अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

मौत को गले लगाना है तो बेहतर जन्म के लिए मुझसे मिलते जाइए

Share

डॉ. विकास मानव

   _एक सप्ताह पूर्व रोहिणी, दिल्ली से मित्र इरम खान अनुरोध की थी कि मैं एक आलेख आत्महत्या पर लिखूं। उन्होंने मुझे बताया कि उनकी सहेली ने किसी अवसाद में अपनी जीवनलीला ख़त्म कर ली थी. कुछ समय बाद सहेली के भाई ने भी यही कर लिया।_
   मैं आत्महत्या पर कई बार लिख चुका हूं। कल मेरे एक परिचित भी यही अनुरोध किये. वे अपनी पत्नी से परेशान हैं। उधर उनकी पत्नी भी उनसे परेशान हैं। मतलब दोनों के बीच नहीं बन रही। दोनों ने ही अलग-अलग संदेश भेज कर मुझे बताया है कि वो मरना चाहते हैं।

दोनों की परेशानी क्या है?
पत्नी कहना है कि उसने जिस लड़के से शादी की थी, विवाह पूर्व वो ‘दिल वाले दुल्हनिया’ का राज था। लेकिन शादी के बाद लगा कि वो राज नहीं है। पहचानने में भूल हुई।
पति का कहना है कि शादी के पहले उसकी पत्नी उसे उसी फिल्म की ‘सिमरन’ नज़र आ रही थी। पर शादी के सच दिख गया। वो सिमरन नहीं।
अजीब दुविधा है। धोखा दोनों को हुआ है।
पत्नी राज चाहती थी, उसे राज नहीं मिला। पति सिमरन चाहता था, उसे सिमरन नहीं मिली।
उहापोह की इस स्थिति में दोनों ने एक संतान को भी जन्म दे दिया। क्योंकि धोखा दोनों के साथ हुआ है तो दोनों आपस में झगड़ने लगे कि तुम राज नहीं, तुम सिमरन नहीं।

झगड़ा बढ़ता गया और दोनों ने अलग-अलग संदेश भेज कर मर जाने का ऐलान कर दिया कि ये जीवन मृत्यु से भी बुरा है। अब जीना नहीं, मर जाना है।

आज मैं उन सभी लोगों को, जो जीवन को मृत्यु से अधिक बुरा मानने की गलती करते हैं, एक सच बताना चाहता हूँ।

*मै चाहूँ तो प्रेम की कहानी बता सकता हूँ कि :*

हकीकत की ज़िंदगी में किसी सिमरन को राज नहीं मिलता। किसी राज को सिमरन नहीं मिलती। राज और सिमरन का मिलन सिर्फ रुपहले पर्दे की फंतासी है। उसी रुपहले पर्दे से बाहर निकल कर मैं असली ‘राज’ से भी मिला हूं, असली ‘सिमरन’ से भी। असली जीवन में राज के पास सिमरन नहीं, सिमरन के पास राज नहीं। क्योंकि मैं दोनों से मिला हूं, दोनों को जानता हूं.
इसलिए आज मैं आपसे जो भी कहने जा रहा हूं उस पर आपको यकीन करना होगा।
कोई किसी को मरने से नहीं रोक सकता। पर मरने से पहले मृत्यु के सत्य को जान लेना अति आवश्यक है क्योंकि जिस एक धोखे को आप नहीं सह कर मृत्यु को मुक्ति का द्वार मान बैठे हैं, वही मृत्यु एक बार गले पड़ जाए तो फिर हज़ारो वर्ष इंतज़ार करना पड़ेगा दुबारा उस कष्ट से आजादी पाने में।
मृत्यु मुक्ति है, उनके लिए जो अपने जीवन को जीकर सहज रूप से गति को प्राप्त करते हैं।
जो खुद को मार लेते हैं, उन्हें तो भयंकर कष्ट से गुजरना पड़ता है और जितना पक्षीराज गरुड़ ने सबको बताया है उसके मुताबिक वो जीवन से अधिक कष्टकर होता है।
जो लोग खुद को मारने की भूल करते हैं, वो नहीं जानते कि वहां जाकर कैसे वो बाप-बाप करते हैं कि हे प्रभु! किसी तरह इस नर्क से मुक्ति दो।

