सच की आंच पर कश्मीर फाईल्स ने अपना रंगत खो दिया. आधे-अधूरे सच और तथ्यों को छिपाकर देश में साम्प्रदायिक नफरत को बढ़ाने के एजेंडे पर काम कर रही विवेक अग्निहोत्री की फिल्म कश्मीर फाईल्स अब खुद ही लोगों के नफरत का शिकार होकर औंधे मूंह गिर पड़ा है. लेकिन इस फिल्म ने जो साकारात्मक काम किया वह है कश्मीर के समस्या पर बहस लोगों के केन्द्र में आ गया है.
लोगों ने अब यह साफ-साफ समझना शुरु कर दिया है कि कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की समस्या आरएसएस-भाजपा की देन है, जिसका प्रमुख व्यक्ति भाजपा का कश्मीर प्रभारी नरेन्द्र मोदी था, केन्द्र में भाजपा गठबंधन की वी. पी. सिंह वाली सरकार थी, जिसने राष्ट्रपति शासन लगवाकर कश्मीर के राज्यपाल जगमोहन के माध्यम से कश्मीर में नरसंहार करने की मंशा से कश्मीरी पंडितों को बहला-फुसलाकर, धमकाकर कश्मीर से भगाया, और अब एक प्रोपेगैंडा फिल्म बनाकर लोगों की ‘सहानुभूति’ बटोरना चाह रहा है.
भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी ‘रॉ’ (RAW) के पूर्व प्रमुख अमरजीत सिंह दुलत (AS Dulat) ने कश्मीरी पंडितों पर हुए जुल्म और उनके पलायन पर बनी फिल्म को प्रॉपगैंडा बताकर खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि कश्मीरी पंडितों पर बर्बरता को लेकर जो धारणा बनी है, हकीकत उससे बहुत अलग है. उन्होंने यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) चीफ यासीन मलिक को 30 साल बाद फांसी देकर ही क्या मिलेगा ?
ए. एस. दुलत वर्ष 1989-90 में कश्मीर में इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के स्टेशन हेड थे. उसी दौर में कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ और लाखों पंडित रातों-रात घर-बार छोड़ने को मजबूर किए गये थे. दुलत कहते हैं कि वो कश्मीर और कश्मीरियों को वर्षों से जानते हैं और उनके मुताबिक घाटी में आतंकवाद का मुकाबला बंदूकों से नहीं किया जा सकता है, बल्कि बातचीत ही रास्ता है.
सितंबर 2018 में अंग्रेजी खबरों की वेबसाइट फर्स्ट पोस्ट को दिए इंटरव्यू में कहा था, ‘मैं 30 वर्षों से कश्मीर को बहुत करीब से जानता हूं. मैंने दो वर्ष वहां बतौर आईबी ऑफिसर बिताए. जब आईबी हेडक्वॉर्टर में पोस्टिंग हुई, तब भी मैं कश्मीर डेस्क का ही इनचार्ज था. जब रॉ जॉइन किया तब भी सिर्फ कश्मीर पर काम किया. फिर पीएमओ में ब्रजेश मिश्रा के अधीन भी साढ़े तीन वर्षों तक कश्मीर पर ही काम किया.’ दुलत पीएमओ में 2001 से 2004 तक वाजपेयी सरकार के दौरान कश्मीर मामलों के सलाहकार रहे थे.
उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स (LSE) में दिसंबर 2019 में क्या ‘इंटेलिजेंस एजेंसिया चीजें ठीक कर सकती हैं’ (Spymasters Speak: Can intelligence agencies do good?) विषय पर बोलते हुए भी भारत की नीति पर सवाल उठाया था. दुलत ने तब कहा था, ‘कश्मीर से एक साफ संदेश आया है कि प्यार और बड़े दिल से बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है, लेकिन ताकत से नहीं. मुझे लगता है कि हमने पिछले 15 महीनों में यही गलती की है.’ उन्होंने जोर देकर कहा कि कश्मीर घाटी में ताकत का इस्तेमाल सही नहीं है. हम लोगों से बातचीत बंद करके गलती कर रहे हैं. वक्त की मांग है कि हम बातचीत करें… हुर्रियत से भी.’ वो कहते हैं, ‘उनसे बातचीत का मकसद उन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लाना है.’
