चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कांग्रेस संग जाने पर बात न बनने के बाद 2 मई को एक ट्वीट कर नई दिशा में बढ़ने के संकेत दिए हैं। उन्होंने जनता को लोकतंत्र का मास्टर बताते हुए सीधे उस तक ही पहुंचने की बात करते हुए बिहार से जन सुराज की शुरुआत करने की हुंकार भरी है। उनके जन सुराज को नए राजनीतिक दल के गठन का संकेत भी माना जा रहा है। हालांकि उनके करीबियों का कहना है कि प्रशांत किशोर इतनी जल्दी राजनीतिक दल का गठन नहीं करेंगे बल्कि बिहार के ग्रामीण इलाकों का दौरा कर अपनी संभावनाओं के लिए उर्वर जमीन तलाशेंगे। यदि उन्हें अपने लिए संभावनाएं दिखती हैं और कुछ मुद्दे समझ आते हैं, तभी राजनीतिक दल का गठन किया जाएगा।
5 मई को कर सकते हैं दौरों का ऐलान, बिहार में घूमने की तैयारी
सूत्रों का कहना है कि प्रशांत किशोर की ओर से 5 मई को अपने दौरों का ऐलान किया जा सकता है। अपने दौरे में वह लोगों से मुलाकात करेंगे और उनके मुद्दों को समझेंगे। प्रशांत किशोर पिछले तीन दिनों से पटना में थे और माना जा रहा था कि वह नीतीश कुमार से मुलाकात कर सकते हैं। हालांकि यह मुलाकात नहीं हुई और 2 मई की सुबह उन्होंने ट्वीट करके अपने अगले कदम के बारे में इशारों में ही जानकारी दी। इससे पहले उन्होंने कहा भी था कि वह अपने भविष्य के बारे में 2 मई को लोगों को बड़ा अपडेट देंगे। बता दें कि कांग्रेस से उनकी लंबी बातचीत चली थी और कयास लग रहे थे कि वह कांग्रेस में कोई अहम पद लेकर शामिल हो सकते हैं, लेकिन दोनों पक्षों की ओर से इस बात से इनकार कर दिया गया।
पीके के करीबी लोगों का कहना है कि बिहार में घूम-फिरकर देखेंगे कि किन लोकलुभावन मुद्दों पर काम किया जा सकता है और लोगों की गोलबंदी की कितनी संभावनाएं हैं। इसके बाद ही वह कोई कदम उठाएंगे। 2020 के विधानसभा चुनाव में रोजगार मुद्दा बना था। तेजस्वी यादव ने 10 लाख नौकरियां देने के नाम पर ही इलेक्शन लड़ा था और सबसे ज्यादा 77 सीटें हासिल की थीं। इसके अलावा एनडीए ने उनके ऐलान के बाद 20 लाख नौकरियों का वादा कर दिया था। हालांकि अब तक इस दिशा में नीतीश सरकार आगे बढ़ती नहीं दिखी है। इसके अलावा जिस सुशासन के मॉडल की तारीफें बीते दौर में नीतीश कुमार को मिली थीं, वह भी कमजोर होता दिख रहा है। ऐसे में सवाल है कि क्या पीके का जन सुराज नीतीश कुमार के सुशासन मॉडल को टक्कर देगा।
लोजपा जैसे दल फेल, नए भी नहीं उभर पाए; कैसे चलेगा पीके का सिक्का
बिहार की राजनीतिक जमीन नए दलों के लिए बहुत उर्वर नहीं दिखती है। 2020 के चुनाव प्लूरल्स पार्टी का काफी हल्ला था, लेकिन उसका एक भी कैंडिडेट नहीं जीत सका। इसके अलावा कई स्थानों पर तो जमानत ही जब्त हो गई। यही नहीं वीआईपी, जीतनराम मांझी की ‘हम’ पार्टी भी असफल रहे हैं। यही नहीं दलित समुदाय की राजनीति करने वाली पुरानी पार्टी लोजपा भी सफल नहीं हो सकी है। इस बार उसका एक भी सदस्य विधानसभा नहीं पहुंचा है। ऐसे में पीके की पार्टी कितना सफल होगी, यह देखा भी दिलचस्प होगा। भले ही पीके चुनाव जिताने का अनुभव रखते रहे हैं, लेकिन समर में उतरना पूरी तरह से नया एक्सपीरियंस होगा।