संतोष कश्यप
मैं किसी पार्टी से कोई संबंध नहीं रखता ना ही किसी राजनैतिक संगठन या नेता से । मेरे दिल की बात पर यकीन करें तो सच में मुझे राजनीति के नाम पर सिर्फ राजनीति पढ़ने में इंट्रेस्ट है और कुछ नहीं । यूं ही पढ़ते पढ़ते जब कभी कांग्रेस के बारे में पढ़ता हूं तो लगता है कांग्रेस और आजादी एक दूसरे पर निर्भर थे । यदि भारत आजाद नही होता तो कांग्रेस को इतनी लंबी शासन का अनुभव नहीं होता और ठीक इसी तरह यदि कांग्रेस नहीं होता तो हम आजाद तो कभी न कभी होते मगर एक जो भारत की संपूर्ण विश्व में जुदा अदायगी है , शायद नहीं होती ।
आजादी के साठ- सत्तर पहले से कांग्रेस द्वारा की गई संघर्ष ने आजादी के बाद कांग्रेस को साठ -सत्तर साल राज करने का मौका दिया , और ये बहुत बड़ी बात है की 138 साल पुरानी बूढ़ी पार्टी आज तक हिंदुस्तान में नंबर दो से कभी नीचे नहीं गई । कम्युनिस्ट पार्टी का जबरदस्त उछाल हो या हिंदू महासभा कम भाजपा की एकमुश्त बहुमत, कांग्रेस की नींव पर आंच तक नहीं पहुंची । पर शायद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपने पूरे जीवन के सबसे बुरे दौर में है ।
आने वाले चुनाव में डर है की शायद कांग्रेस दूसरी नंबर की पार्टी भी ना रह पाए और अगर ऐसा हुआ तो सचमुच कांग्रेस को बचाना असंभव सा हो सकता है । यदि कांग्रेस को जिंदा रखना है तो इसके लिए आगे आना होगा, आज से अभी से । राहुल गांधी बिल्कुल एक बेहद स्मार्ट,बुद्धिजीवी और संघर्षशील नेता हैं । हो सकता है सालों बाद इस देश को समझ आए की हिंदुस्तान ने अरसे बाद कोई आदर्शवादी नेता पैदा किया था, जो परिवारवाद के आरोपों में उलझकर कहीं खो गया । अब तो एक कुशल वक्ता भी हो चुके हैं राहुल लेकिन फिल्हाल कांग्रेस को बचाए जाने की जरूरत है और इसके लिए प्रेजेंट पॉलिटिक्स में मानो या नही लेकिन एज अ पीएम कैंडिडेट राहुल फीट नही बैठते और इसके लिए दो आम चुनावों में करारी हार एक्सक्यूजमेंट के लिए काफी है । हो सकता है राहुल भारतीय राजनीति में बदलाव की लड़ाई लड़ रहे हों, लेकिन पॉलिटिकल आइडियोलॉजी की लड़ाई लड़ने के लिए पॉलिटिकल बेस को जिंदा रखना होगा और कांग्रेस भारत की पॉलिटिकल बेस है । बीसवीं शताब्दी के लिए राहुल कांग्रेस की ओर से एक बेहतर केंद्रीय चेहरा हो सकते मगर आज के लिहाज से चेहरे बदलने पड़ेंगे । भले ही राजनीति के मायने भाजपा ने बदल दिए हों मगर इस बदले हुए मायने में ही कांग्रेस को लड़ना होगा ।
देश की राजनैतिक आस्था को बचाने के लिए पहले स्वयं कांग्रेस को बचना होगा । युवाओं की भागीदारी बढ़चढ़कर हो इसके लिए कांग्रेस की कोशिश जारी रहनी चाहिए। छात्र संगठन को छोटे से छोटे कॉलेज/ यूनिवर्सिटीज में एक्टिव रहने की जरूरत है । मैं देखता हूं चाहे एबीवीपी की सक्रियता हो या सोशल मीडिया सेल की, भाजपा ने काफी मजबूती से पैर जमाए रखने की सोच रखी है । कांग्रेस को भी यही करना होगा। छात्रों को जोड़ने का फायदा फर्स्ट टाइम वोट बेनिफिट के रूप में हो सकता हैं। मैंने देखा जैसे ही मैने अपने विश्विद्यालय में नामांकन कराया उस संस्था के आगे एबीवीपी लिखे एक ग्रुप से ज्वाइन होने का तुरंत आमंत्रण आ गए , एनएसयूआई ढूंढने पर भी नहीं मिली । गुजरात मॉडल के नाम पर प्रधानमंत्री का चेहरे और फिर प्रधानमंत्री बने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से कांग्रेस को सीखने की जरूरत है । आप केंद्र में नही हो कोई बात नही पर आप जिन राज्यों में हो कम से कम वहां तो अच्छा करो । नीति आयोग समेत कई रिपोर्ट बताती है छत्तीसगढ़ और राजस्थान लगभग हर मामले में फिसड्डी है ।
वहीं पंजाब की बात करें तो युवाओं को नशे की लत ने बेकार कर दिया है, जहां सरकार की नियंत्रण शून्य है । बस इतना ही नहीं, कांग्रेस कुल मिलाके छः राज्यों में सरकार में है जहां तीन कांग्रेसी सीएम हैं लेकिन मध्यप्रदेश की तरह ही उन तीन राज्यों में भी मुख्यमंत्री पद की लड़ाई लगातार जारी रहती है, दूर से देखे तो कॉन्ग्रेस अपने राज्य में खुद को सही से स्थित नही कर पाई है जनता की समस्याओं को तो रहने ही दो ।तो कांग्रेसियों ! अगर देश बचाना है तो पहले कांग्रेस को बचाना होगा वरना टीएमसी और दूसरे दल घात लगाए बैठे हैं राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा से निपटने को ।
– संतोष कश्यप