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पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस को आत्म विश्लेषण करने की जरुरत

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एस पी मित्तल,  अजमेर

10 मार्च को घोषित पांच राज्यों के चुनाव परिणामों में सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस पार्टी को हुआ है। कांग्रेस के हाथ से पंजाब भी निकल गया है और उत्तर प्रदेश में खाता खोलने के लिए भी कांग्रेस को संघर्ष पड़ कर रहा है। उत्तराखंड और गोवा में सरकार बनाने के कांग्रेस के मंसूबे भी धरे रह गए हैं। असल में राहुल गांधी ने पंजाब और प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में जो फार्मूला अपनाया वह पूरी तरह फेल हो गया। यह बात पंजाब की। कैप्टन अमरिंदर सिंह से साढ़े चार साल तक सरकार चलाने के बाद राहुल गांधी ने हास्य कलाकार नवजोत सिंह सिद्धू की सलाह पर कैप्टन को मुख्यमंत्री के पद से हटा दिया। सिद्धू को उम्मीद थी कि कैप्टन को हटाने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। लेकिन राहुल गांधी ने सिद्धू के बजाए चरणजीत सिंह चन्नी को न केवल सीएम बनाया बल्कि चुनाव में चन्नी को भी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया। पहले कैप्टन नाराज थे और अब सिद्धू भी नाराज हो गए। पंजाब कांग्रेस के अधिकांश नेता भी राहुल गांधी के इस फैसले से खुश नहीं दिखे। यही वजह रही कि चुनाव में कांग्रेस पार्टी टुकड़े टुकड़े में बंट गई। इसका पूरा फायदा आम आदमी पार्टी ने उठाया। परिणाम के रुझान में पंजाब में 117 सीटों में से केजरीवाल की पार्टी को 90 सीटों पर बढ़त है, जो कांग्रेस पार्टी पिछले चुनावों में 70 सीट जीतने में सफल रही, उसकी बढ़त मात्र 12 सीटों पर है। इससे कांग्रेस को अपनी स्थिति का अंदाजा लगा लेना चाहिए। भाजपा के पास तो पहले भी दो सीटे थी, इस बार भी दो-तीन सीटों पर ही बढ़त है। अकाली दल शिरोमणि का भी सूपड़ा साफ हो गया है। अकाली दल को जहां पहले 15 सीट मिली थी, वहां अब मात्र 6 सीटों पर बढ़त है। इसमें कोई दो राय नहीं कि आम पार्टी ने पंजाब में शानदार प्रदर्शन किया है। अब भगवत मान का मुख्यमंत्री बनना लगभग तय है। पंजाब में केजरीवाल पार्टी की सरकार बनने से अब आप कांग्रेस के बराबर हो गई है। केजरीवाल ने आम की स्थापना 10 वर्ष पहले की थी, जबकि कांग्रेस पार्टी सौ वर्ष पुरानी है। केजरीवाल कह सकते हैं कि उनकी पार्टी की सरकार देश के दो राज्यों में है। कांग्रेस का शासन भी अब सिर्फ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही रह गया है। पंजाब में राहुल गांधी के फार्मूले को फेल करने में राजस्थान कांग्रेस के नेता हरीश चौधरी की भी भूमिका रही है। राहुल ने कई मौकों पर चौधरी की सलाह को माना। चौधरी की गतिविधियों को लेकर पंजाब कांग्रेस के नेताओं ने कई बार राहुल गांधी से शिकायत की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। यही वजह रही कि पंजाब कांग्रेस के एक सांसद ने ठग ऑफ बाड़मेर का उल्लेख भी कर दिया। हालांकि अपने इस ट्वीट में सांसद ने हरीश चौधरी के नाम का उल्लेख नहीं किया, लेकिन सब जानते हैं कि हरीश चौधरी बाड़मेर से ही कांग्रेस के विधायक हैं। सीएम के पद पर रहते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी हरीश चौधरी को लेकर प्रतिकूल टिप्पणियां की थी। लेकिन राहुल गांधी ने चौधरी की सलाह को ही प्राथमिकता दी। जिस प्रकार पंजाब में राहुल गांधी का फार्मूला फेल हो गया, उसी प्रकार उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी का फार्मूला भी पूरी तरह फेल रहा। लड़की हूं लड़  सकती हंू का नारा तो दिया गया, लेकिन जब राजस्थान में लड़कियों पर ज्यादतियां हुई तो प्रियंका गांधी खामोश रही। असल में यूपी में कांग्रेस का अब कोई जनाधार ही नहीं रहा है। यही वजह है कि 403 सीटों में से 2-3 तीनों के लिए कांग्रेस को संघर्ष करना पड़ रहा है। चुनाव के दौरान ही जितिन प्रसाद जैसे ब्राह्मण नेता कांग्रेस का साथ छोड़ गए। जिस प्रकार पंजाब में राहुल गांधी ने मन माने निर्णय लिए उसी प्रकार उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी ने  एकतरफा निर्णय लिए। प्रियंका गांधी के आसपास जो माहौल था, उसमें कांग्रेस के आम कार्यकर्ता का मिलना मुश्किल था। वैसे भी वोटो का जो ध्रुवीकरण हुआ उसमें मुस्लिम समुदाय के वोट भी कांग्रेस को नहीं मिले। आमतौर पर देखा गया है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोसने का काम ही करते रहे। राहुल गांधी को तो देश में हमेशा भय और तनाव का माहौल नजर आया। हर समस्या के लिए राहुल गांधी संघ और भाजपा को जिम्मेदार ठहराते रहे। राहुल हर मौके पर संघ को साम्प्रदायिक विचारधारा का बताते रहे। पांच राज्यों के चुनाव परिणाम बताते हैं कि अब सिर्फ संघ और भाजपा को कोसने से काम नहीं चलेगा। यदि कांग्रेस को देश की राजनीति में अपना वजूद कायम रखना है तो उसे देश के लोगों का मिजाज भी समझना होगा। कांग्रेस को अब आत्मविश्लेषण करने की जरूरत है। 

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