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सबरीमाला मन्दिर,महिलाएं और भारत की मूर्खतापूर्ण प्रथाएं  !

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-निर्मल कुमार शर्मा

‘महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कम नहीं होती हैं । धर्म के पितृसत्ता को आस्था के ऊपर हाबी होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है । जैविक या शारीरिक कारणों को आस्था के लिए स्वतंत्रता में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। धर्म मूल रूप से जीवन का मार्ग है हालांकि कुछ प्रथाएं विसंगतियां बनाती हैं,महिलाओं को मंदिरों में प्रवेश से रोकना अनुच्छेद 25(प्रावधान 1) का उल्लंघन है और वह केरल का कानून हिन्दू सार्वजनिक धर्मस्थल (प्रवेश अनुमति ) नियम के प्रावधान 3(बी ) को निरस्त करते हैं। 10 वर्ष से 50 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से प्रतिबंधित करने की परिपाटी को आवश्यक धार्मिक परंपरा नहीं माना जा सकता और केरल का कानून महिलाओं को शारीरिक /जैविक प्रक्रिया के आधार पर महिलाओं को अधिकारों से वंचित करता है। महिलाओं को पूजा करने के अधिकार से वंचित करने में धर्म को ढाल की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और यह मानवीय गरिमा के विरूद्ध है । भारतीय सुप्रीमकोर्ट ने आगे कहा कि गैर-धार्मिक कारणों से महिलाओं को प्रतिबंधित किया गया है और यह सदियों से जारी भेदभाव का साया है। महिलाओं की उपस्थिति ब्रह्मचर्य को परेशान करेगी । इस तरह पुरुषों की ब्रह्मचर्य का बोझ महिलाओं पर डाला जा रहा था । यह महिलाओं के प्रति रूढ़िवादी प्रवृत्ति का प्रतीक है। ‘
-भारतीय सुप्रीमकोर्ट

Sabarimala temple opens Saturday evening, no police protection for women |  Business Standard News


