‘हेमा, रेखा, जया और सुषमा…’ या फिर ‘वॉशिंग पाउडर निरमा, वॉशिंग पाउडर निरमा…’ ये जिंगल्स तो आपने सुनी ही होंगी। टीवी पर इसके विज्ञापन भी देखे होंगे। डिटर्जेंट का जिक्र होते ही बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों की तस्वीर आंखों के आगे घूम जाती है। भले ही निरमा आज फैक्ट्री में बनता है लेकिन इसकी शुरुआत एक घर के पिछवाड़े से हुई थी। निरमा केवल एक प्रॉडक्ट नहीं है, बल्कि मिसाल है एक पिता के अपनी बेटी के लिए प्यार की और उस पिता का नाम है करसनभाई पटेल
करसनभाई पटेल का जन्म 1945 में गुजरात के मेहसाणा के एक किसान परिवार में हुआ। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा मेहसाणा के ही एक स्थानीय स्कूल से पूरी की और केमिस्ट्री में बीएससी किया। इसके बाद करसनभाई करना तो बिजनेस चाहते थे लेकिन परिवार की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह खुद का कोई काम शुरू कर सकें। इसलिए वह पढ़ाई पूरी करने के बाद न्यू कॉटन मिल्स, अहमदाबाद में लैब टेक्नीशियन बन गए। कुछ समय बाद उन्हें गुजरात सरकार के खनन और भूविज्ञान विभाग में सरकारी नौकरी मिल गई।
फिर हुआ एक हादसा
सरकारी नौकरी करते-करते करसनभाई की जिंदगी कट रही थी। फिर एक हादसे ने उनकी जिंदगी बदल दी। स्कूल में पढ़ने वाली उनकी लाडली बेटी की एक हादसे में मौत हो गई। वह चाहते थे कि उनकी बेटी पढ़ लिख कर कुछ ऐसा करे कि पूरा देश उसे जाने। लेकिन उसकी मौत ने करसनभाई को अंदर तक तोड़ दिया। फिर एक सुबह, करसनभाई की जिंदगी की एक नई सुबह बनकर आई। करसनभाई की बेटी का नाम निरूपमा था लेकिन प्यार से सब उसे निरमा कहते थे। इसी नाम से करसनभाई ने वॉशिंग पाउडर बनाने का फैसला किया। उनका मकसद अपनी इस कोशिश से अपनी बेटी के नाम को हमेशा जिंदा रखना था।
1969 में की शुरुआत
1969 में उन्होंने इसकी शुरुआत की। वह अहमदाबाद में अपने घर के पीछे सोडा ऐश के साथ कुछ अन्य सामग्रियां मिलाकर वॉशिंग पाउडर बनाने की कोशिश करने लगे। एक दिन उनकी कोशिश कामयाब हुई और पीले रंग का डिटर्जेंट बनकर तैयार हो गया। यह फॉस्फेट फ्री सिंथेटिक डिटर्जेंट पाउडर था। उस वक्त भारत में आम लोगों के पास वॉशिंग पाउडर को लेकर ज्यादा विकल्प नहीं थे। उस दौर में पूरे देश में हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड (अब हिंदुस्तान यूनिलीवर) के ब्रांड, ‘सर्फ’ का डिटर्जेंट बाजार में एकाधिकार था। दाम ज्यादा होने के कारण यह मध्यवर्गीय और निम्न मध्यवर्गीय परिवार की पहुंच से दूर था। ऐसे में लोग साबुन का इस्तेमाल करते थे, जिससे हाथ खराब होने का डर रहता था।
करसनभाई ने इस कमी को मौके की तरह भुनाया। काम से लौटकर वह घर-घर जाकर अपना डिटर्जेंट निरमा बेचने लगे। वह अपनी साइकिल पर रखकर इसे घर-घर बेचा करते थे। इतना ही नहीं यह गारंटी भी देते थे कि अगर डिटर्जेंट पाउडर सही नहीं निकला तो पैसे वापस कर देंगे।
यूं बनाई अपनी जगह
निरमा उन दिनों सबसे सस्ता डिटर्जेंट था। सर्फ की कीमत जहां 10-15 रुपये प्रति किलो थी, वहीं कर्सन भाई केवल 3 रुपये प्रति किलो पर निरमा ऑफर करते थे। इसका नतीजा यह हुआ कि निरमा, मध्यवर्गीय और निम्न मध्यवर्गीय परिवारों में अपनी जगह बनाने में कामयाब होने लगा। करसनभाई पटेल का कार्यालय उनके घर से 15 किमी दूर था। कार्यालय जाते हुए वह साइकिल पर एक दिन में डिटर्जेंट के 15-20 पैकेट बेच लेते थे। अच्छी क्वालिटी और कम दाम ने इसे जल्द ही पॉपुलर कर दिया।
3 साल बाद छोड़ी नौकरी
करसनभाई पटेल ने जब देखा कि उनका प्रॉडक्ट लोगों के बीच अपनी जगह बना रहा है तो उन्होंने अपना पूरा वक्त अपने बिजनेस को देने का सोचा। निरमा की शुरुआत के 3 साल बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी। करसनभाई ने अहमदाबाद सबअर्ब में एक छोटी वर्कशॉप में दुुकान भी खोली थी। शुरुआत के 10 सालों के अंदर ही निरमा भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाला डिटर्जेंट बन गया।
