पवन कुमार (वाराणसी)
_नाम से ही जाहिर होता है कि ज्ञानवापी मस्ज़िद नही, मंदिर है। ऐसा ज्ञानवापी को मंदिर मनाने वालो का तर्क है। खैर, ठीक से पढ़े तो यह यह मंदिर नही, शाब्दिक रूप से ‘ज्ञान का कूप या तालाब’ ध्वनित होता है।_
इसी तर्क पर बात करें तो ‘हिंदुस्तान’ शब्द भी भारतीय प्रतीत नही होता। यह फ़ारसी शब्द है। तो, क्या आप इसे पर्सियन देश मानकर ईरान को सौंप देंगे? हिंदू शब्द का सबसे पहला उल्लेख 510 ईस्वी पूर्व नक्श-ए-रुस्तम और पर्सिपोलिस शिलालेख में डेरियस फर्स्ट द्वारा उल्लिखित किया गया है।
_सिकंदर के करीब दो सौ साल पहले भारत पर डेरियस यानी दारा ने आक्रमण किया था और वह लाखों मन सोना हरेक साल तत्कालीन भारत से टैक्स लेता था। उसी ने अपने शिलालेखों में सबसे पहले हिंदू शब्द का उल्लेख ग़ुलाम या काले आदमियों के संदर्भ में किया है।_
तो क्या यह मान लिया जाए कि आज का हिंदुस्तानी पर्शियन ग़ुलाम हैं? नही न..
आप उस इतिहास की दीवारों पर सर टकरा रहे हैं जब इस देश मे रूल ऑफ रूलर था। रूलर की एक आवाज़ या इशारा ही कानून होता था। वह किसी को फांसी दे सकता था किसी को रिवॉर्ड। तब राजा ही सॉवरेन स्टेट था।
_राजा का कानून ही अंतिम कानून था। तब रूल ऑफ लॉ नहीं था। तब की गई तोड़फोड़ या निर्माण तब के कानून के अनुसार जायज़ था। आज के डेमोक्रेटिक रूल के हिसाब से बीते हुए कल को नाजायज ठहराएंगे तो बड़ी मुश्किल होगी।_
इतिहास की क़िताबों को पढ़िए, इन्ही अकबरों, औरंगजेबों के दरबार मे अनेक हिन्दू सुबह-शाम जमीन पर लोट-लोट कर प्रणाम कर रहे थे, उनसे राजनीतिक विवाह कर रहे थे और उनके साम्राज्य की सीमा बढ़ाने के लिए अपने ही हिन्दू भाइयों को मौत के घाट उतार रहे थे।
_उदाहरण के लिए एक-दो नमूना पेश कर रहा हूं। जिस महाराणा को आप हिन्दुस्तान का गौरव मानते हैं तब एक हिन्दू-क्षत्रिय मान सिंह अकबर की तरफ से महाराणा के खिलाफ युद्ध लड़ रहा था। यह वही मान सिंह थे जिनकी बुआ अकबर की हरम में थी और उन्ही के गर्भ से अगला सम्राट हिंदुस्तान को मिला।_
जहांगीर के दरबार में अनेक ब्राह्मण-क्षत्रिय हिन्दू सेनापति और मुख्य दरबारी हुआ करते थे।
औरंगजेब ने सबसे ज्यादा क्षत्रियो को मनसबदार बनाया था। यह वही मनसबदार थे जिन्होंने तब के हिन्दू राजाओं के खिलाफ युद्ध किया और एक मुग़ल शासक को मजबूत किया।
_धर्म की राजनीति करने वालों और उग्र राष्ट्रवादियो इतिहास के खंडहरों को खंखालिएगा तो आपको निराशा के सिवाय कुछ न मिलेगा। देश मात्र जमीन का टुकड़ा नही होता। देश को राजा-सम्राट नही बनाते, लोग बनाते हैं। उनकी आस्था, उनकी संस्कृति, उनकी बोली, पहनावा, खानपान, पूजा-पद्धति और उनके विचार बनाते हैं।_
आप देश को एक रंग में रंगना चाहते हैं। यह मुमकिन नही है। यह पागलपन छोड़िए। याद करिए, जर्मनी-इटली का क्या हश्र हुआ। हिटलर, मुसोलिनी के हश्र की बात नही कर रहा।
_मैं वहां के आम लोगो की बात कर रहा हूं। अंततः नफरत की आग में सबसे ज्यादा आम लोग ही झुलसेगे। नफ़रती-दंगों में न तब का राजा मरा था न अबका नेता मरेगा। मरेगा तो कोई घुरहू, जुम्मन, हामिद, कोई रुबिया कोई सीता…!_
[चेतना विकास मिशन)