देश में गेहूं के संकट को देखते हुए भारत ने इसके एक्सपोर्ट यानी निर्यात पर बैन लगा दिया है। दरअसल, इस बार जल्दी हीटवेव आने से गेहूं की पैदावर में कमी हुई है। अनुमान से कम उत्पादन की वजह से गेहूं और आटे की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं। अब सरकार ने बढ़ती कीमतों को काबू में करने के लिए यह कदम उठाया है।
रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत के गेहूं एक्सपोर्ट पर बैन का दुनिया के बाजार में असर दिखना शुरू हो गया है। इस साल में अब तक गेहूं के दाम में 60% तक की बढ़ोतरी हो गई है। वहीं, G-7 देशों ने भारत के कदम का विरोध किया है। इन देशों का कहना है कि इससे दुनियाभर में खाद्य संकट गहरा सकता है।
दरअसल, भारत के कदम का दुनियाभर में असर दिखना शुरू हो गया है। ब्रेड से लेकर नूडल्स तक के दाम बढ़ गए हैं। बढ़ते दामों की वजह से आने वाले वक्त में कई देशों में गेहूं से बनी खाद्य वस्तुओं के लाले पड़ सकते हैं।
ऐसे में आइए जानते हैं कि भारत ने आखिर गेहूं के एक्सपोर्ट पर बैन क्यों लगाया? क्यों जी-7 देश भारत के इस फैसले की आलोचना कर रहे हैं? बैन से भारत के घरेलू बाजार पर क्या असर होगा? क्या एक्सपोर्ट पर बैन से दुनिया के कई देश भुखमरी की कगार पर पहुंच जाएंगे?
भारत ने आखिर गेहूं के एक्सपोर्ट पर क्यों लगाया बैन?
भारत ने बीते शुक्रवार को गेहूं के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया है यानी अब भारत विदेशों में गेहूं को नहीं बेचेगा। सरकार ने इसके लिए भारत और पड़ोसी देशों में फूड सिक्योरिटी का हवाला दिया गया है। दरअसल, सरकार ने देश में गेहूं और आटे की बढ़ती कीमतों को काबू में करने के लिए यह कदम उठाया है।
सरकार ने कहा है कि अब सिर्फ उसी निर्यात को मंजूरी मिलेगी जिसे पहले ही लेटर ऑफ क्रेडिट जारी हो चुका है। वहीं उन देशों को भी इसकी सप्लाई की जा सकेगी, जिन्होंने भोजन सुरक्षा की जरूरत को पूरा करने के लिए सप्लाई की अपील की है।
एक्सपर्ट्स का कहना हैं कि महंगाई के आंकड़े ने सरकार को निर्यात पर बैन लगाने के लिए मजबूर किया है। खाने-पीने की चीजों की कीमतें बढ़ने से भारत में रिटेल महंगाई की सालाना दर अप्रैल में 8 सालों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है।
कॉमर्स सेक्रेट्री बीवीआर सुब्रम्ण्यम कहते हैं कि दुनिया में गेहूं की बढ़ती मांग और आने वाले वक्त में होने वाली संभावित कमी को देखते हुए लोग अनाज का भंडारण कर सकते हैं। ऐसा ना हो इसलिए हमने निर्यात पर रोक लगाई है।
गेहूं की पैदावार में कमी हुई
इस बार गेहूं की पैदावार में कमी का सबसे बड़ा कारण मौसम है। मार्च से हीटवेव स्टार्ट हो गई, जबकि मार्च में गेहूं के लिए 30 डिग्री से ज्यादा टेम्परेचर नहीं होना चाहिए। इसी समय गेहूं में स्टार्च, प्रोटीन और अन्य ड्राई मैटर्स जमा होते हैं।
ऐसे में कम तापमान गेहूं के दानों का वजन बढ़ाने में मदद करता है। इस बार मार्च में कई बार तापमान 40 डिग्री को पार कर गया। इससे गेहूं समय से पहले ही पक गया और दाने हल्के हो गए। इसका असर यह हुआ कि गेहूं की पैदावार 25% तक घट गई। पैदावार कम होने से भारत में गेहूं की कीमत पहले ही अपने उच्चतम स्तर पर चली गई हैं। ऐसे में आटे की कीमतों में तेजी आना लाजिमी है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस बार केंद्र ने गेहूं का उत्पादन 11.13 करोड़ टन रहने की उम्मीद जताई थी। यब अब तक का सर्वाधिक है, लेकिन बेमौसम मार की वजह से उत्पादन घटकर 10 करोड़ टन से भी कम रह सकता है।
सरकारी एजेंसियों की गेहूं खरीद इस साल घटकर 1.8 करोड़ टन पर आ गई है। यह बीते 15 सालों में सबसे कम है। 2021-22 में कुल 4.33 करोड़ टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी। भारत के बाजारों में गेहूं की कीमत 25 हजार रुपए प्रति टन है जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य 20,150 रूपए प्रति टन ही है।
एग्रीकल्चर एक्सपर्ट देवेंद्र शर्मा ने भास्कर को बताया कि बैन के बाद भारत के घरेलू बाजार पर इसका असर दिखना शुरू हो गया है। इंडियन मार्केट में गेहूं की कीमत में 10% की कमी आई है। उम्मीद है कि गेहूं से बनने वाले खाने-पीने की चीजों के दामों में कमी आ सकती है। सरकार को लंबे समय तक बैन लगाए रखना चाहिए।
भारत के गेहूं पर बैन से दुनिया के बाजार में क्या फर्क पड़ेगा?