बिक्री बढ़ाने को अपनाई एक अलग तरह की स्ट्रैटेजी
निरमा को पूरे देश में पहुंचाने के लिए करसनभाई ने विज्ञापनों और जिंगल्स की भी मदद ली। निरमा ब्रांड को देश भर में प्रसिद्धि दिलाने में ‘सबकी पसंद निरमा’ जैसे टेलीविजन विज्ञापन का बहुत बड़ा हाथ रहा। निरमा की बिक्री बढ़ाने के लिए करसनभाई ने एक अलग तरह की स्ट्रैटेजी का भी सहारा लिया। जब निरमा की मांग बढ़ी तो करसनभाई ने बाजार से प्रॉडक्ट के 90% स्टॉक वापस ले लिए लेकिन टीवी पर विज्ञापन जारी रहे। एक महीने तक ग्राहक केवल निरमा को टीवी विज्ञापन में ही देख पाए। जब वह बाजार में इसे खरीदने जाते तो उन्हें कहीं भी ये न मिलता।
बंपर मांग को देखते हुए खुदरा विक्रेताओं ने आपूर्ति के लिए करसनभाई से अनुरोध किया, तब जा कर एक महीने बाद निरमा फिर से मार्केट में दिखने लगा। इस स्ट्रैटेजी का असर यह हुआ कि बाजार में आते ही निरमा ने बड़े अंतर से डिटर्जेंट के अन्य ब्रांड्स को पीछे छोड़ दिया। उस साल निरमा भारत में सबसे अधिक बिकने वाला वाशिंग पाउडर था।
1995 में शुरू किया निरमा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी
पटेल, 1980 के दशक की शुरुआत में पूरे देश का ध्यान खींचने और बाजार में बड़े नामों से आगे निकलने में सफल रहे थे। 1985 तक निरमा वॉशिंग पाउडर देश के कई हिस्सों में सबसे ज्यादा पॉपुलर, हाउसहोल्ड डिटर्जेंट्स में शामिल हो चुका था। कंपनी 1994 में शेयर बाजार में लिस्ट हुई। 1999 तक Nirma एक बड़ा कंज्यूमर ब्रांड था। 1995 में करसनभाई ने अहमदाबाद में निरमा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की स्थापना की। इसके बाद 2003 में उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट और निरमा यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी की स्थापना भी की।
2007 में निरमा ने अमेरिका की रॉ मैटेरियल कंपनी Searles Valley Minerals Inc को खरीदा, जिससे निरमा दुनिया के टॉप 7 सोडा ऐश मैन्युफैक्चरर्स में शामिल हो गई। पटेल और उनके परिवार ने साल 2011 में निरमा को डीलिस्ट कर एक प्राइवेट कंपनी में बदलने का फैसला किया। ग्रुप ओनर्स ने भारी डिस्काउंट पर निरमा के शेयर बायबैक किए। 2014 में ग्रुप ने निंबोल में एक प्लांट के जरिए सीमेंट की मैन्युफैक्चरिंग शुरू की। 2016 में ग्रुप ने लफार्ज इंडिया के सीमेंट एसेट्स को 1.4 अरब डॉलर में खरीद लिया। फरवरी 2020 में इसे इमामी सीमेंट को 5500 करोड़ रुपये में खरीद लिया।
आज क्या क्या बनाता है ग्रुप
निरमा ग्रुप का हेडक्वार्टर अहमदाबाद में है। ग्रुप कंज्यूमर और इंडस्ट्रियल दोनों तरह के प्रॉडक्ट बनाता है। कंज्यूमर प्रॉडक्ट्स में निरमा बाथ सोप, नीमा सोप, निरमा डिटर्जेंट व बार प्रॉडक्ट, शुद्ध नमक, निरमा क्लीन डिशवॉश बार, निरमा बर्तन बार शामिल हैं। इसके अलावा यह ग्रुप सीमेंट, कॉस्मेटिक्स, नमक, सोडा ऐश, LAB और injectables बनाता है। निरमा ग्रुप इस वक्त पूरी दुनिया में सोडा ऐश का सबसे ज्यादा मात्रा में उत्पादन करता है। इसके शैंपू और टूथपेस्ट सफल नहीं रहे। पड़ोसी मुल्कों में भी निरमा के उत्पाद बिकते हैं।
पद्मश्री से सम्मानित हैं करसनभाई
पटेल को कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों के साथ सम्मानित किया जा चुका है। 1990 में उन्हें फेडरेशन ऑफ एसोसिएशन ऑफ स्मॉल स्केल इंडस्ट्री ऑफ इंडिया ने उद्योग रत्न अवॉर्ड से नवाजा था। उन्हें साल 2010 में पद्मश्री से नवाजा गया। 2017 में फोर्ब्स ने करसनभाई को भारत के सबसे अमीर लोगों की सूची में 38वें नंबर पर रखा था। वहीं 2019 में भारत के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में उन्हें 30वां स्थान मिला था। फोर्ब्स के मुताबिक, इस वक्त करसनभाई पटेल की दौलत 2.9 अरब डॉलर है और वह भारत के अमीर लोगों की 2021 की लिस्ट में 46 वें नंबर पर थे। गौतम अडानी और जाइडस ग्रुप के प्रमोटर पंकज पटेल के बाद करसनभाई अहमदाबाद के तीसरे इंडस्ट्रियलिस्ट हैं, जिन्होंने चॉपर खरीदा।