डॉ सुनीलम
संयुक्त किसान मोर्चा की 6 घंटे चली बैठक में सरकार का वह प्रस्ताव रद्द कर दिया गया जिसमें 3 कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक के लिए स्थगित करने का प्रस्ताव किया गया था। मीडिया में यह बताया जा रहा है कि यह फैसला गरम दल के दबाव में उन लोगों के द्वारा लिया गया जो प्रस्ताव को मंजूर करना चाहते थे।यह तथ्यात्मक तौर पर गलत है। मैं जब सिंघु बॉर्डर पर दिल्ली में था तब आंदोलन के शुरुआती दौर में भी इस तरह का प्रस्ताव तब आया था जिसे ध्वनि मत से नामंजूर कर दिया गया था। इसलिए आज लिया गया फैसला 500 किसान संगठनों के नेतृत्व में चल रहे करोड़ों किसानों की भावनाओं के अनुरूप ही था। किसानों के बीच अब यह भावना पूरे देश में पनप रही है कि वे जीत की कगार पर है। सरकार के साथ अब तक हुई 10 दौर की बातचीत को देखा जाए तो यह स्पष्ट है कि सरकार लगातार पीछे हट रही है। किसान आगे बढ़ रहे हैं। सरकार का जनाधार सिकुड़ रहा है दूसरी तरफ किसान आंदोलन का आधार लगातार बढ़ रहा है। गत 57 दिनों में 147 किसानों की शहादत ने पूरे देश के किसानों को भावनात्मक तौर पर किसान आंदोलन से जोड़ दिया है।पहले केंद्र सरकार ने पंजाब के किसानों को हरियाणा सरकार के माध्यम से पुलिस के द्वारा रोकने की कोशिश की ,बाद में आतंकवादी, खालिस्तानी, पाकिस्तानी एजेंट कहा गया। केंद्र सरकार ने किसानों को दिल्ली का एक मैदान देकर उसमें कैद करने की योजना बनाई थी जिसे किसानों ने असफल कर दिया। केन्द्र सरकार ने पहले तो हर वार्ता में किसानों को यह समझाने की कोशिश की कि 3 कानून उनके हित में लाए गए हैं लेकिन किसानों ने जब अपने तेवर तीखे किए तो मंत्रियों और अधिकारियों को अपना प्रचार करने वाला कैसेट बंद करना पड़ा। तीनों कानूनों पर वार्ताओं के दौरान विस्तृत बातचीत भी हुई। सरकार को जब लगा कि एमएसपी का मुद्दा आगे बढ़ रहा है तब सरकार ने वित्तीय बोझ न उठा सकने की स्थिति बताकर एमएसपी पर वार्ता बंद कर दी। सरकार ने कमेटी बनाने का प्रस्ताव रखा जिसे किसानों ने नामंजूर कर दिया।केंद्र सरकार की यह भी कोशिश रही कि किसानों के बीच दरार पैदा की जाए। सरकार ने यह भी बताने की कोशिश की कि बहुत सारे किसान संगठन सरकार से बातचीत कर रहे हैं लेकिन जल्दी ही यह दावा खोखला और झूठा साबित हो गया। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कानून व्यवस्था का मुद्दा उठाकर याचिका लगवाई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने शांतिपूर्ण आंदोलन को मूलभूत अधिकार बतला दिया। फिर सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से सरकार ने कानूनों को स्थगित करने का निर्देश भी दिलवाया और कमेटी भी बनवाई लेकिन जब उससे भी बात नहीं बनी तब सरकार ने कानूनों को स्थगित करने का प्रस्ताव किसानों के सामने रख दिया। आज उसी प्रस्ताव को किसानों ने अस्वीकार कर दिया है। सरकार ने जो कमेटी बनाई उसके 1 सदस्य कमेटी से हट गए हैं । अब कमेटी फिर से बनाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा विचार किया जाना है। आज सर्वोच्च न्यायलय द्वारा नियुक्त कमेटी की ओर से मेरे पास भी फोन आया। कमेटी को सहयोग कर रहे अधिकारी प्रसूती जी ने मुझसे बात शुरू की। अचानक फोन कमेटी के सदस्य अनिल जी को दे दिया। उन्होंने मुझसे तीनों कानूनों के बारे में राय पूछी।