    *पूरी बात जान लीजिए और उस पर यकीन भी कीजिए :*
     महर्षि कश्यप के पुत्र गरुड़ ने एक बार भगवान विष्णु से मृत्यु के बाद यमलोक के बारे में कई सवाल पूछे थे। उन्होंने पूछा था कि नर्क क्या है, स्वर्ग क्या है? किस गलती की सजा क्या है? आप जानते हैं कि गरुड़ विष्णु भगवान के वाहन हैं इसलिए वो ऐसे सवाल उनसे पूछ सकते थे और विष्णु जी उन्हें जवाब दे सकते थे।
  गरुड़ जी और विष्णु जी की पूरी बातचीत गरुड़ पुराण में दर्ज है। आप चाहें तो पढ़ सकते हैं और उस पर यकीन कर सकते हैं। या फिर मर कर उसे भोग कर यकीन कर सकते हैं। मैं तो पढ़ कर यकीन करता हूं। 
  विष्णु जी ने कई हज़ार श्लोक सुना कर एक-एक गलतियों की सजा के बारे में विस्तार से गरुड़ जी को बताया था। 
  _कभी मौका मिला तो मैं 'ईश्वरीय पेनल कोड' की एक-एक धारा का यहां विस्तार से वर्णन कर दूंगा। लेकिन आज सिर्फ एक गलती की सजा आपको सुना देता हूं।_
 मन हो तो यकीन करें क्योंकि गलती करने के बाद यकीन नहीं किया जाता, भोगा जाता है।
    विष्णु जी ने गरुड़ जी को साफ-साफ बताया था कि जो लोग अपना जीवन खुद खत्म करने की गलती करते हैं, उन्हें मरने के बाद नरक भेजा जाता है और सजा के तौर पर गर्म तेल में तला जाता है। अंगारों पर सुलाया जाता है। गरुड़ पुराण में इस सजा का इतना वीभत्स रूप बताया गया है जिसे सुनकर किसी भी इंसान की रूह कांप जाए। 
  _मैं आज विस्तार में नहीं जा रहा। पर मैं इस सत्य से वाकिफ हूं कि आदमी को हर गलती की सजा मिल कर रहती है। इसलिए संसार में जिन 'सिमरनों' और 'राजों' के बीच सही तालमेल के अभाव में नहीं बन रही, एक-दूसरे को मारने और खुद मरने की नौबत आ रही हो, उनसे मेरा अनुरोध है कि प्लीज़ आप एक दूसरे का साथ छोड़ दें, बजाए इसके कि अपना शरीर छोड़ने की सोचें।_
   84 लाख योनियों से दुबारा गुजरना पड़ेगा फिर राज और सिमरन की देह पाने के लिए। प्लीज़ आप या तो एक दूसरे से थोड़ा समझौता कर लें जैसा कि हकीकत के संसार में असली राज और सिमरन ने किया हुआ है, या फिर एक दूसरे का साथ छोड़ कर ज़िंदगी की नई फिल्म बनाएं। 

ध्यान दीजिए :
आपका जीवन सिर्फ आपका नहीं। आप मर जाएंगे तो आपके पीछे और बहुत से लोग रोज़ मर-मर कर जीएंगे।
इस जीवन के जनक आप नहीं हैं। आपने खुद को जन्म नहीं दिया है। जिसे आपने दिया नहीं, उसे आपको लेने का हक भी नहीं।
सच को समझिए। रिश्ते नहीं निभ रहे तो मिल बैठ कर बात कीजिए। कोई हल ढूंढिए। लोगों से अपनी समस्या साझा कीजिए। कोई हल न निकले तो एक दूसरे को छोड़ कर खुद को मुक्त कीजिए, बजाए इसके कि हमें अपने मरने का संदेश भेजकर घबराहट में डालें।
मैं किसी को मरने की सलाह नहीं देता, क्योंकि मैं जानता हूं कि मर कर कोई दुबारा इस धरती पर नहीं आता। 84 लाख योनियां बीतते-बीतते पृथ्वी का आकार ही बदल जाएगा।
आप आत्मा की, यानी खुद की हत्या क़र भी नहीं सकते. आप सिर्फ़ अपने शरीर की हत्या क़र सकते है. उस शरीर की हत्या, जो आपको इसलिए मिला है की उसे साधन बनाकार आप अपनी तृप्ति- मुक्ति साध लें.
उसे नष्ट करने से आपका मन:शरीर अतृप्त भटकेगा. आप एक दिन फिर फेक दिए जायेंगे नये शरीर में शेष सफ़र के लिए. फिर भी अगर खुद से आपको मौत के मुँह में जाना ही है तो एज बार मुझ से मिलते जाइए. सब कुछ छोड़ना ही है, ये मानकर मिल लीजिये की मेरी अंतिम इच्छा पूरी करने का पुण्य आप ले जाएँगे.
व्हाट्सप्प नंबर 9997741245 सेव क़र जीजिए. अगर आप मुझे मिले तो आपको पुनर्जन्म मिलेगा : आपके वर्तमान शरीर में ही. फिर उस कोरे कागज पर आपको वैसा ही लिखा जायेगा, जैसा आप चाहेंगे.
; (मनोचिकित्सक, ध्यानप्रशिक्षक लेखक चेतना विकास मिशन के निदेशक हैं.)

1 comment

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें