अशोक मधुप
आज देश में हिजाब को लेकर विवाद चल रहा है। मुस्लिम युवतियां हिसाब के पक्ष में प्रदर्शन कर रहीं हैं। प्रगतिशील लेखक उनके समर्थन में उतर आए हैं।ऐसे में मुझे याद आती हैं दुनिया की जानी −मानी लेखिका कुर्रतुन ऐन हैदर।उनके पिता अलीगढ़ विश्वविद्यालय के पहले रजिस्ट्रार थे। फिर भी उन्होंने अलीगढ़ विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त नही की।वह दो बार विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए गईं । दोनों बार उनसे हिसाब पहनकर आने का कहा किंतु उन्होंने कहा कि मेरी मां ने कभी हिसाब नहीं पहना । मैं भी नहीं पहनूंगी।
वह अपने परिवार की एक हजार साल के आत्म कथात्मक उपन्यास “कारे जहां दराज है”,में कहती हैं कि वह पांचवी में पढ़ने के लिए गईं। उस्तादनी जी को मेरे फ्राक पर एतराज था। उनका कहना था कि सिर ढंक कर बैठा करो।वह कहती हैं कि वह एक सवा माह पढ़ने गईं। एक दिन आकर यह दिया कि मुझे नही पढ़ने जाना।
पह अलीगढ़ विश्वविद्यालय की तारीफ करती हैं। वह कहतीं हैं कि वह एक सांझा परिवार है। सब एक दूसरे के दुख− दर्द में शामिल होते हैं। शादी−विवाह भी आपस में होतें हैं।कहती हैं कि वह कभी यहां नहीं पढ़ी। सिर्फ उस एक या डेढ माह के जब वे
पांचवी में पढ़ने बैठी थीं और वहां से भाग निकली।वह कहती हैं कि उनका
लगभग सारा खानदान अलीगढ़ में ही पढ़ा है।
“कारे जहां दराज है”,, में वह कहती हैं कि वह अलीगढ़ एमए इंग्लिश से करने के इरादे से आईं। उस समय लड़कियां एमए के लेक्चर सुनने के लिए युनिवर्सिटी जाने लगी थीं । लेकिन उनको बुर्का पहनना पड़ता था। वह एमए इंगलिश में अकेली लड़की थीं। एक छात्र के लिए क्या स्र्कीन लगाई जाए, क्या किया जाएॽबड़ी समस्या थी। अंग्रेजी के प्रोफेसर ने कहा कि तुम बुर्का पहनकार क्लास के दरवाजे के पास बैठ जाया करो।
कुर्रतुल ऐन हैदर कहती हैं कि मैंने उनसे कहा कि आप बिल्कुल संजीदा नहीं हो। उन्होंने जवाब दिया कि बुर्का पहनना लाजमी है। कुर्रतुल ऐन हैदर कहती हैं कि मैंने उनसे कहा कि यहां (अलीगढ)आकर मेरी बालिदा ( मां) ने 1920 में पर्दा करना छोड़ दिया । यूनिवर्सिटी के शिक्षकों की बेगमात को पर्दे से बाहर निकाला। और अब 25 साल बाद आकर मैं यहां बुर्का ओढूं ।ये मुझे स्वीकार नहीं और मैंने अलीगढ़ को खुदा हाफिज कहा और लखनऊ चली आई।
कुर्रतुल ऐन हैदर के नजदीकी रहे नहटौर के पत्रकार एम असलम सिद्दीकी बतातें हैं कि उन्होंने लखनऊ से पढाई की।वे पूरी दुनिया घूमीं । अकेले घूमी।
20 जनवरी 1927 में जन्मी कुर्रतुल ऐन हैदर का 21 अगस्त 2007 का निधन हुआ। काश आज वह जिंदा होती तो बुर्का पहनने को लेकर शुरू हुए विवाद पर मलाल जरूर करतीं।
अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)