आत्मसमर्पण कर डाकू से सरपंच ने गांव का किया कायाकल्प*
*इंदौर* । सौ वर्ष से अधिक पुरानी सामाजिक और साहित्यिक संस्था महाराष्ट्र साहित्य सभा के यशवंत ग्रन्थालय ने बसंत पंचमी पर अपना स्थापना दिवस मनाया।इस मौके पर साहित्यकार और लेखक विश्वनाथ शिरढोणकर,माणिक भिसे, अस्मिता हवालदार और डा. श्रीकांत तारे ने कथा कथन किया।यह जानकारी संस्था अध्यक्ष अश्विन तारे और सचिव प्रफुल्ल कस्तूरे ने दी।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मधुसूदन तपस्वी ने अपने संबोधन मैं कहा कि मैं महाराष्ट्र साहित्य सभा के पहले शारदा महोत्सव से शुरू होने वाले 60 वें एस शारदोत्सव तक के सफर मैं साथ रहा। विशेष अतिथि श्री विश्वास डांगे थे।कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती देवी की तस्वीर पे मालयार्पण और दीप प्रज्वलन से हुआ। चारो कथाकारों ने अपनी-अपनी कथा को बड़े रोचक तरीके से प्रस्तुत किया।शुरुआत लेखिका माणिक भिसे की कथा वारिस से हुई,जिसमे बताया कि कुछ विशेष लोग होते है , जो बड़े बड़े कार्य करते लेकिन खामोशी के साथ और उनके लिए वह एक साधना होती।ऐसे लोग अंधविश्वास से ऊपर उठकर समाज हित में कार्य करते।
पेशे से डेंटिस्ट और लेखिका अस्मिता हवालदार की पिकनिक कथा तो लड़का,लड़की पर केंद्रित थी।लड़का यह बताना चाहता है की वह पहले उस लड़की के घर जाकर उससे मिलना नही चाहता और ना उसका कोई शादी का इरादा है।लेकिन वही लड़का प्लान बनाकर उस लड़की के साथ पिकनिक पर जाता और बाद में शादी के लिए तैयार हो जाता।वरिष्ठ साहित्यकार विश्वनाथ शिरढोणकर नेअपनी सरपंच कथा में बताया कि एक डाकू का जीवन कैसे परिवर्तित होता और वह 30 बरस तक सरपंच रहकर समाज सुधार के कार्य करता।डाकू का पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना और सकारात्मक सोच के साथ काम करने को बड़े रोचक तरीके से प्रस्तुत किया।
मराठी फिल्मों की स्क्रिप्ट लखने के साथ कई कथाएं लिख चुके डा.श्रीकांत तारे ने अपनी कथा बाधा सुनाई।जिसमे बताया कि दादा का अपनी पोते के प्रति इस कदर मोह रहता है कि वह स्कूल जाते समय जरा भी रोता तो वह इतने भावुक हो जाते कि उसे वापस घर ले आते।दादा की अनुपस्थिति में दादी पोते को स्कूल छोड़ती और रोने पर भी उसे घर नही लाती।एक दिन जब वही दादा उसी पोते को स्कूल ले जाते तो वह जरा भी नही रोता तो दादा को आश्चर्य होता।टीचर बताती की आपका बच्चे के प्रति अधिक मोह ही उसके विकास में बाधा बन रही थी। अतिथि स्वागत संस्था उपाध्यक्ष रंजना ठाकुर,दीपाली सुदामे,अशोक अमलापुरकर,अनिल दामले और अनिल मोड़क ने किया। भाषण प्रफुल्ल कस्तूरे ने दिया।कार्यक्रम का संचालन तथा आभार मदन बोबडे ने माना।इस मौके पर अशोक पाटनकर,पंकज टोकेकर,दीपक शिरालकर,प्रवीण जोशी ,श्रद्धा पाठक , सिंधु कस्तूरे हेमंत पनहालकर सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।संपूर्ण कार्यक्रम मराठी भाषा में संपन हुआ।