भारत गेहूं एक्सपोर्ट करने वाले दुनिया के सबसे बड़े देशों में से एक है। घरेलू बाजार में गेहूं से बनने सामानों की कीमतों में हुई वृद्धि की वजह से केंद्र ने गेहूं के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया है। हालांकि, लेटर ऑफ क्रेडिट के साथ मौजूदा कॉन्ट्रैक्ट के लिए गेहूं का एक्सपोर्ट होता रहेगा। यानी 13 मई से पहले के जिन ऑर्डर के लिए लेटर ऑफ क्रेडिट जारी हो चुका है, उन्हें एक्सपोर्ट किया जाएगा।
अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में गेहूं की कीमतों में इस साल की शुरुआत से अब तक ही 60% तक की बढ़ोतरी हो चुकी हैं। अब भारत के प्रतिबंध से अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतों में और बढ़ोतरी होगी। इसका असर दिखना भी शुरू हो गया है। दुनिया के मार्केट में ब्रेड, केक से लेकर नूडल्स और पास्ता तक- हर चीज की कीमत में लगातार बढ़ोतरी हुई है।
यूक्रेन और रूस दुनिया भर में पैदा होने वाले गेहूं के उत्पादन का एक तिहाई उगाते हैं, लेकिन जारी युद्ध का असर उत्पादन और सप्लाई पर पड़ा है। एक्सपोर्ट ठप हो चुका है। अब भारत के बैन से उन देशों पर ज्यादा असर पड़ेगा जो पहले से आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं।
भारत श्रीलंका को लगातार खाद्य पदार्थ की सप्लाई कर रहा है। वहीं, ग्लोबल फूड क्राइसिस की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के 53 देशों को तत्काल खाद्य मदद की जरूरत है। बैन से सबसे ज्यादा कांगो, अफगानिस्तान, इथियोपिया, सीरिया, सूडान, पाकिस्तान जैसे देशों पर असर पड़ेगा।
भारत के कदम का G-7 देशों ने विरोध किया लेकिन बचाव में चीन आया
भारत के कदम का G-7 देशों ने विरोध किया है। जर्मनी के कृषि मंत्री केम ओजडेमिर का कहना है कि इससे दुनियाभर में खाद्य संकट पैदा होगा। G-7 देशों में कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके और अमेरिका शामिल है। G-7 देशों के एग्रीकल्चर मिनिस्टर्स भारत से गेहूं एक्सपोर्ट पर बैन नहीं लगाने की मांग कह रहे हैं।
वहीं, G-7 देशों के विरोध पर चीन ने भारत का बचाव किया है। चीन ने कहा है कि भारत जैसे विकासशील देशों को दोष देने से ग्लोबल फूड शॉर्टेज का समाधान नहीं होगा। चीन का कहना है कि G-7 के एग्रीकल्चर मिनिस्टर्स भारत से गेहूं एक्सपोर्ट पर बैन नहीं लगाने को कह रहे हैं। क्यों G-7 अपने एक्सपोर्ट में इजाफा कर फूड मार्केट की सप्लाई को स्थिर करने के लिए कदम नहीं उठाता है।
एग्रीकल्चर एक्सपर्ट देवेंद्र शर्मा कहते हैं, भारत को पूरा अधिकार है कि वो पहले अपनी जरूरतों को पहले पूरा करे। G-7 देशों को कोई अधिकार नहीं है कि वो भारत के कदम पर सवाल उठाए। G-7 देशों को इतनी ही चिंता है तो ये देश बायो फ्यूल में इस्तेमाल होने वाले अनाजों में 50% की कमी क्यों नहीं कर देते हैं। इससे दुनिया का खाद्य संकट खत्म हो सकता है। G-7 देश 90 मिलियन टन फूड बायो फ्यूल में खर्च करते हैं।
रूस-यूक्रेन जंग से भी गहराया इंटरनेशनल मार्केट में गेहूं का संकट
दुनिया में गेहूं का एक्सोपोर्ट करने वाले टॉप 5 देशों में रूस, अमेरिका, कनाडा, फ्रांस और यूक्रेन हैं। इसमें से 30% एक्सपोर्ट रूस और यूक्रेन से होता है। रूस-यूक्रेन युद्ध से ना सिर्फ गेहूं के उत्पादन पर असर पड़ा बल्कि एक्सपोर्ट पूरी तरह से बंद हो गया।
यूक्रेन के बंदरगाह यानी पोर्ट पर रूसी सेना की घेराबंदी है और बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ ही अनाजों के स्टोर युद्ध में तबाह हो गए हैं।
रूस का आधा गेहूं मिस्र, तुर्की और बांग्लादेश खरीदते हैं। वहीं, यूक्रेन का गेहूं मिस्र, इंडोनेशिया, फिलीपींस, तुर्की और ट्यूनीशिया में जाता था। अब इन दोनों देशों से सप्लाई बंद है। ऐसे में भारत के गेहूं की मांग दुनिया में बढ़ गई है। नतीजा ये हुआ कि गेहूं का एक्सपोर्ट भी इस बार रिकॉर्ड स्तर पर हुआ।
पिछले 3 सालों में गेहूं के एक्सपोर्ट में रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज की गई है। भारत ने पिछले साल के मुकाबले अपने गेहूं के एक्सपोर्ट में 215% तक की बढ़ोतरी की। अब जिस तरह से भारत ने अपने घरेलू खर्च की आपूर्ति के लिए एक्सपोर्ट पर बैन लगाए हैं उससे इंटरनेशनल मार्केट पर बड़ा असर पड़ेगा।