हिसाम सिद्दीकी
लखनऊ! उत्तर प्रदेश असम्बली एलक्शन में पोलिंग के छः राउण्ड मुकम्मल हो चुके हैं। नौ जिलों की 54 सीटेंं ही बची हैं जिनकी पोलिंग सात मार्च को है। सियासी अंदाजे लगाने वाले तमाम लोगां का ख्याल है कि समाजवादी पार्टी और उसके गठजोड़ ने पहले दूसरे मरहले की पोलिंग में जो बढत बनाई थी वह छठे राउण्ड तक कायम रही और सातवें राउण्ड में भी उसके कायम रहने की उम्मीद है। क्योकि सातवें और आखिरी राउण्ड में जिन नौ जिलों की पोलिंग होनी है उनमें गाजीपुर, मऊ और आजमगढ के लिए कहा जाता है कि इन जिलों में बीजेपी की हालत इतनी खस्ता है कि शायद उसे एक भी सीट न मिले। वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी, होम मिनिस्टर अमित शाह और उत्तर प्रदेश के वजीर-ए-आला योगी आदित्यनाथ तीनों को उत्तर प्रदेश जैसी अहम रियासत की सियासी जंग में शिकस्त खुर्दा बताया जाने लगा है। पहले राउण्ड से ही मोदी, योगी और अमित शाह वगैरह ऐसा कोई मुद्दा अवाम के सामने पेश नहीं कर सके जो छठे राउण्ड तक कायम रह सकता। दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के चीफ अखिलेश यादव ने बीजेपी लीडरान के हवा-हवाई इल्जामात का मुंहतोड़ जवाब देते हुए रिजर्वेशन और संविधान के लिए खतरे, पेंशन बहाली, आउट सोर्सिंग खत्म करके खाली ओहदों पर भर्तियों को बहुत सलीके से पेश करते हुए ओबीसी तबकों को गोलबंद किया और लोगों को यह यकीन दिलाने की कोशिश की कि वह बीजेपी लीडरान की तरह झूट नहीं बोलते।
पहले से छठे राउण्ड तक के एलक्शन में वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने बार-बार मुद्दे तब्दील किए, शुरू में दंगे की बात करते रहे, राष्ट्रवाद भी दरम्यान में लाए, समाजवादी पार्टी के चुनाव निशान साइकिल को दहशतगर्दी से जोड़ने की कोशिश की, बस्ती की मीटिंग में पुलवामा और बालाकोट का जिक्र करते हुए यह भी कह दिया कि हम राष्ट्रवादी हैं, दुश्मनों को घर में घुसकर मरते हैं, कहा कि यह चुनाव परिवारवादियों और राष्ट्रवादियों के दरम्यान है। एक मीटिंग में पूरी तरह हिन्दू बनते हुए यह भी कहा कि माता अन्नापूर्णा समेत हमारे देवी-देवताओं की पन्द्रह मूर्तियां वापस लाकर हमने दोबारा ‘स्थापित’ किया है। यूक्रेन की जंग का मामला भी उठाया। इस बार कब्रस्तान और श्मशान तो नहीं बोल पाए लेकिन ‘हमारे त्यौहार’ कहकर खुद को सिर्फ हिन्दू साबित करने की कोशिश की, आखिर में यह तक कह दिया कि लोग उनकी मौत की ख्वाहिश (कामना) रखते हैं। अगर बनारस में उनका आखिरी वक्त आ जाए तो इससे ज्यादा अच्छी बात और क्या हो सकती है। इन्हीं तकरीरों के दौरान उन्होंने एक इंतेहाई घटिया बात यह कह दी कि एक बूढी औरत को उनके जरिए दिए जाने वाले गल्ले और नमक के लिए कहा कि हमने मोदी का नमक खाया है गद्दारी नहीं करेंगे, उन्हीं को वोट देंगे। उनके इस जुमले को बड़ी तादाद में लोगों ने बुरा माना और कहा कि नमक सरकार दे रही है। यह वर्ल्ड बैंक की स्कीम है, मोदी अपनी तनख्वाह से नहीं दे रहे हैं। नमक खाया जैसा जुमला इंतेहाई घटिया जुमला है। मतलब यह कि मोदी इस एलक्शन में शुरू से आखिर तक एक भी जुमला ऐसा नहीं बोल सके जो दो-तीन मीटिंगों तक चलता। गोबर से आमदनी करने का इंतजाम करूंगा, यह कहकर उन्होने और मजाक उड़वाया। अमित शाह, आदित्यनाथ और जे पी नड्डा जैसे लोग शुरू से आखिर तक हिन्दू मुसलमान पर ही लगे रहे जो अवाम में चल नहीं पाया।
छठे राउण्ड की पोलिंग तक यह बात तकरीबन तय हो चुकी हे कि मजहबी एतबार से अहम समझे जाने वाली अयोध्या, चित्रकूट, इलाहाबाद, मिर्जापुर और बनारस की कई सीटों पर भारतीय जनता पार्टी बहुत कमजोर नजर आई। अयोध्या और चित्रकूट में बीजेपी हारने की कगार पर दिखी। इलाहाबाद में पार्टी के दोनों मिनिस्टर सिद्धार्थनाथ सिंह और नंदगोपाल नंदी को हारा हुआ तो सिराथु में डिप्टी चीफ मिनिस्टर केशव मौर्य को बुरी तरह फंसा हुआ बताया जा रहा है। गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ की खुद की हालत यह है कि वह पूरी एलक्शन मुहिम छोड़कर तीन-चार दिन गोरखपुर में ही पडे़ रहे। बनारस की कई सीटें ऐसी बताई जाती हैं जहां बीजेपी हारती दिख रही है। उत्तर प्रदेश खुसूसन पूर्वी उत्तर प्रदेश के गैरयादव और कुछ हद तक यादवों समेत तमाम बैकवर्ड तबकों और गैर जाटव, दलितों को इकट्ठा करके बीजेपी ने 2014, 2017 और 2019 में जबरदस्त कामयाबी हासिल की थी। इसे पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग बताते हुए अमित शाह को चाणक्य तक करार दे दिया गया था। इस बार बैकवर्ड तबके, बड़ी हद तक बीजेपी से अलग हुए हैं दलितों में काफी बड़ी आबादी पासी समाज की है उसमें भी तकसीम साफ दिखी।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुफ्त गल्ले का असर काफी हद तक बीजेपी के हक में दिखा, लेकिन अखिलेश यादव ने यह कहकर इस असर को बड़ी हद तक कम कर दिया कि बीजेपी सरकार तो होली यानी मार्च तक ही मुफ्त गल्ला दे रही है। हमारी सरकार बनी तो हम पांच सालों तक मुफ्त गल्ला देंगे, विधवा पेंशन देंगे, बुढापे का भत्ता देंगे और बेरोजगारी भत्ता देंगे। उन्होने कहा कि बीजेपी की सरकार मुफ्त गल्ला देकर पिछड़ों और दलितों का रिजर्वेशन खत्म करने में लगी है। तमाम सरकारी इदारों को प्राइवेट हाथों में बेचा जा रहा है ताकि दलितों और पिछड़ों को नौकरियां न मिल सके। ओम प्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और राम सिंह सैनी वगैरह को अपने साथ लेकर अखिलेश यादव ने बैकवर्ड वोटरों पर काफी गहरा असर डाला है।
लेखक उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और उर्दू अखबार जदीद मरकज के संपादक हैं