अग्नि आलोक
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कैसे उसने की होगी वृहद्रथ की हत्या ?

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कैसे उसने किया होगा बौद्धों का सफाया ?
कैसे उसने ध्वंस किये होंगे 85000 बौद्ध प्रतीक ?

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जब वे औरंगजेब के गड़े मुर्दे उखाड़ने में व्यस्त थे
तब मैं पुष्यमित्र शुंग के बारे में सोचता रहा..!

कैसे उसने की होगी वृहद्रथ की हत्या ?
कैसे उसने किया होगा बौद्धों का सफाया ?
कैसे उसने ध्वंस किये होंगे बौद्ध प्रतीक ?

सोचता हूँ-
कुछ के लिए वह अपने समय का भगवान होगा !
कुछ के लिए अपने समय का औरंगजेब !

पुष्यमित्र शुंग और औरंगजेब
इतिहास में अक्सर आते रहे हैं
भेष बदलकर !
अलग-अलग आस्थाओं के महिमा गान
अलग-अलग आस्थाओं के मान मर्दन के लिए
उस राजतंत्र-धर्मतंत्र को
हमेशा गणतंत्र ने रोका है !

आज वे राजतंत्र की गलतियों को
गणतंत्र में ठीक करना चाहते हैं !
उसे धर्मतंत्र में बदलना चाहते हैं !

उनके इतिहासकारों ने
शायद उन्हें नहीं बताया !-
“राजतंत्र तलवारों की जोर से चलता था !
हारे हुए राज्य का बचा हुआ गर्व
उनकी आस्था और स्त्रियाँ होती थीं !
जीतने वाला हमेशा इन दोनों को कुचलता था ! “

गणतंत्र को उस राजतंत्र की नकल पर धकेलने में
धर्म की आड़ में छुपा सबसे बड़ा हथियार
एक बार फिर से उठाया गया है !
आस्था का गर्व !
इस गर्व ने न जाने कितने असहायों को कुचला है !
अलग-अलग समूहों में बाँटा है दुनिया को !

जब वे औरंगजेब के गड़े मुर्दे उखाड़ने में व्यस्त थे !
तब मैं पुष्यमित्र शुंग के बारे में सोचता रहा !

इतिहास साक्षी है !
इसका चरम
हमेशा भयावह होता है !

साभार – श्री नलिन रंजन सिंह ,

संकलन – -निर्मल कुमार शर्मा

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