मैंने तीनों कानूनों को रद्द करने की बात कही। फिर अशोक गुलाटी जी ने मुझसे कानूनों की खामियों को लेकर और मेरे सुझाव संबंधित प्रश्न किए। दोनों सदस्यों से कुल 17 मिनट बातचीत की । आज के अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि कमेटी के पास कोई जाने को तैयार नहीं इसलिए कमेटी चुन चुन कर किसान संगठनों से बातचीत कर रही है। सवाल यह उठता है कि सरकार ने डेढ़ साल का समय ही क्यों प्रस्तावित किया ? जबाब सर्वविदित है कि डेढ़ साल में तमाम राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। केंद्र सरकार और भाजपा को समझ आ गया है कि यदि किसानों के आंदोलन का कोई हल नहीं निकला तो विधानसभा चुनाव जीतना लगभग असंभव हो जाएगा। बिहार चुनाव ने बतला दिया है कि विपक्ष 19-20 की टक्कर देने की स्थिति में है तथा हर राज्य में बिहार की तरह का मैनेजमेंट करना संभव नहीं होगा। इस बीच किसानों में ट्रैक्टर रैली को लेकर जबरदस्त उत्सव है। एक लाख से ज्यादा ट्रैक्टरों की दिल्ली में पहुंचने की तैयारी हो चुकी है। देश के अलग-अलग राज्यों के 200 से अधिक जिलों में पक्के मोर्चे चल रहे हैं। वहां भी 1000 ट्रैक्टरों की रैली जिला स्तर पर निकलने की स्थिति बन रही है। किसान आंदोलन के समर्थन में कांग्रेस , समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल , वामपंथी पार्टियों और कई क्षेत्रीय पार्टियों द्वारा ट्रेक्टर रैली निकालने की हर स्तर पर तैयारी की जा रही है। ऐसी स्थिति में सरकार को कानूनों को स्थगित करने की जगह कानून को रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा । केंद्र सरकार ने पहले गोदी मीडिया के माध्यम से आंदोलन को पंजाब तक सीमित आंदोलन बताने का षड्यंत्र किया था । जिसे 250 किसान संगठनों के मंच अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने देश भर में निरंतर कार्यक्रम करके विफल कर दिया । वर्तमान किसान आंदोलन की खासियत यह है कि इसका कोई एक नेता नहीं है। 32 पंजाब के किसान संगठन तथा 250 किसान संगठनों के अखिल भारतीय किसान संघर्ष समिति एकजुट होकर रोज बैठक कर फैसला करते हैं जिस पर संयुक्त किसान मोर्चा की खुली बैठक में चर्चा कर लगभग रोजाना निर्णय लिया जाता है। आमतौर पर जो निर्णय पंजाब के किसान संगठन तथा अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति करती है वही निर्णय संयुक्त किसान मोर्चा का होता है। सामूहिक नेतृत्व की ताकत इसी तथ्य से समझी जा सकती है कि गुरनाम सिंह चढ़ुनी और शिवकुमार कक्काजी जी ने व्यक्तिगत स्तर पर जो प्रयास किए ,उसके लिए उन्हें खुली बैठक में माफी मांगने को मजबूर होना पड़ा। आज का फैसला लेने के अलावा किसान संगठनों के पास कोई विकल्प नहीं था। सभी 500 संगठनों के नेताओं को यह मालूम है कि जो कोई एकजुटता तोड़ने की कोशिश करेगा वह किसानों के बीच ‘वेलन’ बन जाएगा और किसानों के बीच उसकी साख पूरी तरह समाप्त हो जाएगी । यही कारण है कि केंद्र सरकार की कोई भी तिकड़मबाजी अब तक सफल नहीं हो सकी है। किसान आंदोलन ने देश के श्रमिक आंदोलन के साथ संयुक्त कार्यक्रम बनाने 9 अगस्त 2020 से शुरू कर दिए थे। कल केंद्रीय श्रमिक संगठनों के 10 प्रमुख नेताओं की अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की वर्किंग कमेटी के साथ बैठक होने वाली है जिसमें भावी संयुक्त आंदोलन की रणनीति तय होगी ।18 जनवरी का महिला किसान दिवस जिस तरीके से देश भर में मनाया गया उससे यह साफ हो गया कि किसान आंदोलन महिलाओं की भागीदारी को सर्वोच्च प्राथमिकता देना चाहता है। आंदोलन में महिलाओं के साथ साथ बुद्धिजीवियों, रंगकर्मियों,सांस्कृतिक कर्मियों की भागीदारी लगातार बढ़ती जा रही है जिससे पता चलता है कि किसान आंदोलन की समाज के सभी तबकों में ग्राह्यता और आकर्षण लगातार बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि केंद्र सरकार को अपने राजनीतिक भविष्य को बचाने के लिए तीनों कानून रद्द करने और एमएसपी के संबंध में निर्णय करने को मजबूर होना पड़ेगा। कल की बैठक केंद्र सरकार को इस आशय की घोषणा करने का अवसर देती है। डॉ सुनीलम अध्यक्ष, किसान संघर्ष समितिसंयोजक मंडल सदस्य : जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वयवर्किंग ग्रुप सदस्य : अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति 9425109770, 8447715810