अग्नि आलोक
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वे आये थे साहब

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वे आये थे साहब
दो तीन लोग थे
बोल रहे थे
मंत्री जी का खाना है तुम्हारे घर
तुम्हे चुना है हजारो में
खुशकिस्मत हो तुम

मैंने कहा बहुत
कि मंत्री जी लायक नही है मेरा घर
बिजली नही है
पानी नही है
भात भी सिर्फ चावल उबाल कर खाते हैं
कभी एक टेम, कभी कभी दो टेम
मेरा घर उनके काबिल नही साहब

मैंने कहा बहुत
मगर मेरे कहने का कब मोल था मेरे देस में
मेरे देस के सफेदपोश के सामने

वे बोले
सब हो जाएगा
तुम बस कोने में बैठ जाना
फ़ोटो के बखत

वे आये साहब
घर पोत गए
सब हरा हरा दिखने लगा साहब
जनरेटर उठा लाये वे
कूलर ले आये
खाना भी ले आये
पत्तल-दोना सब था उनके पास
पानी भी था अलग
ठंडा औऱ साफ
उन्होंने खुद किया सब इन्तजाम
मैंने नही छुआ कुछ भी
ना उन्हें, ना उनका खाना ना उनके बर्तन

वे मुझसे बतियाये भी नही साहब
बस खाये
खाते रहे
मेरे सामने फेंका कुल्ले का पानी
और हाथ धो कर चले गए

मुझे तो यह भी नही पता साहब
वे क्यो
आये थे
तुम ही बता दो साहब
वे अपनी भात
मेरे घर बैठकर क्यो खा कर गए

वीरेंदर भाटिया

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