उमेशप्रसाद सिंह, पटना
आज के बुंदेलखंड के इलाका में असुर कुल नायक महर्षि कश्यप – दिति पुत्र हिरण्यकशिपु नामक महान शासक था। जिसका मुकाबला करने की ताकत ना सुरों में था ; ना असुरों में था। उसकी शादी कयाधु से हुई थी — जिससे प्रह्लाद नामक पुत्र का जन्म हुआ था।विशाल साम्राज्य और जनबल- धनबल आने पर अहंकार का आना स्वाभाविक है।हिरण्यकशिपु का भाई हिरण्याक्ष भी उसके साथ हर अत्याचार में शामिल था। दिक- दिगन्त में इन सबसे मुकाबला करने वाला कोई नहीं था।जनता त्राह – त्राह कर रही थी।
उसका पुत्र प्रह्लाद यह सब देख रहे थे; जनता के ऊपर अत्याचार को वे पसंद नहीं कर रहे थे। उन्होंने जनता के अधिकारों को लेकर जन ऑदोलन का समर्थन करना शुरू किया। जब पिता ने देखा कि उसका पुत्र ही उसके विरोध का नेतृत्व कर रहा है तो उसको सबक सिखाने का निर्णय लिया।
शासक जब मदांध हो जाता है – वह किसी को नहीं पहचानता है।ना कोई वरिष्ठ ,ना कोई गुरू ,ना मित्र,ना पुत्र ना पत्नि?
भक्त प्रह्लाद ने बिल्कुल अहिंसक ढंग से प्रतिरोध शुरू किया। उन्हें साॅप के घर में बंद किया, पहाड़ से गिराया ,समुद्र में डुबाया ; परन्तु प्रह्लाद जी का बाल- बाॅका नहीं हुआ।
हिरण्यकशिपु की एक बहन थी ; होलिका? आज के ही दिन होलिका आग में प्रह्लाद जी को लेकर बैठने का निर्णय ले ली ; उन्हें कोई आशीर्वाद था । लेकिन उस आशीर्वाद में यह भी जुड़ा था का यदि वे दुरूपयोग करेंगी तो वह काम में नहीं आयेगा।ऐसा ही हुआ ; वह आग में प्रह्लाद जी को लेकर बैठ गयीं ; विशाल जनसमुदाय उस स्थल को घेरकर खड़ा था । शासन की ओर से उस जगह पर आग लगा दी गयी । होलिका ही जल गयी ; भक्त प्रह्लाद बच गये।आम जन हर जाति गोत्र के स्त्री-पुरुष तुमुल ध्वनि करते भक्त प्रह्लाद के पक्ष में खड़े हो गये।
किंवदन्ती है कि जनसहयोग रूपी ईश्वर जो सब जगह थी — नरसिंह रूप में प्रकट होकर हिरण्यकशिपु की हत्या कर दी।
भारतीय इतिहास में भक्त प्रह्लाद प्रथम पुरूष हैं जो अहिंसक ढ़ंग से सता का प्रतिरोध अपने वंश – गोत्र की सता ,अपने पूज्य पिता की सता का प्रतिरोध कर भारत के वंशवादी सता को चेतवानी दी थी और हर जुल्म करने वाले मठ- मंदिर ,ऋषिकुल कश्यप की भी सता का विरोध करने का आह्वान जनता को दिया।