होता है और आज तक सिर्फ़ लाशें ही मिली हैं : पूरी तरह निचुड़ी- सूखी लाशें। शायद तुम किसी अलौकिक शक्ति के स्वामी हो। इस घाटी को जितनी जल्दी हो सके छोड़ दो। जिसके आलिंगन में, जिसके ज़िस्म में तुम रातभर रहे हो वह कोई जीवित व्यक्ति नही है। वो एक बेहद खूबसूरत और सेक्सी लड़की मृतात्मा है; जिसकी वासना अधूरी रह गई है।‘’
🎇चेतना विकास मिशन :

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें