नई दिल्ली: इंटरनेट युग में दुनिया जब एकाकार हो चुकी है तो परंपरा, पहनावा, खान-पान समेत जीवनशैली के अन्य पहलुओं का असर भी विश्वव्यापी हो गया है। इसी असर में हमारी सामाजिक मान्यताएं और फिर उनके अनुरूप कानूनी अनिवार्यताएं भी बदलाव के दौर से गुजर रही हैं। वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को कानूनी जामा पहनाने की कवायद भी इसी सिलसिले की एक कड़ी मानी जा सकती है। भारत में एक वर्ग का दृढ़ विश्वास है कि वैवाहिक जोड़ों के बीच भी बलात्कार का वाकये होते हैं तो दूसरा वर्ग वैवाहिक संस्था की पवित्रता का हवाला देकर ऐसी धारणा को विकृति बता रहा है। इस विषय पर सामाजिक विभेद का स्तर यह है कि दिल्ली हाई कोर्ट की दो जजों की बेंच भी एक राय नहीं बना सकी। दो जजों ने समाज के ऊपर उद्धृत दो वर्गों की तरह विपरीत विचार रखे। वैसे भी वैवाहिक बलात्कार जैसे आरोपों को साबित कर पाने की अपनी व्यावहारिक चुनौतियां हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
अक्सर बदलाव की उत्प्रेरक शक्ति से ही बदलाव के प्रभावी या निष्प्रभावी होने के पैमाने तय हो जाता है। भारत में वैवाहिक बलात्कार की धारणा मूलतः पश्चिमी देशों से बनी है। विकसित विश्व के उस भाग में कई देशों ने वैवाहिक बलात्कार की धारणा को सही माना और इसे रोकने के लिए कानून बनाए। भारत में भी पढ़ा-लिखा और कथित क्रांतिधर्मी तबका उन्हीं पश्चिमी देशों से प्रभावित होकर वैवाहिक बलात्कार के लिए कानून बनाने की मांग पर अड़ा है। यही वजह है कि मामला दिल्ली हाई कोर्ट के पास गया और दो में एक जज ने उनका समर्थन किया जबकि दूसरे ने विरोध।
दरअसल, कोर्ट के सामने विषय यह था कि क्या पत्नी की जिस वक्त सहमति नहीं हो, उस वक्त उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने वाला पति बलात्कारी माना जा सकता है? मुद्दा यह है कि अगर पत्नी थकी हुई है या फिर वह मानसिक रूप से तैयार नहीं है तो फिर वो सेक्स से इनकार कर सकती है। तब पति ने उसकी इच्छा का सम्मान नहीं किया और अपने हवस पर नियंत्रण रख पाने में नाकामयाब होकर जबरन सेक्स कर लिया तो इसे पति-पत्नी के बीच सहज और सामान्य शारीरिक संबंध नहीं होकर पति द्वारा पत्नी का बलात्कार किया जाना कहलाएगा। इस पर दिल्ली हाई कोर्ट के दोनों जजों ने विपरीत राय रखी।
जिन देशों में वैवाहिक बलात्कार की धारणा को मान्यता देते हुए कानून बनाए भी गए हैं, वहां भी बहुत कम मामलों में ही दोष सिद्धी हो पाती है। इस कारण वैवाहिक बलात्कार के बहुत कम मामलों में सजा होती है। हमारे सहोगी अखबार में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि ‘दुनिया के 150 से ज्यादा देशों ने पत्नी के साथ पति के बलात्कार को अपराध माना है, लेकिन इन देशों में भी इस तरह के कानून का कोई बड़ा असर नहीं दिखता।’
दुनियाभर के कानूनी विशेषज्ञ जानते और मानते हैं कि यह इतना पेचीदा मसला है जिसमें ठोस सबूत पेश कर पाना बहुत टेढ़ी खीर है। चूंकि उन देशों में भी समाज का बड़ा तबका वैवाहिक बलात्कार जैसी धारणाओं में यकीन नहीं करता, इसलिए पति पर ऐसे आरोप लगाकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली पत्नियों को समाजिक समर्थन नहीं मिल पाता है। इसे स्थिति नीम पर करेला चढ़ने वाली हो जाती है। एक तो बंद कमरे में हुई घटना का ऐसा सबूत सौंप पाना जो अदालती एवं कानूनी मापदंडों पर खरा उतरे और दूसरा समाज का असहयोग, स्वाभाविक है कि पीड़ित पत्नी के लिए पति का अपराध साबित करना लोहे के चने चबाना जैसा है। यही वजह है कि अधिकांश मामलों में पति निर्दोष साबित हो जाता है।
