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डमरू किसी का भी, कहीं भी, कभी भी बज सकता है

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सत्य वीर सिंह

आर्थिक संकट गहराने वाला है. एल आई सी जैसा  बिकाऊ सरकारी इदारा भी नहीं बिक रहा. उसे बेचकर आने वाले 70,000 करोड़ रुपये अब नहीं आएँगे. मार्केट कि टें बोलती जा रही है, इसलिए वो माल अब सेल काउंटर से हटाया जाने वाला है. सरकारी माल बेचकर कुल 1,75,000 करोड़ रुपये आने वाले थे, असलियत में अभी तक कुल 12,174 करोड़ ही आए हैं, आगे उम्मीद नहीं के बराबर है. क्रूड के दाम 120 डॉलर प्रति बैरल हो चुके, युद्ध लम्बा खिंचा तो और बढ़ेंगे. लोगों के शारीर में अब चर्बी बची ही नहीं. डीज़ल-पेट्रोल के दाम 25 रु प्रति लीटर नहीं बढाए जा सकते क्योंकि मध्य वर्ग का छोटा सा हिस्सा जो आज कुछ भी खरीदी करने की स्थिति में है, उसका भी डेंकरा निकल जाएगा. 
आर्थिक संकट हमेशा राजनीतिक संकट को जन्म देता है और राजनीतिक घटनाक्रम तेज़ कर देता है. युद्धों के अन्तिम परिणाम हमेशा अप्रत्याशित रहे हैं. दुनियाभर में यही हालात हैं. तथाकथित संपन्न, ‘सॉलिड’ अर्थ व्यवस्था वाले जर्मनी में एअरपोर्ट पर समान ढोने वाली ट्रोली भी मुफ़्त नहीं मिलती. ज़ंजीर से बंधी होती हैं, यूरो में भुगतान करने पर ही चैन खुलती है. 
*सत्य वीर सिंह*

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