भारत की शीर्ष अदालत का भारतीय समाज की कुरीतियों को कठघरे में खड़ा करनेवाला फैसला इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन और अन्य की याचिकाओं पर 28 सितम्बर 2019 को आया था ।
केरल की राजधानी तिरूवनंतपुरम से लगभग 175 किलोमीटर दूर पथनमथिट्टा जिले में घने जंगलों में एक मध्यम ऊँचाई वाली पहाड़ी पर सबरीमाला नामक स्थान पर स्थित कथित कुँआरे भगवान अयप्पा मंदिर के पोंगपंथियों और पुजारियों का कथन था कि ‘इस प्राचीन मंदिर में 10 साल से लेकर 50 साल तक की उम्र की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है । ऐसा माना जाता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी हैं और चूंकि इस उम्र की महिलाओं को मासिक धर्म होता है,जिससे मंदिर की पवित्रता बनी नहीं रह सकेगी ! 10 से 50 वर्ष की आयु तक की महिलाओं के प्रवेश पर इसलिए प्रतिबंध लगाया गया है क्योंकि मासिक धर्म के समय वे शुद्धता बनाए नहीं रख सकतीं । वर्ष 2006 में इस मंदिर के एक पुजारी ने यह भविष्यवाणी कर दिया था कि ‘ चूँकि अयप्पा मंदिर में युवा महिलाएं प्रवेश कर रहीं हैं,इसलिए भगवान अयप्पा अपनी ताकत खो रहे हैं ! ‘
अब सबरीमाला स्थित कथित कुँआरे अयप्पा भगवान के जन्म के बारे में कथित ईश्वर लिखित पौराणिक ग्रंथों में एकदम बकवास और बेसिरपैर की कथा के बारे में वर्णित बातों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं ‘पौराणिक कथाओं के अनुसार अयप्पा का जन्म भी बड़ी ही अजीबोगरीब स्थिति में हुआ ! कथित सुर-असुर के मध्य हुए समुद्रमंथन से निकले रत्नों के बँटवारे में बेईमानी करने के लिए विष्णु ने अत्यंन्त सुन्दर मोहिनीरूपी एक सुन्दर औरत का रूप धारण किया था,अब हुआ यह कि शिवजी का उस मोहिनीरूपी विष्णु के प्रति उनका दिल बुरी तरह आसक्त हो गया !और उन दोनों के समागम से कथित कुँआरे भगवान सस्तव का जन्म हो गया ! जिसे दक्षिण भारत में अयप्पा कह दिया जाता है, चूँकि शिव और विष्णु के शारीरिक मिलन से अयप्पा जी का जन्म हुआ,इसलिए इन्हें हरिहर पुत्र भी कहा जाता है ! ‘
उत्तर भारत में आज भी एक सामान्य परंपरा है कि यहाँ पुरूष नर्तक मेकअप करके खूबसूरत स्त्री का वेश धारण करके सार्वजनिक उत्सवों में या शादी आदि में सार्वजनिक तौर पर नाच-गाना-नाट्यप्रस्तुति आदि करते रहते हैं। तो क्या यह विज्ञान सम्मत बात है कि उस पुरूष से जो स्त्री का रूप धारण किया है,से कोई पुरूष पौराणिक काल के शिव-मोहिनी रूपी विष्णु जैसे समागम कर ले ? और उन दोनों के शारीरिक मिलन से कोई बच्चा भी पैदा हो जाय ? यह बिल्कुल असंभव,अतार्किक,अवैज्ञानिक तथा सफेद झूठ बात है ! कोई भी पुरूष अपने वाह्यावरण में परिवर्तन करके भले ही स्त्री का छद्मावेश बना ले,लेकिन उसके आंतरिक अवयव यथा गर्भाशय और दुग्ध ग्रंथियों का विकास कभी नहीं होगा ! उसका शरीर पुरूषवत ही बना रहेगा ! क्या मोहिनी रूप धरे विष्णु के शरीर में उस समय स्त्रियों जैसे गर्भाशय और दुग्ध ग्रंथियों का भी निर्माण हो गया था ? क्या आपको अभी भी विश्वास है कि कथित कुँआरे भगवान अयप्पा का जन्म ऐसे कपोलकल्पित गप्पों से हो गया होगा !
भारत एक ऐसा देश है,जहाँ आज के वैज्ञानिक युग में भी अंधविश्वास और पाखंड को अत्याधुनिकतम् प्रिंट,श्रव्य और इलेक्ट्रॉनिक मिडिया के माध्यम से धर्म के ठेकेदार और धर्मिक और जातिगत् दुराग्रहों के बल पर सत्ता की मलाई का चरम सुख भोगनेवाले सत्ता के कर्णधारों द्वारा उन सभी पाखंडों और गप्पों को सही ठहराने की कोशिशें की जातीं हैं,उदाहरणार्थ सत्तारूढ़ दल के बहुत से चाटुकार जज,कथित वैज्ञानिक,सांसद,मंत्री और प्रधानमंत्री तक समय-समय पर पाखंडभरी,निर्रथक,बेसिरपैर की बातों का जानबूझकर महिमामंडन करते रहते हैं,ताकि इस देश की पूजापाठ,वरदान,आस्था और कृपा के आसरे अपना संपूर्ण जीवन बिता देनेवाली जनता सत्ता के इन कथित बड़े लोगों के दकियानूसी और कथित धार्मिक बातों से प्रभावित होकर अपनी वास्तविक जीवन की गंभीर समस्याओं को नेपथ्य में धकेलकर एक काल्पनिक और आभाषी दुनिया में जीती रहे ! कुछ बानगी देखिए कितनी आश्चर्यजनक बात है कि भारत का प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से जानबूझकर अतार्किक और अंधविश्वास पूर्ण बातें मसलन हमारे देश में प्लास्टिक सर्जरी लाखों साल पहले से होती आई है ! मानव बच्चे के सिर कटी गर्दन पर हाथी के बच्चे का सिर जोड़ देने मतलब गणेश की परिकल्पित कल्पना का उदाहरण देना,बादलों के पीछे रॉडार का काम न करना आदि-आदि बहुत सीबातें हैं ! हाईकोर्ट के एक मूर्ख व जाहिल जज का यह मूर्खतापूर्ण कथन किमोर के आँसुओं से मोरनी गर्भवती हो जाती है ! जालंधर विज्ञान