डॉ. गीता शुक्ला
_कुछ दिन पहले किसी पटल पर एक चर्चा थी कि 70 प्रतिशत (यथार्थत: यह प्रतिशत 90 से अधिक है) स्त्रियों को शारीरिक सुख नही मिलता. उन्हें कहीं भी शारीरिक संबंध बनाने की छूट मिलनी चाहिए. आर्गेज्म हर स्त्री का नैसर्गिक अधिकार है--एक बात. दूसरी बात यह की, सारी नैतिकता स्त्रियों के लिए क्यों!?_
तस्लीमा नसरीन का एक उपन्यास है लज्जा. उसमें दंगाइयों ने एक आदमी का लिंग काट दिया है. उस व्यक्ति के मन में अपनी स्त्री को दैहिक सुख न दे पाने की ग्लानि है. पर उसकी पत्नी अपने पति से भावनात्मक रूप से जुड़ी है. वह उसे ग्लानि न करने को कहती है।
एक बार मेरे एक सहकर्मी अपनी पत्नी के साथ संबंध न बना पाने की बात मुझसे साझा कर किसी विकल्प की चर्चा की। उनकी पत्नी कर्कश स्वभाव की थीं और उन्हें दैहिक संबंध से अरुचि थी। सहकर्मी कहीं और संबंध बनाना चाहते थे पर नैतिकता उन्हें रोक रही थी।
यहाँ पर भी वही भावनात्मक समस्या थी जिसकी वजह से दैहिक संबंध नही बन पा रहे थे।
_मैंने उन्हें दाम्पत्य जीवन में ह्युमर, पत्नी के प्रति केयरिंग ऐटिटूड और इमोशनल बॉन्डिंग पर फोकस करने को कहा, थोड़े दिन में चीजों में बदलाव आया।_
आप जब दाम्पत्य संबंध में होते हैं तो वहाँ भावनात्मक जुड़ाव सबसे महत्वपूर्ण होता है। जब एक औरत अपने आदमी से असंतुष्ट होती है तो अपवाद छोड़ दें तो उसे दुनियां का कोई आदमी संतुष्ट नही कर सकता।
हो सकता कि वह फौरी तौर पर किसी से संतुष्ट हो जाए पर थोड़े दिन बाद उससे भी असंतुष्ट होकर उसकी तलाश किसी और के लिए शुरू हो जायेगी। यही बात आदमी पर लागू होती है।
दरअसल असंतुष्टि देह की नही बल्कि मन की होती है, भाव में होती है। हम जिसे चाहते हैं उससे दृष्टि मिलते संसार के सारे सुख मिल जाते हैं।
जो स्त्रियां नैतिकता को तोड़कर किसी भी आदमी की गोद में बैठने की बात को अपना अधिकार बता रहीं दरअसल वह भावनात्मक रूप से विकलांग हैं। रुग्ण मानसिकता वाली, अपाहिज. चेतना मिशन दुराचार की पैरवी नहीं करता. समाधान के लिए व्हाट्सप्प 9997741245 पर हमसे संपर्क किया जा सकता है. हम उनके पति को विस्तर के काबिल बनाते हैं — बिना उनसे कुछ लिए.
आधुनिकतावादी स्त्रियां दर्पण की धूल साफ करने के लिए क्रांति करने को तैयार हैं पर धूल तो उनके चश्मे में लगी है।
घोषित सत्तर प्रतिशत का आंकड़ा पीठ पर लादे ये स्त्रियां पूरी मानव जाति को वेश्यालय में तब्दील करना चाहती जबकि सौ प्रतिशत वेश्याएँ नख भर दैहिक सुख से शायद ही परिचित हो पाती हों।
देह का स्पर्श मन के स्पर्श से होकर जाता है। आपने किसी के मन को छुआ है तभी आप उसकी देह को महसूस कर सकते हैं। ये स्त्रियां मन को कभी न छू पाने का अभिशाप लिए प्रेत जैसे भटक रहीं हैं।
यह सभी स्त्रियों को अपने जैसा बना देना चाहतीं, यही इनका स्त्रीवाद है, यही इनकी तथाकथित नैतिकता।
मैं फिर एक बात दुहराती हूँ : प्रेम सबसे बड़ी नैतिकता है. बिना प्रेम किये कोई भी देह तक नही उतर सकता।
हांटेड स्त्रीवाद से स्त्रियां बचें, मेरी मंगलकामना हैं।
(लेखिका चेतना विकास मिशन की मुख्य चिकित्सिका हैं.)