उन्होंने एक और इंटरव्यू में कहा, ‘अटल जी के शासन में हमने हुर्रियत से भी बात की थी. हमें मानना होगा कि विश्वास बहाली के उपायों से ही बातचीत का रास्ता तैयार होगा. इसके लिए ही हमने हुर्रियत की मांग मान ली और कुछ कैदियों को छोड़ दिया था.’ ‘हुर्रियत तो पूरे कश्मीर से मिट गया, लेकिन मीरवाइज उमर फारूक का कद अब भी काफी बड़ा है. घाटी में उनकी धार्मिक और राजनीतिक भूमिकाएं हैं. इसलिए वो भविष्य में बड़ी भूमिका निभाने वाले हैं और दिल्ली को उनसे बातचीत करनी चाहिए. उन्हें अलग-थलग करना ना नई दिल्ली के लिए फायदेमंद है, ना ही उनके लिए.’
विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में बनी ‘दि कश्मीर फाइल्स’ 11 मार्च को रिलीज हुई थी. इस फिल्म को कई केंद्रीय मंत्रियों का समर्थन मिला था और अधिकांश भाजपा शासित राज्यों में इसे टैक्स फ्री भी कर दिया गया था. पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि इसने ‘समूचे इकोसिस्टम’ को हिलाकर रख दिया था, जो कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पथ प्रदर्शक होने का दावा करता है, लेकिन नहीं चाहता कि सच कहा जाए.
लेकिन प्रधानमंत्री मोदी जिस बात को नहीं कह पाये वह यह है कि कश्मीर में आतंकवाद ने केवल हिन्दू ही नहीं बल्कि मुसलमानों की सबसे ज्यादा हत्या की थी. लेकिन इस फिल्म ने सच्चाई से परे जाकर जिस तरह देश भर में साम्प्रदायिक सौहार्द को खत्म करने का प्रयास किया है, उसने समूचे कश्मीरी आवाम को हिला कर रख दिया है, जिसकी भारपाई करने के लिए कश्मीर पुलिस सफाई देती फिर रही है.
जम्मू-कश्मीर की पुलिस की ओर से भी द अनटोल्ड स्टोरी के नाम से एक स्पष्टीकरण आ गया है कि यह कश्मीर फाईल्स एक प्रोपेगैंडा फिल्म है, जो आधा सच के आड़ में पूरा झूठ परोसाता है और देश में नफरत का माहौल बनाता है. ‘दि कश्मीर फाइल्स’ फिल्म पर मचे हो-हल्ले और विवाद के बीच जम्मू और कश्मीर पुलिस ने ‘अनटोल्ड कश्मीर फाइल्स’ (Untold Kashmir Files) जारी की है. 57 सेकेंड की इस वीडियो क्लिप को जारी करते हुए पुलिस की ओर से दावा किया गया है कि घाटी में हर मजहब के लोग आतंकवाद के शिकार हुए हैं, इसलिए यह कहना कि आतंकवाद का शिकार केवल पंडित हुए हैं, गलत है.
पुलिस की तरफ से जारी की गई इस क्लिप का मकसद यह रेखांकित करना है कि कैसे सभी कश्मीरी (आस्था से परे) उग्रवाद के शिकार हुए थे. ‘दि इंडियन एक्सप्रेस’ को जम्मू-कश्मीर के एक पुलिस अधिकारी ने इस शॉर्ट क्लिप के बारे में बताया, ‘यह नागरिकों तक पहुंचने का एक प्रयास है कि हम उनके दर्द को समझते हैं और आतंकवाद के खिलाफ हम सभी इस लड़ाई में एक साथ हैं.’
यह वीडियो 31 मार्च, 2022 को जम्मू-कश्मीर पुलिस के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर पोस्ट किया गया था. संयोग से (चार अप्रैल को) घाटी में प्रवासियों और कश्मीरी पंडितों पर हमलों में एक नई तेजी देखी गई. अफसर के अनुसार, ‘द कश्मीर फाइल्स’ कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा पर केंद्रित है, लेकिन यहां कई लोगों को लगता है कि फिल्म घाटी में आतंकवाद के कारण कश्मीरी मुसलमानों की पीड़ा को पूरी तरह से नजरअंदाज करती है.