जन्म तो उड़ीसा में हुआ था, लेकिन डॉ. राममनोहर लोहिया के पट्ट शिष्य होने के नाते उनका उत्तर प्रदेश भी खूब आना-जाना रहा। बात 1967 की है। उस समय तक संसद में कामकाज हिंदी या अंग्रेजी में हुआ करता था। सदस्यों को भी इन्हीं दो भाषाओं में बोलने की इजाजत थी, पर इस नेता ने संसद में पहली बार मातृभाषा का तर्क देकर उड़िया में बोला और तभी से संसद में हिंदी व अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं में भी बोलने की सुविधा मिल गई। बात हो रही है मशहूर समाजवादी नेता और लोकसभा के अध्यक्ष रहे स्व. रविराय की।
वह 1967 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री और उड़ीसा के उस समय के बड़े नेता विवुधेंद्र मिश्र को पराजित कर लोकसभा पहुंचे थे। डॉ. लोहिया ने रविराय की जीत को परिवर्तनकारी बताते हुए उनका देश के सभी राज्यों की राजधानी में अभिनंदन कार्यक्रम तय कर दिया। समाजवादी बौद्धिक सभा के अध्यक्ष दीपक मिश्र बताते हैं, ‘डॉ. लोहिया यहां न्यू हैदराबाद में अपने एक कार्यकर्ता के खाली पड़े मकान पर रुके थे।
सोशलिस्ट पार्टी के अन्य कई नेता, एक विधायक और कुछ कार्यकर्ता भी आए हुए थे। जनवरी का महीने था, कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। डॉ. लोहिया बोले, ‘क्या बताएं, यहां कोई है नहीं वरना इस मौसम में चाय ही पी जाती।’ कुछ देर बाद अंदर कमरे से एक सामान्य कद-काठी का व्यक्ति एक थाली में कुछ कपों में चाय लेकर आया। कुछ कप चिटके हुए थे, कुछ में पकड़ने वाला कुंडा ही टूटा हुआ था।
उसने सभी को चाय के कप हाथ में पकड़ाना शुरू किया। विधायक के साथ बैठे एक समर्थक ने चाय दे रहे व्यक्ति से कहा, ‘अरे! जरा ढंग के कप में चाय लाते। जानते नहीं ये विधायक हैं।’ डॉ. लोहिया ने विधायक और उनके समर्थक की तरफ घूरकर देखते हुए चाय पिलाने वाले की तरफ अंगुली उठाते हुए कहा, ‘इन्हें जानते हो यह कौन हैं?… ये रविराय हैं।’
यह सुनते ही विधायक व उनके समर्थक सहित चाय पी रहे अन्य लोगों के हाथ कांप गए।’ डॉ. लोहिया ने कहा, ‘कुछ बोलने से पहले व्यक्ति के बारे में जान भी लेना चाहिए।’
अमर उजाला से साभार