जहांगीरपुरी में बुधवार को बुलडोजर चलने के बाद सियासत गरम है। एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने इसकी तुलना इमरजेंसी के वक्त तुर्कमान गेट की घटना से कर दी है। तब कांग्रेस सत्ता में थी। इंदिरा गांधी भले पीएम थीं, लेकिन सरकार चलाते थे उनके बेटे संजय गांधी। ओवैसी ने तुर्कमान गेट का जिक्र करते हुए बीजेपी और आम आदमी पार्टी को नसीहत दी है। बीते रोज ओवैसी ने कहा था कि 1976 में सत्ता में बैठे लोग आज अपनी ताकत गंवा बैठे हैं। बीजेपी और AAP को भी याद रखना चाहिए सत्ता शाश्वत नहीं है। ओवैसी के तुर्कमान गेट का जिक्र लाते ही लोगों की उत्सुकता बढ़ गई कि आखिर तुर्कमान गेट पर क्या हुआ था? ओवैसी ने जहांगीरपुरी में बुलडोजर कार्रवाई की तुलना तुर्कमान गेट से क्यों की?
बात 1976 की है। देश में इमरजेंसी लगी हुई थी। इंदिरा गांधी तब पीएम थीं। हालांकि, पर्दे के पीछे से सरकार चला रहे थे संजय गांधी। उनका आदेश पत्थर की लकीर हुआ करता था। डीडीए के तत्कालीन वाइस चेयरमैन जगमोहन के लिए संजय गांधी भगवान हुआ करते थे। संजय गांधी के मुंह से निकला शब्द कानून बन जाता था। उनके आदेश मौखिक होते थे। उनकी तुनकमिजाजी जगजाहिर थी।
उसी दौरान संजय गांधी ने पुरानी दिल्ली के सौंदर्यीकरण का ऐलान किया था। इसके लिए लाल किले, जामा मस्जिद और तुर्कमान गेट के आसपास के इलाकों को चिन्हित किया गया था। इस काम को अंजाम देने के लिए उन्होंने जगमोहन को कमान सौंपी थी। वह तेज-तर्रार ब्यूरोक्रेट थे और संजय गांधी के बेहद भरोसेमंद।
निवासियों ने किया विरोध तो…
पुरानी दिल्ली की मलिन बस्तियों को साफ करने की मंशा से शुरू किया गया यह डिमोलिशन हिंसक बन गया था। इन बस्तियों में रहने वालों को तब दिल्ली छोड़ने का फरमान दिया गया था। इनसे दूर की बस्तियों में जाने के लिए कहा गया था। तब तुर्कमान गेट के निवासियों ने इससे इनकार कर दिया था। उनका कहना था कि वो मुगल काल से वहां बसे हैं। उन्हें अपना जीवन-यापन करने के लिए शहर तक पहुंचने के लिए हर दिन भारी बस किराये का भुगतान करना पड़ेगा। उन्होंने अपने घरों पर बुलडोजर चलाए जाने का तीखा विरोध किया था।
18 अप्रैल 1976 को पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर खुली गोलियां चलाई थीं। इनमें कई निर्दोष लोग मारे गए थे। सेंसरशिप लगाने वाली सरकार ने अखबारों को नरसंहार की रिपोर्टिंग नहीं करने का आदेश दिया था। जनता को तब बीबीसी जैसे विदेशी मीडिया के माध्यम से हत्याओं के बारे में पता चला था। बाद में यह बताया गया कि विरोध कर रहे लोगों को बुलडोजर से कुचल दिया गया था। इसके कारण कई लोगों की मौत हुई थी। तब 10 से ज्यादा बुलडोजरों ने गैर-कानूनी झुग्गी झोपड़ियों को ध्वस्त कर दिया था।
जनसंघ को चुकानी पड़ी थी विरोध करने की कीमत
तब कुछ व्यापारियों और मुसलमानों ने जनसंघ का समर्थन किया था। उसने दिल्ली को सुंदर बनाने की संजय गांधी की योजना का विरोध किया था। इस बात से वो बहुत ज्यादा चिढ़ गए थे। करोल बाग की कई दुकानों को तोड़ दिया गया था क्योंकि संजय का वहां जाने पर अच्छा स्वागत नहीं हुआ था।
तब जो दुकानदार संजय से मिलने गए थे, उन्हें उलटे पांव लौटा दिया गया था। कहा गया था कि जनसंघ का समर्थन करने का खामियाजा उन्हें भुगतान पड़ेगा। इस दौरान जनसंघ वाले इलाकों को सबसे पहले टारगेट किया गया था। फिर मुसलमानों को निशाने पर लिया गया।
इन आदेशों का पालन करने वाले डीडीए, डीएमसी और पुलिस के अधिकारियों के लिए यह महत्वपूर्ण नहीं था कि वो किस हद तक गैर-कानूनी रास्ता और बर्बरता अपनाते हैं। उनके लिए आका का आदेश सबकुछ था। यह वो समय था जब किसी भी विरोध का मतलब MISA के तहत तत्काल गिरफ्तारी थी।