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मृत्यु और पुनर्जन्म : प्रमाण की बात

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डॉ. विकास मानव

निदेशक : चेतना विकास मिशन

     _मृत्यु सबके सामने है. इसके लिए प्रमाण की जरूरत नहीं. पुनर्जन्म प्रमाण के प्रकरण में प्रमाण तीन प्रकार के होते हैं : प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम।_
   न्यायालयों में बच्चों के संवाद संबंधी साक्ष्य को सत्य माना जाता है। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं अबोध शिशुओं के प्रत्यक्ष/स्वानुभूत प्रमाण। 
 कई ऐसे बालक उत्पन्न होते हैं जिन्हें पूर्वजन्म की स्मृति होती है। प्रायः ये 3-10 वर्ष की आयु के पाये जाते हैं। तत्पश्चात् अधिकतर की यह स्मृति क्षीण हो जाती है।

इस विषय पर भारत में तथा पाश्चात्य देशों में बीसियों पुस्तकें लिखी गई हैं जिनमें सैकड़ों ऐसे बच्चों के दृष्टान्त वर्णित किये गये हैं जिन्हें पूर्वजन्म की स्मृति थी और उनके कथनों को अन्वेषण के बाद सत्य पाया गया।
हमने खुद भी पैरासाइकोलॉजी पर काफ़ी रिसर्च किये हैं. जिनको हमसे ही ठोस साक्ष्य चाहिए होगा, वे व्हाट्सप्प 9997741245 पर संपर्क कर सकतें है.

विज्ञान की बात :
सुविज्ञात परामनोवैज्ञानिक डा. इयन स्टीवेन्सन का मत :
“पूर्वजन्म की स्मृति के प्रत्यक्ष उदाहरणों का गहन अन्वेषण सम्भवतः सिद्ध करेगा कि पुनर्जन्म ही इन अनुभवों का अति सम्भाव्य स्पष्टीकरण है।”
अबोध शिशुओं के प्रत्यक्ष/ स्वानुभूत प्रमाणों की महत्ता को रेखांकित करते हुए, अमेरिकन परामनोवैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान के प्रकाशन विभाग के अध्यक्ष, सी.जे.ड्युकास, डा.इयन स्टीवेन्सन की पुस्तक ‘ ट्वैन्टी केसिस सुजैस्टिव ऑफ़ री- इनकारनेशन ‘ के ‘ फोरवर्ड ‘ में व्यावहारिक, सामान्यजन गम्य तर्क प्रस्तुत करते हैं :
“अगर कोई पूछे कि पुनर्जन्म का वास्तविक प्रमाण क्या हो सकता है, तो इसका एकमात्र उत्तर यही दिखाई देता है जो इस प्रश्न का है कि हमारे में से कोई अब कैसे जानता है कि वह कुछ दिन, मास, वर्ष पहले जीवित रहा है ? इसका उत्तर यही है कि वह स्मरण करता है कि वह पहले अमुक स्थान एवं परिस्थितियों में रह चुका है, विशेष प्रकार की चीज़े उसने की है और विशेष प्रकार के अनुभव अनुभूत किए हैं। “
वे इस उत्तर पर स्वयं प्रश्न उठाते है :
” क्या कोई ऐसा है जो इस प्रकार स्मरण कर सके कि वह इस पृथ्वी पर इस जन्म से पहले रह चुका है ?”
इसके उत्तर में वे लिखते हैं :
” चाहे इस प्रकार के दावों की सूचनाएं बहुत कम हैं परन्तु कुछ तो हैं । इस प्रकार का दावा करने वाला अधिकतर सदा ही एक बच्चा होता है जिसके मन से यह स्मृतियां कुछ साल के बाद
धुंधली हो जाती हैं। जब वह पूर्वजन्म की विस्तृत तथ्यों की स्मृतियों को व्यक्त करने में समर्थ होता है, वह बल पूर्वक कहता है कि यह सब कुछ उसेे याद है, जिन्हें छानबीन से सत्य पाया जाता है; जिन के विषय में उसको सामान्य जीवन में इन्हें जानने का अवसर प्राप्त नहीं मिला। …. “

पुनर्जन्म सिद्धान्त की परिणिति पर प्रकाश डालते पूर्वजन्म की स्मृतियों सम्बन्धी अन्वेषणों के कुछ तथ्य :
इन अन्वेषणों से प्रायः यह भी पाया गया कि बाल्यकाल के अतिरिक्त, ये स्मृतियाँ ऐसे व्यक्तियों में उभरती हैं जिनकी मृत्यु पूर्वजन्म में दुर्घटना में या दुःखदायी दशा में हुई हो।
ये अन्वेषण महाभारत (शासन पर्व 145 अध्याय दाक्षणत्य पाठ) के निम्न उद्धृत श्लोकों के विवरण से पूर्णतः मेल खाते हैं :
“ये मृताः सहसा मर्त्याः जायन्ते सहसा पुनः।
तेषां पौराणिको भावः किञ्चित् कालं हि तिष्ठति।।
तस्मात् जातिस्मराः लोके जायन्ते बोधसंयुक्ता।
तेषां विवर्थतां संज्ञा स्वप्नवत् सा प्रणश्यति।।”
अर्थात् जिनकी अचानक मृत्यु हो जाती है और वे शीघ्र ही दूसरा जन्म ले लेते हैं, उनको पूर्वजन्म के भाव (अनुभव, घटनाएँ) कुछ समय तक याद रहते हैं। इसलिये संसार में ‘जाति-स्मर’ अर्थात् जिन्हें पूर्वजाति या पूर्वजन्म का स्मरण है, उत्पन्न होते हैं । बड़े होने पर उनकी यह स्मृति स्वप्न की तरह नष्ट हो जाती है।
डा. स्टीवेन्सन आदि पाश्चात्य विद्वानों के पूर्वजन्म सम्बन्धी घटनाओं के अन्वेषणों में यही पाया गया कि या तो उनकी हत्या की गई थी या पानी में डूब कर या किसी अन्य दुःखद अवस्था में हुई।

पूर्वजन्म की स्मृति की घटनाएँ केवल भारत में ही नहीं, विश्व के अन्य देशों के बच्चों भी पाई गई हैं और छानबीन के बाद उन्हें सत्य पाया गया। इस से सिद्ध होता है कि पुनर्जन्म व्यवस्था सार्वभौमिक तथा सार्वजनीन है।
स्टीवेन्सन की उपरोक्त पुस्तक में 7 घटनाएँ भारत की हैं, 3 श्रीलंका की, 2 ब्राज़ील की, 7 अलास्का ( अमेरिका ) की, 1 लेबनान की।

पुनर्जन्म की स्मृति की घटनाएँ सार्वभौमिक तथा सार्वजनीन के अतिरिक्त सर्वकालीन भी हैं। ऐसी घटनाएँ पहले भी घट चुकी हैं, अब भी घट रही हैं, भविष्य में भी घटती रहेंगी। महाभारत में ‘ जातिस्मर ‘ का उल्लेख इसका शास्त्रीय प्रमाण है।
डा. स्टीवेन्सन अपनी उपरोक्त पुस्तक (पृष्ठ 15) में भारतीय घटनाओं की भूमिका में लिखते हैं :
” भारत में ऐसी घटना की पहली छानबीन, जो मेरे संज्ञान में आई, वह 18वीं शताब्दी में हुई। शहंशाह औरंगजेब ने पूर्वजन्म स्मृति के बारे में सुना, चाहे वह मुसलमान था, इस में रुचि दिखाई; उसने गवाहों ( साक्षियों ) को अपने सामने बुलाया और प्रश्नोत्तर हुए। उस वृत्तचित्र (Case) में जन्म चिन्ह (Birthmarks) भी थे जो आजकल की घटनाओं में मैं ने पाए हैं। … यह रोचक घटना भारत की सब से पहली घटना नहीं है जो मेरे संज्ञान में आई । तुलसीदास, हिन्दी रामायण के कवि, अपने महाकाव्य में पूर्वजन्म की घटनाओं की स्मृति का दावा करते हैं जिनका अन्वेषण नहीं किया गया।”

पूर्वजन्म की स्मृति की घटनाओं का धर्म ( Religion ) विशेष से कोई सम्बन्ध नहीं। ईसाई तथा इस्लाम धर्म पुनर्जन्म में विश्वास नहीं रखते परन्तु इन धर्मों के अनुयायियों के बच्चों में पूर्वजन्म स्मृति की घटनाएँ पाई गई हैं।
डा.स्टीवेन्सन ने अपनी उपरोक्त पुस्तक में लेबनान के एक मुस्लिम इमाद इलावर की तथा अलास्का के ईसाई विलियम जार्ज जूनियर, चार्ल्स पोर्टर, हैनरी डैस्पर्स आदि के पूर्वजन्म की स्मृतियों का उल्लेख किया है।
कुछ मास पूर्व यूट्यूब पर एक मुस्लिम बच्चे का हिन्दु परिवार में जन्म लेने की घटना पर चर्चा आ रही थी। पांच साल के हिन्दु बच्चे का पूर्वजन्म की मुस्लिम पत्नी से वार्ता में “रोज़ा रखने के बारे में पूछने ” का भी ज़िक्र था।

पूर्वजन्म की स्मृति की घटनाओं का लिंग ( Gender ) से भी कोई सम्बन्ध नहीं। उपरोक्त ‘ पुनर्जन्म मीमांसा ‘ (पृष्ठ 73) में लिखा है कि प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार पं. सन्तरा ने अपनी पुस्तक ‘ जन्म – मरण की पहेली ‘ के सम्बन्ध में अपनी जानकारी की एक घटना दी है।
इस में एक लड़की ने अपने आप को पूर्वजन्म का नारा ग्राम (होशियार पुर) का रामचन्द्र बताया। नारा ग्राम में जा कर यह सत्य पाया गया।
यह घटना हमारे शास्त्रों के कथन की पुष्टि करती है कि आत्मा का कोई लिंग नहीं।
श्वेताश्वतर उपनिषद् (4.3) का श्लोक है :
” त्वं स्त्री त्वं पुमानसि।”
अर्थात् तुम ही स्त्री हो, तुम ही पुरुष हो।

डा. स्टीवेन्सन ब्रार्ज़ील की पुनर्जन्म की एक ऐसी घटना का वर्णन अपनी पुस्तक ( पृष्ठ 185 ) में करते हैं जिस में सिन्हा (Sinha) नाम की युवा लड़की मृत्यु समय अपनी मित्र इडा लारैन्ज़ ( Ida Lorenz ) को कहती है :
“मैं तुम्हारी लड़की के रूप में पैदा हूँऊगी। जब मैं बोलने लायक हूँऊगी मैं तुम्हें इस जीवन की बाते बताऊंगी, जिससे तुम्हें इस सच्चाई का एहसास हो जाएगा।”
लड़की सिन्हा की मृत्यु अक्टूबर 1917 को होती है और इडा लारैन्ज़ 14 अगस्त 1918 को एक बच्ची को जन्म देती है जिसका नाम मार्टा ( Marta) रखा गया।
मार्टा 2-3 वर्ष की आयु से पूर्वजन्म की बातें करने लगी। इडा ने बाद में मार्टा की कही बातें सत्य होने पर स्वीकार किया कि सिन्हा ने उसकी लड़की बनने की भविष्य वाणी की थी।
यह पूर्वजन्म की अद्भुत स्मृति ही नहीं, पुनर्जन्म की भविष्यवाणी भी है।

जिनका आध्यात्मिक स्तर उन्नत होता है, वे मृत्युसमय अपने पुनर्जन्म को जान सकते हैं। विवरण में यह भी बताया गया है कि सिन्हा को पूर्वजन्म की भी धुंधली स्मृति थी। वर्तमान की मार्टा (पूर्वजन्म की सिन्हा ) भी आध्यात्मिक प्रवृत्ति की थी।
अभी मार्टा बच्ची ही थी कि उसके पिता की मृत्यु हो गई। शोक व्यक्त करते हुए किसी ने कहा : “मरे हुए वापस नहीं आते।” मार्टा ने तुरन्त कहा : ” ऐसा मत कहो। मैं भी मरी थी और देखो मैं फिर जीवन यापन कर रही हूँ। “
“जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।”
( गीता 2.27)
जो जन्मा है, उसकी मृत्यु अवश्यंभावी है, जो मरा है उसका जन्म अवश्य होगा।[मोक्ष के पूर्व तक].
जो इंसान जैसा कर्म करता है, आत्मिक आनंद की जैसी पूंजी कमाता है : उसी के अनुरूप उसको विकास मिलता है. उसी के अनुरूप उसको अगले जीवन का परिवेश भी मिलता है.
इनकी भी सुनो :
Further investigations of apparent memories of former incarnations may well establish reincarnation as the most possible explanation of these experiences.
— Dr. Ian Stevenson
…………….
Its English version is available on our Page:
The Vedic Trinity
66) Proofs of Reincarnation of Soul
iv) Instances of Children having Memories of Previous Lives.
(चेतना विकास मिशन)

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