कांग्रेस में एक चमचा वैज्ञानिक का यह कथन कि रावण की सेना में कई आधुनिकतम विमानों के स्क्वाड्रन थे ! आदि-आदि ये बयान अनजाने में नहीं इस समाज को मूर्ख बनाने के लिए जानबूझकर दिए जा रहे हैं । आज देशहित में भारत के बेरोजगार नवयुवकों को रोजगार देना देश और इस सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए,परन्तु पिछले कुछ वर्षों से काँवड़ यात्रा के नाम पर भारत के धर्मभीरु नवयुवकों को गुमराह करने की जोरदार और सुनियोजित ढंग से इस सरकार और उनके कुछ शातिर बुद्धिजीवियों की तरफ से भरपूर प्रयास करके इस देश को उलटी दिशा में भ्रमित कर सफलतापूर्वक घुमाया जा रहा है । आज यह हम सभी प्रबुद्ध भारतीयों को यह जबर्दस्ती घूँट पिलाया जा रहा है कि प्राचीनकाल के लिखे वेदों,उपनिषदों,पुराणों आदि में बहुत वैज्ञानिक बातें लिखी हुईं हैं । कहा यह भी जा रहा है कि आज की वैज्ञानिक प्रगति हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों द्वारा अविष्कृत उपकरणों से कतई बेहतर नहीं हैं !
पिछले दिनों समाचार पत्रों में केरल के सबरीमाला स्थित भगवान अयप्पा के प्रथम बार दर्शन करने में सफल रहीं दो महिलाओं के बारे में प्रमुखता से खबरें प्रकाशित हुईं थीं । ये दोनों महिलाएं क्रमशः 42 वर्षीय बिंदु अम्मिनी ,जो कॉलेज व्याख्याता हैं और 44 वर्षीय कनकदुर्गा,जो नागरिक आपूर्तिकर्मी हैं,पुलिस संरक्षण में परंपरागत काले परिधान में और अपना मुँह ढककर प्रातः तड़के 3.45 बजे अयप्पा मंदिर के पिछले गेट से मंन्दिर के गर्भगृह में प्रवेश कर पूजा-अर्चना करके वापस पुलिस संरक्षण में ही सुरक्षा हेतु पथानामथिट्टा जाकर किसी अज्ञात जगह चली गईं ।
धार्मिक रूढ़िवादियों के अनुसार चूँकि भगवान अयप्पा कुँवारे हैं इसलिए 10 वर्ष से 50 वर्ष तक की औरतों मतलब रजस्वाला उम्र की औरतों को पंडे-पुजारियों ने कई सदियों से भगवान अयप्पा के दर्शन करने से वंचित कर रखा है । ज्ञातव्य है कि पिछले वर्ष 28 सितम्बर 2018 को भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने इस मन्दिर को सभी उम्र की औरतों के लिए दरवाजे खोलने का आदेश पारित कर दिया था, इसके बाद कई बार औरतों ने भगवान अयप्पा के दर्शन करने की कोशिश कीं,परन्तु दुखदरुप से कुछ भाजपा समर्थित दक्षिण पंथियों,अंधविश्ववासियों और पाखंण्डियों और गुँडों के समूहों ने जो उस मन्दिर के रास्ते में कब्जा जमाये बैठे थे,उन सैकड़ों औरतों को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद भी अयप्पा मन्दिर में भगवान अयप्पा के दर्शन करने औरतों को नहीं जाने दिए थे !
इससे एक दिन पूर्व सुप्रीमकोर्ट के आदेश के समर्थन में 35 लाख केरल की औरतों ने लैंगिक असमानता के विरूद्ध केरल के एक छोर से दूसरे छोर तक के 620 किलोमीटर की मानव श्रृखंला बनाईं थीं और मुंबई में भी 1000 औरतों ने मानव श्रृंखला बनाकर इन दक्षिण पंथियों, अंधविश्वासियों,ढपोरशंखियों और गुँडों को जिनकी अगुवा भारतीय जनता पार्टी है,का विरोध किया था । यही नहीं ये धर्म के नाम पर केरल में दंगे फैलाने की भी कोशिश किए थे,जिसके अंतर्गत दर्जनों दुकानों में आग लगाई गई और एक निरपराध आदमी की हत्या भी की गई ! आखिर प्रश्न यह है कि भगवान अयप्पा कुँआरे भी हैं, तो भी किसी न किसी के बेटे,भाई तो रहे ही होंगे ही,उनकी माँ,बहन,बुआ आदि तो रही होंगी । क्या समाज में कुँवारे लड़के अपनी माँ,भाभियों, बहनों,भतीजियों,बुआओं आदि से नहीं मिलते ? तो इस कुँँवारे भगवान अयप्पा के दर्शन से युवा औरतों के दर्शन पर प्रतिबन्ध क्यों ? आखिर ये भगवान अयप्पा पत्थर की मूर्ति के रूप में ही तो हैं !
बड़े दुःख और क्षोभ की बात है कि इक्कीसवीं सदी में दुनिया के अन्य देशों में वहाँ की सरकारों,वहाँ के लोगों में,वैज्ञानिकों में वहाँ के समाज की भलाई, समदर्शिता,समानता,शिक्षा और नये-नये वैज्ञानिक अविष्कार करने की होड़ लगी हुई है । दूसरी तरफ हमारे देश में पुरातनकालीन, सड़ीगली,अंधविश्ववासी और मूर्खतापूर्ण बातों को महिमामंडन करने की कुछ पाखंण्डियों और जाहिल विचारधारा के समर्थकों द्वारा अभी भी भरपूर प्रयास किए जा रहे । इसका मतलब इन पाखंडियों और धार्मिक गुँडों की वजह से पिछली सदी में बहुत ही संघर्ष और अंग्रेजी हुक्मरानों के सहयोग से समाप्त की गई प्रथाएं जैसे सती प्रथा, बाल विवाह,मानव बलि,झाड़फूंक,भूतप्रेत, देवदासी प्रथा,स्तन टैक्स आदि सभी कुप्रथाओं को आज के वर्तमानसमय में पुनर्प्रतिष्ठित कर उनकी शुरूआत कर देना चाहिए !

-निर्मल कुमार शर्मा ,गाजियाबाद,संपर्क -9910629632,ईमेल -nirmalkumarsharma3@gmail.com

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