चेक रिपब्लिक की राजधानी प्राग स्थित पीस रिसर्च सेंटर में रिसर्चर और चार्ल्स यूनिवर्सिटी में लॉ की असिस्टेंट लेक्चरर निकोला कुरकोवा लिमोवा कहती हैं कि पति द्वारा बलात्कार घर की चहारदीवारी के अंदर होता है जिसका कोई गवाह नहीं होता। अगर पीड़िता ने अपने साथ हुए अपराध की चर्चा किसी परिजन, रिश्तेदार या दोस्त के साथ की हो या फिर सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर उल्लेख किया हो तो अदालती कार्यवाही में उसे गवाह या साक्ष्य के तौर पर पेश किया जा सकता है। अदालत को तो पति को आरोपी से दोषी बताने के लिए टेक्स्ट मेसेज, फोटो, वीडियो, ऑडियो जैसे कोई ना कोई ठोस सबूत चाहिए होते हैं। और ऐसे सबूत मुहैया कराने का दायित्व पीड़िता का होता है।
कानूनी पहलुओं के नजरिए से एक और समस्या यह है कि ज्यादातर देशों ने वैवाहिक बलात्कार के मामलों का रिपोर्ट दर्ज कराने में लंबे अंतराल की अनुमति नहीं देता है। यानी, पति द्वारा जबरन शारीरिक संबंध बनाने की घटना के कुछ दिनों के अंदर ही रिपोर्ट लिखवानी पड़ती है जबकि आम बलात्कार को रिपोर्ट करने की कोई मियाद नहीं होती है या फिर लंबी होती है। साथ ही, पत्नी को यह भी साबित करना होता है कि उसने पर्याप्त विरोध किया था जबकि पति ने उस पर पर्याप्त बल प्रयोग किया था। आखिर, यह साबित हो तो कैसे? ऐसा असंभव नहीं तो कम-से-कम आसान तो बिल्कुल भी नहीं है।
नवभारत टाइम्स में प्रकाशित लेख में कनाडा के एक केस का जिक्र है। उसमें कहा गया है कि अदालत ने पत्नी से पूछा कि क्या उसने भरपूर विरोध किया था तो पत्नी ने कहा कि विरोध तो किया था, लेकिन उसे डर था कि पति कहीं उसे बच्चों के साथ घर से निकाल नहीं दे, इसलिए थोड़ी देर बाद वो ठंडा पड़ गईं। पत्नी ने जब कहा कि थोड़ी देर के विरोध के बाद डर के मारे वो सेक्स के लिए तैयार हो गईं तो कोर्ट ने इसे पति द्वारा बलात्कार मानने से इनकार कर दिया। ऐसे मामले में सजा को लेकर भी समस्या है। पत्नी से जबरन सेक्स के खिलाफ कानून बनाने वाले अधिकांश देशों में दोषी पति के लिए बहुत कम सजा का प्रावधान है। इस कारण भी बलात्कार पीड़ित पत्नियां रिपोर्ट दर्ज करवाने से हिचकती हैं। उन्हें पता होता है कि पर्याप्त सामाजिक समर्थन के अभाव में ठोस गवाह और सबूत पेश कर पाना आसान नहीं, फिर इनमें सफलता मिल भी गई तो पति को प्रतिकात्मक सजा मिलेगी। ऐसे में पीड़िता कानून की शरण में जाने से कतराती हैं।
भारत में यह मांग कि पति भी पत्नी का बलात्कार करता है या कर सकता है- इस धारणा को कानूनी स्वीकृति दी जाए और उसके अनुरूप दंडित करने के प्रावधान किए जाएं जोर पकड़ चुकी हैं तो कुछ देर ही सही, यह होना ही है। दिल्ली हाई कोर्ट के दोनों जजों के बीच सर्वसम्मति नहीं बन पाई तो क्या, रास्ता आगे भी है। हालांकि, यहां के सामाजिक-पारिवारिक ताने-बाने को देखकर तो यही लगता है कि यह मुट्ठीभर रईस लोगों की अलग दुनिया बनाएगा, गांवों में तो खुद महिलाएं इसे घृणित एजेंडा घोषित करने से सेकंड भर नहीं चूकेंगी। भारत में परिवार और विवाह की संस्था आपसी त्याग की धारणा पर टिका है जिसमें लोगों की गहरी आस्था है। किसी खास क्षण में पत्नी की इच्छा नहीं भी है और पति में सेक्स की चाहत उफान पर है तो पत्नी पति के लिए अपनी इच्छा का त्याग करेगी और इसका आधार मानसिक सामंजस्य होगा ना कि पति के मुकाबले खुद को कमतर मानने की भावना।
विवाह संस्था पर भरोसा नहीं रखने वाले क्या यह नहीं जानते कि कभी-कभार ही सही, लेकिन कभी पति की भी तो इच्छा नहीं हो सकती है और पत्नी वासना की आग में धधकती हुई पति को मजबूर कर सकती है? क्या पुरुष कभी थकता नहीं या फिर उसका मूड कभी बदलात नहीं? क्या पति बन जाने के बाद पुरुष हमेशा एक ही मानसिक दशा में रहता है- निरंतर सेक्स की चाह? अगर नहीं तो क्या पत्नी भी बलात्कार कर सकती है? इसका टके सा जवाब सबको पता है- पति जब तक तैयार न हो पत्नी संबंध बना ही नहीं सकती, लेकिन क्या महिला की इच्छा के बिना कोई पुरुष योनीभेद (Penetration) कर सकता है? कहा जा सकता है कि पेनिट्रेशन के बिना यौन हमला नहीं होने का तर्क ही गलत है तो क्या हमारे देश में महिला के घरेलू उत्पीड़न या यौन शोषण को लेकर कानून नहीं हैं? खैर, वैवाहिक बलात्कार का विषय इतना सीधा है नहीं इसलिए इस पर अदालत को भी सहज समाधान देने में मुश्किल आई है।