पुष्पा गुप्ता (महमूदाबाद)
_कृषि कानूनों (farm laws) की तारीफ करते-करते आखिरकार सरकार ने इन्हें वापस ले लिया। इन कानूनों के खिलाफ लगभग एक साल से आंदोलन चल रहा था। इन कानूनों को किसानों के लिए खतरनाक बताने वाले जाने माने कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा का कहना है कि किसानों ने अभी आधी लड़ाई जीती है। तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने का स्वागत है. लेकिन जब तक न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को किसानों का कानूनी अधिकार नहीं बनाया जाता, तब तक कृषि संकट का अंत नहीं होगा। उनका कहना है कि यह सरकार सिर्फ इलेक्शन की भाषा समझती है।_
जब सरकार को नजर आया कि इलेक्शन में उसे वोट की चोट लगेगी तो वो झुक गई। और यूपी के चुनाव में सरकार को इस चोट की गम्भीरता का एहसास भी हो रहा है। मतदाता के वोट की ताक़त आज साफ-साफ दिख रही है।
_इन कानूनों को वापस लेना देश के उन किसानों की जीत है जो अपनी खेती को चंद लोगों के हाथ में जाने से बचाना चाहते थे। हालांकि, जब तक किसानों की मेहनत का दाम नहीं मिलेगा तब तक वे संकट से उबर नहीं पाएंगे। इसलिए सरकार को जल्द से जल्द एमएसपी को किसानों की लीगल गारंटी बना देना चाहिए।_
पर अभी तक सरकार ने ऐसी कोई कमेटी का ही गठन नही किया है। अब देखना है, 10 मार्च के बाद सरकार क्या करती है।
● क्यों जरूरी है लीगल गारंटी :
कृषि अर्थशास्त्री डॉ देविंदर शर्मा कहते हैं कि अब भी कई राज्यों में सरकारी मंडियों में सरेआम केंद्र सरकार द्वारा तय की गई एमएसपी के आधे दाम पर खरीद हो रही है। मध्य प्रदेश, हरियाणा और यूपी में इसे देखा जा सकता है।
इनमें मक्का, बाजरा, धान और सोयाबीन जैसी फसलों का दाम नहीं मिल रहा है। हरियाणा में बाजरा 1100 से 1200 रुपये में बिका है, जिससे किसान खासे परेशान रहे हैं। बिहार और यूपी जैसे जिन राज्यों में मंडियों की कमी है उनमें किसान अपनी उपज औने-पौने दाम पर व्यापारियों को बेचने के लिए मजबूर हैं.
ऐसे में जब एमएसपी को किसानों का लीगल राइट घोषित किया जाएगा तो उन्हें केंद्र सरकार द्वारा तय किया गया दाम मिलेगा.
● सरकार द्वारा बताये जा रहे सुधार का हाल :
आज ई-नाम जिसे सरकार कृषि सुधार का एक कदम बता रही है, उसमें ज्यादातर फसलें एमएसपी से नीचे बिक रही हैं। इस पर कृषि के अर्थ विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे सुधारों का क्या फायदा, जिसमें किसानों को उनकी मेहनत का दाम न मिले।
सुधार ऐसे होने चाहिए ताकि उससे किसानों को अच्छा दाम मिले। यह तभी होगा जब उन्हें इसका कानूनी अधिकार दिया जाएगा। ऐसा हुआ तो निजी क्षेत्र को भी किसानों को सभी फसलों का अच्छा दाम देना होगा।
कृषि विशेषज्ञ बिनोद आनंद जो कानूनों के समर्थन में थे का कहना है कि हम चाहते थे कि, कोई भी किसान अपनी कृषि उपज कहीं भी ले जाकर बेचे, यह अवसर इन कानूनों से मिल रहा था। उन्होंने सरकार की इस पहल का स्वागत किया था।
लेकिन, कांट्रैक्ट फार्मिंग के प्रावधानों और मंडी के बाहर कृषि कारोबार करने वालों के लिए एमएसपी को बेंच मार्क नहीं बनाने बनाए जाने के वे इसके खिलाफ थे। उनका कहना है कि, हम इस बिल का शर्तों के साथ समर्थन कर रहे थे.
जिसमें हमारी मांग थी कि एमएसपी को किसानों का लीगल गारंटी बनाया जाए।
जिस तरह से पंजाब और हरियाणा में धान, गेहूं और अन्य फसलों की खरीद होती है उसी तरह से दूसरे राज्यों में भी खरीद हो।
(लेखिका शिक्षिका एवं चेतना विकास मिशन की प्रबंधिका हैं.)