डॉ. विकास मानव
प्रश्न है : कृष्ण कौन?
उत्तर : वसुदेव और देवकी का पुत्र।
प्रतिप्रश्न : इतनी उथली बात तो दूरान्वयी श्रुत और काल्पनिक ही हो सकती हैं। कृष्ण का स्वभाव तो साधारण मनुष्यों की तरह जन्म-मरण वाला नही हो सकता?
प्रत्युत्तर : ठीक है, हमारा प्रयास श्रुतिश्रुत वाक्यों पर आपकी जिज्ञासा शांत करने का रहेगा।
_यदि आप शास्त्रों मे देखना चाहते हैं तो निश्चय ही कृष्ण उस वृष्णिवंशीय कबीले का सरदार नही था जिसे इतिहासकारों ने १५०० ई.पू. की घटना बताई है,क्योंकि अभी तक ऐसा कोई साक्ष्य पुरातत्वज्ञानियों को नही मिला है जिससे कृष्ण के माता पिता व्यक्ति के रूप मे पैदा हुए और शूरसेन की कन्या देवकी ने कृष्ण को जन्म दिया।_
आप समझ सकते हैं कि बादलों के घर्षण से स्वयमेव एक विद्युत तरंग पैदा हो जाती है और वह विद्युत अति तीव्र गति से आश्रय को प्राप्त हो जाती है।
_यह भी वैज्ञानिक सत्य है कि बिना जड़ के चेतन का साकार होना असंभव है। इसलिए ऐसी कथाओं को तो रूप अलङ्कार की कथा ही मानना चाहिए। अब रहा सवाल कि जड़ यानी प्रकृति देवकी(देवकृत) चेतन की आश्रयस्थली मे चेतन का प्रवेश।_
तो सबसे पहले देवकी शब्द का प्रमाण हमे छान्योग्योपनिषद् मे इस प्रकार मिलता हैः-
*तद्धैतद्घोर आङ्गिरसः कृष्णाय देवकीपुत्रायोक्त्वोवाचापिपास एव स बभूव सोsन्तवेलायामेतत्त्रयं प्रतिपद्ये।*
(३/१७/६)
अर्थात् अङ्गों के घोर रस (घोर=घनिष्ठ=कठिन तपरूप प्रयास से उत्पन्न) कृष्ण का प्रतिपादन (उत्पत्ति) होता है जो अक्षय, अविनाशी, अतिशुक्ष्म प्राण है वह कृष्ण यानी अज्ञानरूपी अंधकार मे एक ज्योति(प्रकाश) के रूप मे प्रकट हो जाता है।
यह प्रकाश किससे पैदा होता है कि वसुदेव जिसका नाम है। तो वसुदेव कौन है? श्रुति कहती है किः-
अग्निश्च पृथिवी च वायुश्चान्तरिक्षं चादित्यश्च द्यौश्च चन्द्रमाश्च नक्षत्राणि च इति वसवः।
(बृ०उ०/३/९/३)
इन आठ तत्वों को वसुदेव कहा गया है।
जैसे बादलों के घर्षण से अस्थायी विद्युत का उत्पन्न होना प्रमाणित है उसी प्रकार जब अंतरिक्ष सहित सूर्य्य, वायु,अग्न्यादि का घर्षण होगा तो स्वाभाविक है कि एक महत् तेज प्रकट होगा, क्योंकि बादलों से इसमे विराट्शक्ति है।
तो जैसे मनुष्यरूप धारण करने के लिए रेतस् (वीर्य) को योनि की आवश्यकता होती है उसी प्रकार इस आकर्षणबल को योनि (देवकी) की आवश्यकता हुई और वह तेज स्थायीरूप से मनुष्यरूप मे प्रकट हो गया, यही कृष्ण है।
यहाँ ध्यान रखने योग्य बात यह है कि चट्टानों के अंतर्भूत कणों से भूगर्भ वैज्ञानिकों ने जाना है कि पृथिवी की उत्पत्ति लगभग ७५० विलियन वर्ष पुरानी है और हम लोग २००० वर्षों तक भी ठीक से नही समझ पाए हैं।
इसलिए यथाश्रुत मत से विद्वान इतना ही समझ पाए हैं।
इसके आगे की दृष्टि यदि खुल पाई तो शायद कुछ और विशिष्टरूप से कुछ कहा जा सके।
[चेतना विकास मिशन]