डॉ. प्रिया (पुडुचेरी)
_हमारे यहाँ विगत 15 अप्रेल से डॉ. मानवश्री के शूक्ष्म निर्देशन में चेतना विकास मिशन का मैडिटेशन/ट्रीटमेंट का 15 दिवसीय प्रोग्राम चल रहा है. एक स्थानीय पब्लिक स्कूल के विद्यार्थी वेसिक जानकारी के लिए पधारे. हमें उन्होंने टॉपिक दिया : चिंता और तनाव._
हमारे मनोवैज्ञानिक अध्यापक पानी का ग्लास उठाते हैं। सभी छात्र यह सोचते हैं कि वे ये पूछेगें की ग्लास आधा खाली है या आधा भरा हुआ।
लेकिन अध्यापक ने इसकी जगह एक दूसरा प्रश्न उनसे पूछा :
”जो पानी से भरा हुआ ग्लास मैंने पकड़ा हुआ है यह कितना भारी है?”
छात्रों ने उत्तर देना शुरू किया। कुछ ने कहा थोड़ा सा, तो कुछ ने कहा शायद आधा लीटर, कुछ ने कहा शायद एक लीटर।
अध्यापक ने कहा :
यहां मेरी नजर में इस ग्लास का कितना भार है यह मायने नहीं रखता, बल्कि यह मायने रखता है कि इस ग्लास को कितनी देर मैं पकड़े रखता हूँ।
वे बोले :
अगर मैं इसे एक या दो मिनट पकड़े रखता हूँ, तो यह हल्का लगेगा। अगर मैं इसे एक घंटे पकड़े रखूँगा तो इसके भार से मेरे हाथ में थोड़ा सा दर्द होगा। अगर मैं इसे पूरे दिन पकड़े रखूँगा तो मेरे हाथ एकदम सुन्न पड़ जाएँगे।
पानी का यही ग्लास जो शुरुआत में हल्का लग रहा था उसका भार इतना बढ़ जायेगा कि अब ग्लास हाथ से छूटने लगेगा।
तीनों ही दशाओं में पानी के ग्लास का भार नहीं बदलेगा, लेकिन जितना ज्यादा मैं इसे पकड़े रखूँगा उतना ज्यादा मुझे इसके भारीपन का एहसास होता रहेगा।
मनोवैज्ञानिक अध्यापक ने आगे बच्चों से कहा :
”आपके जीवन की चिंतायें और तनाव काफी हद तक इस पानी के ग्लास की तरह है। इन्हें थोड़े समय के लिए सोचो तो कुछ नहीं होता। इन्हें थोड़े ज्यादा समय के लिए सोचो तो इससे थोड़ा सरदर्द का एहसास होना शुरू हो जाएगा। इन्हें पूरा दिन सोचोगे तो आपका दिमाग सुन्न और गतिहीन पड़ जाएगा.”
उन्होंने कहा :
कोई भी घटना या परिणाम हमारे हाथों में नहीं है, लेकिन हम उसे किस तरह संभालते हैं, ये सब हमारे हाथों में ही है। बस जरूरत है इस बात को सही से समझने की।
हमेशा एक बात याद रखें :
“चिंता और तनाव उन पक्षियों की तरह हैं जिन्हें आप अपने आसपास उड़ने से नहीं रोक सकते, लेकिन उन्हें अपने आसपास घोसला बनाने से तो रोक ही सकते हैं।”
(चेतना विकास मिशन)